स्नैक्स चाहे मीठे हों, तीखे हों या फिर खट्टे, स्वाद के मामले में लाजवाब होते हैं. किसी को चीनी में तो किसी को सीधे चॉकलेट में डूबे हुए स्नैक्स पसंद होते हैं. कोई मसालेदार, तले हुए और चटपटे स्नैक्स के स्वाद का दिवाना होता है.
ऐसे में अगर आपके मनपसंद स्नैक्स सामने दिख जाए, तो खुद को उन्हें खाने से रोकना नामुमकिन हो जाता है. इसके साथ ही स्नैक्स हर जगह आसानी से उपलब्ध भी होते हैं.
मैंने कई न्यूट्रिशनिस्ट और फिटनेस के प्रति उत्साही लोगों को भी देखा है, जो कभी-कभी खुद अपने पसंदीदा स्नैक्स के सामने हार मान जाते हैं और उसे खाए बिना नहीं रह पाते हैं.
जंक फूड और स्नैक्स की लत तुरंत नहीं लगती. यह एक दिन में नहीं हो सकता है, लेकिन जल्दी या कुछ समय बाद आपको जंक फूड खाने की ऐसी आदत पड़ जाती है, जिसे आप छोड़ नहीं पाते. अपनी पसंद के स्नैक्स के लिए आपको तीव्र इच्छा महसूस होने लगती है.
खैर, इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है. लेकिन, आपको समझना चाहिए कि स्नैक्स एक नशे की तरह क्यों होता है, हमें इसकी लत क्यों लग जाती है और क्यों हमारे तीन वक्त के खाने में इसे शामिल ना करने पर जोर दिया जाता है.
स्वाद
स्नैक्स में हमारे पसंदीदा स्वाद जैसे मीठा, मसालेदार और नमकीन की मात्रा ज्यादा रखी जाती है, ताकि यह स्वादिष्ट लगे और खुशी देने वाली हर चीज अगर ज्यादा मात्रा में ली जाए, तो उसकी लत लग जाती है, मानव शरीर को जल्द ही उस चीज की आदत हो जाती है.
इन खाद्य पदार्थों में अत्यधिक मात्रा में चीनी या मसाले मौजूद होते हैं, जो आमतौर पर खाने की किसी नैचुरल चीजों में नहीं पाए जाते हैं. प्राकृतिक रूप से उपलब्ध ज्यादातर खाद्य पदार्थों में चीनी या मसाले की मात्रा बहुत कम होती है.
स्नैक्स में मौजूद चीनी या मसाले की भरपूर मात्रा हमारे स्वाद को उत्तेजित करने का काम करती है. कह सकते हैं कि यह आपके मुंह में स्वाद का धमाका कर देते हैं. इंसान का दिमाग एक निश्चित मात्रा में चीनी, मसाला, नमक और कुछ अन्य स्वादों को संभालने के लिए ट्रेंड होता है, लेकिन जब मात्रा बहुत अधिक हो जाती है तो यह उत्तेजना बॉडी की जरूरत से परे चला जाता है. इसे सुपरस्टिमुलस या अति उत्तेजक कहा जा सकता है.
चीनी को अक्सर कोकीन के बराबर माना जाता है. हालांकि इस तुलना पर अलग-अलग राय है, कोकीन की लत के शिकार कई लोगों का कहना है दवा से इस लत को छुड़ाना मुश्किल है क्योंकि यह लगातार आनंद का एहसास दिलाता है.
वास्तव में, तथ्य यह है कि ज्यादातर मीठे स्नैक्स खाने की वजह से आपके ब्लड शुगर के लेवल में बढ़ोतरी होती है (क्योंकि उनमें चीनी की बहुत ज्यादा मात्रा होती है). इसके परिणाम स्वरूप इंसुलिन रिलीज होता है और जल्द ही ब्लड शुगर में गिरावट आती है, जिससे आपको नींद आती है और थकान महसूस होता है, साथ ही आपको चीनी से भरपूर स्नैक्स खाने की तीव्र इच्छा होती है.
न्यूट्रिशन
ज्यादातर स्नैक्स को इस तरीके से बनाए जाते हैं कि वो सस्ते हों, उन्हें लंबे समय के लिये स्टोर किया जा सके, रखरखाव में आसानी हो और इसमें विशिष्ट स्वाद की ज्यादा मात्रा (आमतौर पर मीठे या मसालेदार) मौजूद हो. पौष्टिक भोजन महंगे होते हैं. प्रोटीन महंगा होता है, इसलिए प्रोटीन की जगह इन खाद्य पदार्थों में सस्ते और आसानी से उत्पादित होने वाले पोषक तत्व होते हैं.
लेकिन दिन के अंत में भोजन तो आखिर भोजन है, है ना? आपका पेट पूरी तरह से भरा होने के साथ ही खाने की और इच्छा नहीं होनी चाहिए, है ना?
हां, अगर आप खाना खा रहे हैं, और आप समझते हैं कि खाना वो होता है जो अक्सर, स्वाभाविक रूप से उपलब्ध होता है, वो नहीं जो आपको बताया गया.
स्नैक्स में अक्सर वास्तविक न्यूट्रिशन बहुत कम होता है. अक्सर इनमें क्लीन फैट (वसा) और प्रोटीन जैसी पोषक तत्वों की कमी होती है, जो हमारे शरीर के लिये जरूरी है और इन पोषक तत्वों के बजाए इनमें अत्यधिक मात्रा में चीनी और कृत्रिम फैट मौजूद होते हैं, जिससे लोगों को इसकी लत लग जाती है.
