कहते हैं अगर किसी काम को लगातार करो, तो हमें उस काम की आदत पड़ सकती है. वो आदतें अच्छी और बुरी दोनों हो सकती हैं.
एक हालिया स्टडी से ये पता चला है कि अगर आप जिम जाने और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करने जैसी अच्छी आदतें अपनाना चाहते हैं, तो आपको उन्हें तब तक दोहराना पड़ेगा, जब तक कि आपको उनकी आदत ना पड़ जाए.
रिसर्चर्स ने एक मॉडल बनाया है, जो बताता है कि अच्छी और बुरी आदतें आपके काम से आपको मिली संतुष्टि से ज्यादा, आपके उस काम के लगातार करने पर निर्भर करती हैं.
मनोवैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि एक सदी से हमारी आदतें कैसे बनती हैं और सबसे अहम सवाल ये है कि हम जो करते हैं, उसके मुकाबले कितनी आदतें हैं, जो हम चाहते हैं.अमिताई शेनहाव, असिस्टेंट प्रोफेसर, ब्राउन यूनिवर्सिटी
शेनहाव ने बताया कि हमारी आदतें हमारी पिछली क्रियाओं के कारण बनती हैं, लेकिन निश्चित परिस्थितियों में सबसे अच्छा परिणाम लाने के लिए उन आदतों की जगह पर हमारी इच्छाएं आ जाएंगी.
अध्ययन के लिए बनाया मॉडल
साइकोलॉजिकल रिव्यू पत्रिका में छपे इस अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने एक कंप्यूटर अनुकरण बनाया, जिसमें डिजिटल चूहों (रोडेंट) को दो लीवर (डंडों) का विकल्प दिया गया था, जिनमें से एक इनाम पाने की संभावना से जुड़ा था.
इनाम वाला लीवर 'सही' था और बिना इनाम वाला लीवर वाला 'गलत' था.
इनाम पाने का मौका दो लीवरों के बीच अदल-बदल दिया गया था, इन डिजिटल चूहों को 'सही' चुनने की ट्रेनिंग दी गई थी.
जब डिजिटल चूहों को कम समय की ट्रेनिंग दी गई, तो वे इनाम वाला लीवर बदल दिए जाने के बावजूद ‘सही’ लीवर चुनने में कामयाब रहे. और वहीं दूसरी तरफ जब उन्हें एक लीवर पर अच्छी तरह ट्रेनिंग दी गई तो डिजिटल चूहे ‘गलत’ लीवर को ही बार-बार चुनने लगे. तब भी जब उस लीवर में इनाम नहीं छिपा था.
उन्होंने बार-बार की जाने वाले काम को ही अहमियत दी, जिसकी उन्हें आदत हो गई थी, ना कि इनाम पाने की कोशिश की.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)