“आपको बस खुश रहना चाहिए और जरा कम नाटकीय रहिए.” भारत में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से ग्रस्त किसी भी शख्स को आमतौर पर लोग यही सलाह देते हैं. यह साल 2018 है और अभी भी हम इस समस्या को गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं हैं. यहां एक राष्ट्रीय अध्ययन के नतीजे हम पेश कर रहे हैं, जो आपके सामने सारी स्थिति साफ कर देगा और जिसे जान कर आप निश्चय ही दहल उठेंगे.
प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लैंसेट के 14 नवंबर के अंक में प्रकाशित देश के पहले राज्यस्तरीय अध्ययन में कहा गया है कि आत्मघाती कदम उठाना और खुदकुशी, डिप्रेशन (अवसाद) और एनजाइटी (चिंता विकार) की समस्या पूरे भारत में, खासकर शिक्षित और शहरीकृत राज्यों में, बढ़ती जा रही है.
अध्ययन में अन्य बातों के साथ-साथ भारत में अपंगता और सेहतमंद उम्र में कमी का पता लगाया गया. भारत में अपंगता के प्रमुख कारण इस प्रकार थे
साल 2016 में अपंगता की आयु को घटाने के बाद बाकी बचे जीवन (डिसएबिलिटी-एडजस्टेड लाइफ ईयर्स DALY) या अपंगता से स्वस्थ जीवन के कम हो गए साल के लिए जिम्मेदार बीमारियों की लिस्ट इस तरह हैः
DALY के प्रमुख कारणों में डिप्रेसिव और एनजाइटी डिसऑर्डर क्रमशः 21वें और 26वें पायदान पर हैं. जबकि इश्कीमेक (टिश्यू या ऊतक को रक्तसंचार का रुक जाना) हार्ट डिजीज लिस्ट में पहले नंबर पर है.
एनजाइटी डिसऑर्डर, डिप्रेसिव डिसऑर्डर और सेल्फ हार्म ये सभी एक दूसरे से जुड़े मुद्दे हैं. एनजाइटी डिसऑर्डर बढ़कर डिप्रेसिव डिसऑर्डर में तब्दील हो सकता है और फिर यह सेल्फ हार्म या खुदकुशी का प्रमुख कारण बन सकता है, और यह आर्थिक उत्पादन पर भी असर डाल सकता है.
डिप्रेशन और एनजाइटी डिरऑर्डर अक्षम बनाता है और इसके नतीजे में अपंगता हो सकती है.
यह समग्र हेल्थ लॉस इंडेक्स मौत और अपंगता दोनों [अपंगता से स्वस्थ जीवन के कम हो गए साल (DALYs), या स्वस्थ जीवन की हानि] पर संयुक्त रूप से विभिन्न बीमारियों और चोटों के असर का आकलन करने के बाद तैयार किया गया है.
उपेक्षित मानसिक स्वास्थ्य
रिपोर्ट में भी वही बात साफ-तौर पर कही कही गई है जिस बात को मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे. भारत में गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट है.
भारत में साल 2016 में आत्मघात के लिए DALY दर संसार में इसी स्तर के अन्य विकसित क्षेत्रों की तुलना में 1.8 ऊंची है
द इंडिया स्टेट लेवल डिजीज बर्डन इनिशिएटिव
भारत को संसार की सुसाइड कैपिटल कहा जाता है, जहां साल 2013 में जारी आंकड़ों के अनुसार 10-24 आयु वर्ग में सालाना 63,000 आत्महत्याएं की गईं.
देश में युवाओं में सेल्फ हार्म और शरीर को काट लेना आम हो गया है. हालांकि इसके समर्थन में सटीक डाटा जमा करना मुश्किल होगा, लेकिन विभिन्न अध्ययनों ने यह साबित किया है.
द क्विंट से बात करते हुए बाल मनोचिकित्सक डॉ. अमित सेन कहते हैं कि बच्चों और बड़ों में डिप्रेशन और एनजाइटी जैसी मेंटल हेल्थ समस्याएं इनके बढ़ने का नतीजा हैं.
अगर हेल्थ बर्डन अध्ययन हमारे नौजवानों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या को सामने लाता है तो हम इसका स्वागत करेंगे. 10 से 24 साल आयु वर्ग के युवाओं में खुदकुशी मौत का सबसे बड़ा कारण है. साल 2013 में 63,000 मौतें भी पूरी तरह रिपोर्ट नहीं की गई हैं, फिर भी यह संख्या डरावनी है.वास्तविक दबाव और भी ज्यादा हो सकता है.डॉ. अमित सेन, बाल मनोचिकित्सक
इन अन्य राज्यों में हेल्थ लॉस का छठा बड़ा कारण सेल्फ हार्म है, उत्तर-पूर्वी राज्यों में 11वां और EAG राज्यों (बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश,ओडिसा, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश) में 15वां है.
जब ब्ल्यू व्हेल गेम का शोर मचा हुआ था, तो मंत्री से लेकर अदालत तक सभी इसके बारे में बात कर रहे थे, लेकिन किसी का भी इसके पीछे मानसिक स्वास्थ्यकी समस्या की तरफ ध्यान नहीं गया. वास्तव में हमें अपनी नौजवान पीढ़ी की मानसिक स्वास्थ्य की समस्या के निदान के लिए सामुदायिक दखल की जरूरतहै. यह जिम्मेदारी सरकार को उठानी चाहिए.डॉ. अमित सेन, बाल मनोचिकित्सक
अध्ययन बताता है कि महाराष्ट्र, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल उन 10 राज्यों में शामिल हैं, जहां देश के अन्य हिस्सों की तुलना में एनजाइटी डिसऑर्डर की ज्यादा समस्या पाई गई.
(ये स्टोरी पहले द क्विंट पर पब्लिश हो चुकी है)
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