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500 से 800 साल में गलते हैं सैनिटरी पैड्स! जानिए क्या है समाधान

ज्यादातर सैनिटरी पैड प्लास्टिक आधारित होते हैं और नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं.

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भारत में लगभग 33.6 करोड़ लड़कियां और महिलाएं हर महीने मेंस्ट्रुएशन का सामना करती हैं. उनमें से लगभग 12.1 करोड़ डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन का उपयोग कर रही हैं. इसका मतलब है, जैसा कि क्लीन इंडिया जर्नल में बताया गया है, भारत में सालाना 432 मिलियन पैड (नैपकिन) बनाये जाते हैं और इस तरह 9000 टन सैनिटरी वेस्ट निकलता है, जो हर तरीके से पर्यावरण के लिये खतरनाक है.

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समस्या ये है कि ज्यादातर सैनिटरी पैड प्लास्टिक आधारित होते हैं और नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं. इस प्लास्टिक कंपोनेंट को डिकंपोज करने के लिए लगभग 500-800 साल लगते हैं. इसका मतलब ये है कि हर महीने कचरे में फेंके जाने वाले सैनिटरी पैड नष्ट नहीं हो रहे बल्कि जमीन में धंसते जा रहे हैं और पर्यावरण को लगातार दूषित करने का काम कर रहे हैं.

इसके अलावा मेडिकल एक्सपर्ट्स ने पैड के बार-बार उपयोग के कारण पेल्विक इंफेक्शन जैसी समस्या होने की भी आशंका जताई है.

क्या कहता है गणित?

ज्यादातर सैनिटरी पैड प्लास्टिक आधारित होते हैं और नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं.
  • करीब 48 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं, जबकि शहरी इलाकों में 77 प्रतिशत महिलाएं इसका उपयोग करती हैं. (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 2015-16 रिपोर्ट)
  • मेंस्ट्रुएल हेल्थ अलाएंस इंडिया के जरिए दिए गए आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश से इकट्ठा हुए मेंस्ट्रुअल वेस्ट, मुख्य रूप से सैनिटरी नैपकिन जो दूसरे घरेलू कचरे के साथ नियमित कचरे के रूप में फेंका जाता है, 45 प्रतिशत है.
  • नगरपालिका सॉलिड वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम के मुताबिक बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल कंपोनेंट में अलग होने (सेग्रीगेशन) के बाद केवल 2,000 गंदे नैपकिन और ब्लड युक्त कॉटन को डिस्पोज किया जा सकता है.

हालांकि, बायो-मेडिकल वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 का कहना है कि ब्लड और बॉडी फ्लूइड से दूषित पदार्थ जैसे कॉटन, ड्रेसिंग, मृदा प्लास्टर कास्ट, लाइन्स और बेडिंग एक तरह के बॉयो-मेडिकल (जैव-चिकित्सा) वेस्ट हैं और इनके पैथोजन (रोगाणु) को नष्ट करने के लिये इन्हें जला दिया जाना चाहिए, ऑटोक्लेव या माइक्रोवेव किया जाना चाहिए.

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सैनिटरी पैड को डिस्पोज करने की चुनौतियां

ज्यादातर सैनिटरी पैड प्लास्टिक आधारित होते हैं और नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं.
सैनिटरी पैड को नष्ट करने में भी कई समस्याएं हैं
(फोटो: iStock)

सैनिटरी पैड को नष्ट करने में भी कई समस्याएं हैं क्योंकि इन्हें जलाने से डाइऑक्साइन और फुरॉन जैसे जहरीले धुएं भी पैदा होते हैं.

इसके अलावा, जितने लंबे समय तक इस्तेमाल किए हुए पैड खुले में रखे जाते हैं और हवा के संपर्क में रहते हैं, वे उतने ही रोगजनक बनने या वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह बन सकते हैं.

इस तथ्य के अलावा कि इसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है, खुला सैनिटरी नैपकिन कचरा उठाने वाले के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकता है.

सभी सैनिटरी वेस्ट जल्द ही हमारे सीवेज सिस्टम, जमीन और जल निकायों में भी अपना रास्ता बना लेते हैं और फिर हमारे स्वास्थ्य पर इसका खतरनाक प्रभाव पड़ता है.

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प्रशासन इस पर क्या कर रहा है?

2016 में, भारत सरकार ने सॉलिड वेस्ट प्रबंधन (Solid Waste Management) नियमों की शुरुआत की, इस नियम के तहत निर्माताओं, ब्रांड मालिकों या सैनिटरी नैपकिन (और डायपर) बेचने वाली कंपनियों के लिए सैनिटरी नैपकिन के सुरक्षित डिस्पोजल के लिये उसके साथ रैपर या पाउच देना अनिवार्य है. हालांकि, इन नियमों के पूरी तरह से लागू होने में अभी भी बाधा बनी हुई है.

ऑर्गेनिक/पर्यावरण अनुकूल पैड्स इसका जवाब हो सकते हैं?

ज्यादातर सैनिटरी पैड प्लास्टिक आधारित होते हैं और नॉन-बायोडिग्रेडेबल होते हैं.
बायोडिग्रेडेबल नैपकिन को इस्तेमाल के बाद आसानी से डिस्पोज किया जा सकता है.
(फोटो: iStock)

हां, बायोडिग्रेडेबल नैपकिन इस समस्या का एक जवाब है. बायोडिग्रेडेबल नैपकिन को इस्तेमाल के बाद आसानी से डिस्पोज किया जा सकता है. ज्यादातर छोटे पैमाने पर मैन्यूफैक्चरर्स या गैर सरकारी संगठनों द्वारा इसे बनाया जाता है, ये बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड प्राकृतिक उत्पादों जैसे केला, जूट फाइबर या दोबारा इस्तेमाल करने योग्य कपड़े का उपयोग करके बनाये जाते हैं.

इन मैन्यूफैक्चरर्स का एक उदाहरण नॉट जस्ट ए पीस ऑफ क्लॉथ (NJPC) है, जो भारत में क्लीन क्लॉथ पैड पेश करने वाले पहले कुछ ऑर्गेनाइजेशन में से एक है. साथी और इकोफेम कार्बनिक सैनिटरी पैड बनाने वाले समूहों के दो और उदाहरण हैं. ये ग्रुप्स पैड बनाने के लिये जैविक सूती, केले, जूट फाइबर और कपड़े का इस्तेमाल करते हैं.

सैनिटरी पैड के साथ-साथ कई दूसरे विकल्प भी हैं, इनमें मेंस्ट्रुअल कप भी शामिल हैं, जिन्हें 12 घंटे तक पहना जा सकता है और इसे 4 से 5 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है. जो इसे सबसे टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल मेंस्ट्रुअल उत्पादों में से एक बनाता है.

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