अगर आप प्राकृतिक प्रोटीन और फैट युक्त स्वस्थ भोजन करते हैं, तो यह बहुत ही मुश्किल है कि आपको कुछ घंटे बाद फिर से भूख महसूस हो.
हालांकि, जब आप ऐसी चीज खाते हैं जो आपको बेहतरीन स्वाद देने के साथ ही एक अजीब सी खुशी का एहसास दिलाता है, तो उसमें सिंपल कार्बोहाइड्रेट या शुगर होता है, जबकि पोषक तत्वों की मात्रा काफी कम होती है. वास्तव में, आप अपने शरीर को असली भोजन और पोषण नहीं दे रहे हैं, बल्कि अपने स्वाद को संतुष्ट करते हैं, और चूंकि आपके शरीर को बहुत अधिक न्यूट्रिशन नहीं मिलता, इसलिए कुछ घंटों बाद फिर से भूख लग जाती है क्योंकि हकीकत में, आप अपने शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों की मांग को पूरा नहीं कर पाते हैं.
तो ये पूरी साइकिल ऐसी है: हमें भूख लगती है >> हम स्नैक्स / जंक फूड खाते हैं >> हम स्नैक्स की सुगंध और स्वाद के कारण अच्छा महसूस करते हैं और अक्सर संतुष्ट भी हो जाते हैं >> हम अपनी दिनचर्या जारी रखते हैं >> कुछ घंटे बाद हमें फिर से भूख लगती है, आमतौर पर ज्यादा स्नैक्स या कुछ ऐसा खाते हैं जो हमारे स्वाद को संतुष्ट करता है.
संक्षेप में: स्नैक्स आपकी इच्छाओं को पूरा करेगा, ना कि आपकी भूख खत्म करेगा.
स्नैक्स की आदत हो जाने पर खुद को दोष ना दें. अपनी इच्छा शक्ति को दोष ना दें. क्योंकि इसमें आपके शरीर की गलती नहीं बल्कि आपका मस्तिष्क बेवकूफ बन रहा है.
आसानी से मिल जाते हैं अनहेल्दी स्नैक्स
स्नैक्स बेहद सुविधाजनक और आसानी से उपलब्ध हैं. सिगरेट या शराब की तरह, स्नैक्स हर जगह मिलता है. किसी नशे की लत की तरह ही लोगों को हर जगह जितनी आसानी से स्नैक्स मिल जाता है, उतना ही मुश्किल है इस आदत से छुटकारा पाना.
स्मोकिंग छोड़ने वाले लोगों के लिये इस लत से छुटकारा पाने के दौरान का समय काफी मुश्किल होता है. ऐसा नहीं है कि उनके पास स्मोकिंग छोड़ने की इच्छाशक्ति नहीं है (याद रखें, इच्छाशक्ति के साथ एडिक्शन का कोई संबंध नहीं है).
समस्या यह है कि सिगरेट तक पहुंचने के कई आसान तरीके हैं. ये हर जगह उपलब्ध होते हैं. और आमतौर पर विज्ञापन और आसपास के लोग लगातार इस बारे में याद दिलाने का काम करते हैं.
भ्रामक पैकेजिंग
आखिर में, क्या आपने कभी सोचा है कि स्नैक्स ज्यादातर रंगीन और ब्राइट पैकेजिंग के साथ क्यों आते हैं? इसके पीछे वजह यह है कि जिस तरह जूते, कपड़े आदि जैसे किसी उत्पाद के लिए ब्रांडिंग होती है, जो उस प्रोडक्ट को दूसरे प्रोडक्ट से अलग करता है, उसी प्रकार अलग-अलग तरह के स्नैक्स की आकर्षक पैकेजिंग कर ब्रांड को स्टैब्लिश करने की कोशिश की जाती है. इसके अतिरिक्त, ऐसा करने से प्रोडक्ट आकर्षक और प्रभावी दिखाई देता है.
जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो स्नैक्स या दूसरे तरह के जंक फूड का फ्लेवर आमतौर पर मीठा, मसालेदार, या नमकीन होता है. वहीं इसके टेक्सचर की बात करें तो ये कुरकुरा, क्रीमी या क्रंची होता है.
इसलिए, मैन्यूफैक्चर्स के लिये इन्हें अलग और आकर्षक बनाना महत्वपूर्ण होने के साथ ही अच्छा है. लेकिन यह आपके लिये अच्छा नहीं है. बल्कि आप इस तथ्य से गुमराह होते हैं कि आप ऐसे खाद्य पदार्थ खा रहे हैं, जिसमें किसी भी तरह का पोषक तत्व मौजूद नहीं होता है. यह खासकर इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि आप आकर्षित हो सके और आपके लिये इसे अनदेखा करना मुश्किल हो.
इसके साथ, उम्मीद करते हैं कि स्नैक्स के बारे में आपकी समझ पहले से बेहतर हुई होगी और आपके लिए यह भी समझना आसान होगा कि क्यों हमें इनकी आदत या लत लग जाती है, जिससे छुटकारा पाना मुश्किल महसूस होता है.
(विष्णु गोपीनाथ द क्विंट से जुड़े एक पत्रकार हैं. यह आर्टिकल उनके व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित है. यह आर्टिकल मूल रूप से उनकी वेबसाइट ‘फ्यूल माई फैट लॉस’ पर प्रकाशित हुआ था.)
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