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सेक्सॉल्व: धारा 377 के फैसले पर प्यार का इतना दिखावा क्यों?   

धारा 377 पर कोर्ट का फैसला समानता की दिशा में लंबी यात्रा का सिर्फ पहला पड़ाव है.

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यह समानता के अधिकार के पैरोकार हरीश अय्यर का FIT पर सवाल-जवाब पर आधारित कॉलम है.

अगर आपको सेक्स, सेक्स के तौर-तरीके या रिलेशनशिप से जुड़ी कोई परेशानीहै, कोई उलझन है, जिसे आप हल नहीं कर पा रहे हैं, या आपको किसी तरह के सलाह की जरूरत है, किसी सवाल का जवाब चाहते हैं या फिर यूं ही चाहते हैं कि कोई आपकी बात सुन ले- तो हरीश अय्यर को लिखिए, और वह आपके लिए ‘सेक्सॉल्व’ करने की कोशिश करेंगे. आप sexolve@thequint.com पर मेल करें.

पेश हैं इस हफ्ते के सवाल-जवाबः

‘‘धारा 377 का फैसला ठीक है, लेकिन प्यार का यह जबरदस्त दिखावा क्यों?

प्रिय रेनबोमैन,

मैं भारत में रह रहा 25 वर्षीय युवक हूं. मेरे माता-पिता बहुत रूढ़िवादी हैं और आधुनिक सेक्सुअलटी को समझ नहीं पाते हैं. धारा 377 पर फैसला हर चैनल पर दिखाया जा रहा था. मेरे माता-पिता हालांकि इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इतने निजी और सहज स्नेह के लिए इतने जोरदार प्रदर्शन- क्या इसकी जरूरत थी? यह बात मेरे माता-पिता को नागवार लगती है कि हम क्वीर कम्युनिटी (LGBT) के लोग पूरी दुनिया को अपने जैसा बना देना चाहते हैं.

क्यों भई

प्रिय क्यों भई,

मैं आपके माता-पिता की सोच को समझता हूं. लेकिन मुझे लगता है कि आपको भी समझने की जरूरत है कि क्वीर एक्टिविज्म कहां से शुरू हुआ. हम वास्तव में कई साल से कड़ी मेहनत कर रहे थे. इनविजिबिलिटी (अदृश्यता) शर्म की बात है. विजिबिलटी (दृश्यता) मेल-जोल को बढ़ावा देती है. और जबकि कुछ मामलों में ज्यादा मेल-जोल से बदनामी हो सकती है, ज्यादातर मामलों में यह लोगों का समानांतर दुनिया पर भरोसा भी जगाती है, जहां हर तरह के प्यार के लिए जगह है. सेक्सुअलटी या जेंडर का पता चलना सदमा दे सकता है. अगर आपको किसी के बारे में पता चले, जिसके बारे में आपको नहीं पता था. मैं कई क्वीर लोगों के बारे में जानता हूं, जो मानते हैं कि उनके जैसा कोई और नहीं है. मेरी ख्वाहिश है कि किसी को भी अकेलेपन का अनुभव ना करना पड़े. ये दिखावा यानी विजिबिलटी यहां मदद करती है.

आपके माता-पिता के बारे में, मुझे लगता है कि समय के साथ वो समझेंगे कि यह एक सशक्तीकरण है, हम जो मौजूद हैं, हमें अनदेखा नहीं किया जा सकता, और यह सिर्फ रंगों का जश्न नहीं है. अगर आपके माता-पिता अन्य माता-पिता से मिलना चाहते हैं, तो कृपया www.fb.com/SweekarTheRainbowParents पर जाएं.

उम्मीद है कि आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा. अगर मैं कभी भी मददगार हो सकता हूं, तो मुझसे जरूर कहें.

मुस्कुराइए,

रेनबोमैन

अंतिम बातः अपना जाम उठाओ. खुद का इंद्रधनुष बनाओ.

प्रिय रेनबोमैन,

बधाई हो. आखिरकार आप आजाद हैं. मैं दूसरों की बात नहीं कह सकती, लेकिन मैं गौरवान्वित महसूस कर रही हूं. मेरे कुछ दोस्तों ने एक बहुत ही वाजिब सवाल उठाया. उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या यह समलैंगिकता आज की दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है? इस दुनिया में और भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं और यह मुझे गुस्सा दिलाता है कि हर कोई केवल LGBTIQ और सेक्स करने की स्वतंत्रता के बारे में बात कर रहा है. बच्चे मर रहे हैं और बच्चों के साथ बलात्कार हो रहा है.”

स्निग्धा

प्रिय स्निग्धा,

आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया. यह फौरी उत्साह है. हमारा इतने लंबे समय तक दमन किया गया है कि यह कामयाबी भी एक छलावे की तरह लगती है. बेशक अन्य मुद्दे भी हैं.

लेकिन अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए यह मुद्दा क्यों गैर-जरूरी बन जाए? हम क्यों ‘ये क्यों नहीं किया, वो क्यों नहीं किया’ में व्यस्त रहते हैं? यह भी एक गंभीर मुद्दा है, जितना कि अन्य मुद्दे.

