किसी मां-बाप के लिए उनके बच्चे के ऑटिज्म बीमारी से पीड़ित होने का पता लगना शायद सबसे तकलीफदेह लम्हा होता होगा. वैज्ञानिकों ने अब ब्लड और यूरीन टेस्ट की मदद से ऑटिज्म का पता लगाने वाले टेस्ट को विकसित करने की दिशा में पहला कदम उठाया है, जिससे शुरुआत में ही बीमारी का पता चल जाने पर मरीज का जल्दी इलाज करने में मदद मिलेगी.
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) मुख्यतः डेवलपमेंटल डिसऑर्डर की बीमारी है, जिसमें मरीज को पारस्परिक क्रिया में समस्या होती है और वह कई तरह की व्यावहारिक समस्याओं से जूझता है.
इसमें बोलने में समस्या होती है, एक ही बात बार-बार बोलना और/या विवशता, हाईपर एक्टिविटी, एंग्जाइटी, नए माहौल से तालमेल बिठाने में मुश्किल होती है और कुछ मरीजों के मामले में बातों को समझ पाने में समस्या हो सकती है.
चूंकि एएसडी के कई तरह के लक्षण होते हैं, इसलिए खासकर शुरुआती दौर में इसकी पहचान मुश्किल और अनिश्चित हो सकती है.
हमारी खोज से इसका जल्द पता लग सकेगा, जिससे इलाज भी जल्द शुरू हो सकेगा. हमें उम्मीद है कि टेस्ट से इस बीमारी के कारणों के बारे में भी और जानकारी मिलेगी. कुछ और जांच के बाद हम विशिष्ट प्लाज्मा और यूरीन प्रोफाइल या गड़बड़ी वाले कंपाउंड के “फिंगरप्रिंट” के बारे में बता सकेंगे. इससे हमें एएसडी का पता लगाने में और आसानी होगी और एएसडी के नए कारणों की पहचान कर सकेंगे.नाएला रब्बानी, यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरिक, यूके
मॉलीक्यूलर ऑटिज्म जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में ऑटिज्म के मरीज और साधारण बच्चे के ब्लड और यूरीन में अंतर का अध्ययन किया गया है. टेस्ट के दौरान एएसडी से ग्रस्त बच्चों में खासकर उनके ब्लड प्लाज्मा में डैमेज प्रोटीन का स्तर ऊंचा पाया गया.
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ऑटिज्म के 30-35 फीसद मामलों में जेनेटिक्स की भूमिका होती है, बाकी के 65-70 मामलों में माना जाता है कि पर्यावरणीय कारकों, मल्टीपल म्यूटेशन और विशिष्ट जेनेटिक वेरियंट से ऐसा हुआ है.
ये नतीजे काफी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन जांचों को अंतिम रूप देने में अभी कुछ समय लग सकता है. शोध टीम को यह भी भरोसा है कि नए टेस्ट से अभी तक एएसडी के अज्ञात कारण का भी पता चल सकेगा. भारत में 250 से 1 बच्चे में ऑटिज्म होने की संभावना है, हालांकि यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है क्योंकि हो सकता है कि बहुत से बच्चों की जांच ही नहीं की गई है.
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(PTI से मिले इनपुट के साथ)
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