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कोरोना वैक्सीन ट्रायल के दौरान हुई गड़बड़ी तो कौन जिम्मेदार?  

जानिए भारत में वैक्सीन ट्रायल किन संस्थाओं की देखरेख में होता है

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हाल ही में, चेन्नई में वैक्सीन ट्रायल के दौरान कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वाले एक वॉलंटियर ने न्यूरोलॉजिकल ब्रेकडाउन और सोचने समझने की क्षमता कमजोर होने की शिकायत करते हुए मुआवजे की मांग की. उसने सीरम इंस्टिट्यूट(SII) को कानूनी नोटिस भेजकर 5 करोड़ मुआवजे के साथ ही वैक्सीन ट्रायल रोकने की मांग की है. हालांकि SII ने इस शिकायत को खारिज किया है.

लेकिन वैक्सीन ट्रायल को शुरू करने और रोकने का अधिकार किसके पास है? वैक्सीन ट्रायल के दौरान CDSCO, DCGI, ICMR जैसी संस्थाओं के नाम चर्चा में हैं. इन अलग-अलग बॉडी की जिम्मेदारियां क्या है? कौन प्रमुख है हम ये समझने की कोशिश करते हैं.

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नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नलॉजी इंफोर्मेशन की एक जर्नल रेगुलेटरी रिक्वायरमेंट फॉर क्लीनिकल ट्रायल इन इंडिया (भारत में क्लीनिकल ट्रायल के लिए रेगुलेटरी आवश्यकताएं) के मुताबिक क्लीनिकल ट्रायल के लिए 3 संस्थाएं काम करती हैं.

  • केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)
  • ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI)
  • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR)

इन संस्थाओं का काम क्या है?

केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) भारत की राष्ट्रीय रेगुलेटरी अथॉरिटी है. जैसे दूसरे देशों- अमेरिका में यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (US FDA), हेल्थ कनाडा और यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी हैं.

CDSCO भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक शाखा है. इसका काम या यूं कह लें मकसद दवाओं, कॉस्मेटिक्स और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा, असर और गुणवत्ता को लेकर भरोसा देना और पब्लिक हेल्थ की सुरक्षा और इसे बढ़ावा देना है.

वहीं, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) CDSCO का एक आधिकारिक अंग है जो देश में क्लीनिकल ट्रायल के अप्रूवल के लिए फाइनल रेगुलेटरी अथॉरिटी है. इसके अलावा, इसकी जिम्मेदारी, ट्रायल साइट का निरीक्षण करना, देश में क्लीनिकल रिसर्च के स्पॉन्सर्स और मैन्यूफैक्चरिंग सुविधाओं का निरीक्षण करना, सेंट्रल ड्रग्स टेस्टिंग लैबोरेटरी (मुंबई) और क्षेत्रीय ड्रग्स टेस्टिंग लैबोरेटरी के निरीक्षण के साथ-साथ इंडियन फार्मकोपिया कमीशन को संचालित करना है. इसके अलावा भी इसकी कई और भूमिकाएं, जिम्मेदारियां और काम हैं.

वहीं, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) शीर्ष बॉडी है जो बायोमेडिकल रिसर्च के फॉर्म्यूलेशन, को-ऑर्डिनेशन और प्रमोशन के लिए जिम्मेदार है. इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग से फंडिंग मिलती है.

ट्रायल के लिए एथिक्स कमिटी का अहम रोल

ड्रग्स और क्लीनिकल ट्रायल रूल्स 2019 के तहत  कहा गया है कि वैक्सीन समेत किसी भी नई इंवेस्टिगेशनल दवा के मैन्यूफैक्चरिंग से पहले क्लीनिकल ट्रायल किया जाना चाहिए.

साइंस द वायर की एक आर्टिकल के मुताबिक क्लीनिकल ट्रायल में कुछ गड़बड़ी न हो इसके लिए एथिक्स कमिटी का रोल अहम है.