हम सिर्फ सेक्स की आजादी नहीं मांग रहे थे, हम अपने बेडरूम में सरकार को ताक-झांक करने से रोकने के लिए कह रहे थे. धारा 377 के नतीजे बहुत दूरगामी थे. इसके दुरुपयोग के कारण लोग आत्महत्या कर रहे थे. ऐसे लोग थे और हैं, जो छिपकर रहते थे और लगातार छापा मारे जाने के डर के साथ जीते थे. यह सब हो रहा था. यह कैसे कम महत्वपूर्ण हो सकता है?

विजिबिलटी मेल-जोल को बढ़ावा देती है.

हां, अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे भी हैं. LGBT लोग भी ऐसा ही सोचते हैं. ऐसे कई LGBT लोग हैं, जो क्वीर की मुहिम को कमजोर किए बिना दूसरे महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए काम करते हैं. शाकाहार, नारीवाद, दलित अधिकार, पर्यावरण जागरुकता, राजनीतिक सुधार- हम हर क्षेत्र में हैं. मेरे शहर, मुंबई की बात करें तो, एक सक्रिय LGBTIQ ग्रुप Gaysifamily.com ने फैसले का जश्न मनाने के लिए फीस के भुगतान के साथ एक पार्टी का आयोजन किया और इससे जमा होने वाले पैसे को चेंबूर में बाल आनंद नाम के चिल्ड्रेन होम को दान कर दिया.

हम सब अपना तुच्छ प्रयास करते हैं. कुछ इसे एक वजह के लिए करते हैं, तो कुछ दूसरी वजह के लिए करते हैं.

हो सकता कि हमें कुछ मुद्दे दूसरों के मुकाबले ज्यादा प्रिय हों, लेकिन हमें भरोसा रखना चाहिए कि हर मुद्दा महत्वपूर्ण है और खुश होना चाहिए कि इस दुनिया में कोई किसी के लिए कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहा है, जहां भौतिकवाद इतना अधिक है कि किसी के पास किसी के साथ खड़े होने का भी समय नहीं है.

इसके साथ ही, हम में से हर एक, अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं से, पूरी दुनिया को बेहतर बनाता है.

मुस्कुराइए,

रेनबोमैन.

अंतिम बातः LGBT अधिकारों पर काम अभी शुरू हुआ है. हम अब जोर से अपनी बात कह सकते हैं.

प्रिय रेनबोमैन,

मैं और मेरी गर्लफ्रेंड आठ साल से रिलेशनशिप में हैं. अब हम आधिकारिक रूप से शादी करना चाहते हैं. हमारा लड़के-लड़की के बीच होने वाली आम धूमधड़ाके की शादी का सपना है. मैं अपनी गर्लफ्रेंड की बहन की लेस्बियन-इन-लॉ बनना चाहती हूं. क्या इस अदालती फैसले का मतलब है कि लोग शादी कर सकते हैं? अगर हम शादी करेंगे तो क्या हमें गिरफ्तार कर लिया जाएगा?

लेस्बियन-इन-लॉ

प्रिय लेस्बियन-इन-लॉ,

हा-हा-हा. यह अपनी बात कहने का रोचक तरीका है- लेस्बियन-इन-लॉ (समलैंगिक ससुराल). ऐसी दुनिया में जहां विषम-लिंग में विवाह को मानक माना जाता है और अन्य सेक्सुअलटी को अपवाद के रूप में देखा जाता है- वे तब तक स्ट्रेट (विषम लिंगी) होते हैं, जब तक उनका सच सामने नहींआता. :)

धारा 377 के फैसले ने जो किया है, वह बहुत आसान है- उन्होंने कहा है कि कानून वयस्कों की सहमति से बने रिश्तों पर निजी जीवन में दखल नहीं देगा. यह समलैंगिक विवाह को कानूनी नहीं बनाता है. हालांकि, अच्छे-अच्छे से तार्किक निर्णय भी आगे कानूनों को बनाए जाने के लिए गुंजाइश छोड़ देते हैं.

यह समानता की दिशा में लंबी यात्रा का सिर्फ पहला पड़ाव है. इस समय समलैंगिक विवाह की कोई कानूनी स्थिति नहीं है, लेकिन एक समारोह करना और इसे “शादी” घोषित करना अवैध नहीं है. बस कानून की नजर में इसकी शादी के रूप में मान्यता नहीं होगी. कानूनी विवाह/सिविल पार्टनरशिप में कुछ समय लगेगा.

लेकिन अपने उत्साह को मत मारें. जाइए, अपने शादी के कार्ड प्रिंट कराइए.

मुस्कुराइए,

रेनबोमैन

अंतिम बातः हलो! मुझे भी इनवाइट करना.

(लोगों की पहचान गुप्त रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं. आप भी अपने सवाल sexolve@thequint.com पर भेज सकते हैं.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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