एथिक्स कमिटी 2 तरह की होती हैं: एक जो किसी ट्रायल को अप्रूव या रिजेक्ट करती है और दूसरी बायोमेडिकल और हेल्थ रिसर्च के लिए.

इस कमिटी की ड्यूटी और जिम्मेदारियों को भी लिस्ट किया गया है. उदाहरण के लिए, कमिटी को ट्रायल में शामिल सभी प्रतिभागियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करनी चाहिए और समय-समय पर ट्रायल का रिव्यू करना चाहिए.

सबसे जरूरी है कि एथिक्स कमिटी को DCGI के साथ रजिस्टर होना चाहिए.

रूल के मुताबिक, हर क्लीनिकल ट्रायल के लिए जरूरी है:

1. DCGI से इजाजत और अप्रूव्ड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन
2. एथिक्स कमिटी की मंजूरी (ये कमिटी पहले से ही DCGI के साथ रजिस्टर हो)
3. कमिटी क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (CTRI) के साथ रजिस्टर हो

क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (CTRI), ICMR के तहत भारत में आयोजित किए जा रहे क्लीनिकल ट्रायल के रजिस्ट्रेशन के लिए एक फ्री और ऑनलाइन पब्लिक रिकॉर्ड सिस्टम है.
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4. केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के दिशा-निर्देशों के मुताबिक 'गुड क्लीनिकल प्रैक्टिस' का पालन हो.

ट्रायल में गड़बड़ी होने पर क्या होती है कार्रवाई?

नियम के मुताबिक जब इन्वेस्टिगेटर्स ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट या रूल का पालन करने में विफल होते हैं, तो सिर्फ DCGI कार्रवाई शुरू कर सकता है. और ऐसे मामलों में, DCGI - कारण बताओ नोटिस(Show cause notice) देने के बाद - एक चेतावनी जारी कर सकता है, ट्रायल रिजल्ट को अस्वीकार कर सकता है, अनुमति को निलंबित या स्थायी रूप से रद्द कर सकता है और इन्वेस्टिगेटर/ या स्पॉन्सर को भविष्य में किसी भी ट्रायल के आयोजन से रोक सकता है.

क्लीनिकल ट्रायल के दौरान होने वाली गंभीर प्रतिकूल घटनाओं(सीरियस एडवर्स इवेंट्स(SAE) की जांच कैसे होती है?

  • साइट के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर को वॉलंटियर के SAE के बारे में DCGI, स्पॉन्सर और एथिक्स कमिटी को 24 घंटे के अंदर रिपोर्ट करना होता है.
  • अगर ऐसा करने में असमर्थ हैं, तो देरी का कारण देते हुए DCGI को रिपोर्ट पेश किया जाना चाहिए.
  • स्पॉन्सर डेटा सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड को जानकारी देता है.
  • डेटा सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड रिपोर्ट तैयार करता है जो स्पॉन्सर के जरिये ट्रायल साइट, एथिक्स कमिटी और रेगुलेटर के पास जाती है.
  • एथिक्स कमिटी को SAE पर अपनी रिपोर्ट, सही विश्लेषण और मुआवजे पर अपनी राय के साथ DCGI को पेश करना होता है.

वहीं अगर ट्रायल साइट पर डॉक्टर ICMR के रिसर्च गाइलाइन का पालन नहीं करते हैं, तो वे इंडियन मेडिकल काउंसिल रेगुलेशन 2002 के सेक्शन 7.22 के तहत प्रोफेशनल मिसकंडक्ट (पेशेवर कदाचार) के दोषी होंगे. ऐसे मामलों में, स्टेट मेडिकल काउंसिल अपनी ताकत का इस्तेमाल कर सजा दे सकता है.

शीर्ष संस्था होने के बावजूद ICMR के पास किसी को सीधे तौर पर सजा देने की  शक्तियां नहीं है क्योंकि ये न तो स्टैचुटरी बॉडी है और न ही रेगुलेटरी बॉडी है.

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