भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करके अपनी जिंदगी खत्म कर लेता है. जब युवा वयस्कों की आत्महत्या से मौत की बात आती है, तो हम इसमें सबसे आगे हैं. फिर भी देश में मानसिक स्वास्थ्य समस्या पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
डॉ हरीश शेट्टी मुंबई में डॉ एल एच हीरानंदानी अस्पताल में एक मनोचिकित्सक हैं. वह सक्रिय रूप से लोगों में व्याप्त उन मिथकों की हकीकत उजागर करने के लिए काम करते हैं, जो हम आत्महत्या करने वाले लोगों के बारे में सोचते हैं. ये भ्रामक मिथक उन लोगों की एक छवि को कायम रखते हैं, जो खुद को नुकसान पहुंचाते हैं. इसके चलते हम जरूरत पड़ने पर उस शख्स को बचा पाने में विफल रहते हैं.
डॉ शेट्टी ने अपने ब्लॉग पोस्ट में आत्महत्या के बारे में इन मिथकों और हकीकतों पर प्रकाश डाला है. हम इन्हें उनकी अनुमति के साथ फिट पर पेश कर रहे हैं.
हम आत्महत्या के बारे में क्या जानते हैं? आइए कुछ मिथकों की हकीकत समझते हैं.
मिथकः जो आत्महत्या के बारे में बात करते हैं, उनके इस पर अमल करने की गुंजाइश बहुत कम होती है.
तथ्य: जो लोग धमकी देते हैं, उनके द्वारा उन लोगों के मुकाबले आत्महत्या करने की आशंका बहुत ज्यादा होती है, जो इस बारे में बात नहीं करते. इसलिए जो धमकी देते हैं, उन्हें चुनौती मत दीजिए.
मिथकः जो लोग एक बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके होते हैं, वे अपनी गलती से सीख लेते हैं और उनका दोबारा ऐसा कदम उठाने की आशंका कम होती है.
हकीकतः जो शख्स आत्महत्या की नाकाम कोशिश कर चुका है, अन्य लोगों के मुकाबले उसके द्वारा भविष्य में दोबारा कोशिश करने की संभावना ज्यादा होती है.
मिथकः अगर किसी के परिवार में किसी ने आत्महत्या की है, तो ये घटना ऐसे लोगों को भावनात्मक झटका लगने पर आत्महत्या जैसा कदम उठाने से रोकती है.
हकीकतः अवसाद परिवार में फैलता है और आत्महत्या की प्रवृत्ति परिवार में कई पीढ़ियों तक देखी जाती है.
मिथकः जो लोग मानसिक रूप से बीमार हैं, सिर्फ वही आत्महत्या कर सकते हैं.
हकीकतः मानसिक रूप से बीमार लोगों के आत्महत्या करने की आशंका अधिक होती है, लेकिन जो लोग ऐसे नहीं हैं, वह भी कुछ स्थितियों में ऐसा कर सकते हैं. उदाहरण के लिए- वित्तीय घाटा, अचानक किसी जानलेवा बीमारी का पता लगना, परीक्षा में फेल हो जाना.
मिथकः मजबूत दिमाग वाले आत्मविश्वासी लोग कभी आत्महत्या नहीं करते.
हकीकतः मजबूत दिमाग जैसी कोई चीज नहीं है. दिमाग न्यूरॉन्स (तंत्रिका तंत्र) के बने होते हैं ना कि स्टील के. हममें से हर कोई दुख, अवसाद का शिकार होता है, हालांकि कुछ लोग ज्यादा आसान शिकार होते हैं. आत्महत्या मानसिक दशा की पैदाइश है, इसलिए इसका इलाज किए जाने की जरूरत है.
मिथकः आत्महत्या की कोशिश दूसरों को धमकाने/अपनी बात मनवाने के लिए की जाती है, इसलिए ऐसी कोशिश करने वालों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए.
हकीकतः खुद को नुकसान पहुंचाने की हरकत मदद की पुकार हो सकती है, इसलिए इससे संवेदनशीलता से निपटना चाहिए.
मिथकः आत्महत्या की कोशिश की बात छिपानी चाहिए और दोस्तों व रिश्तेदारों की मदद से इसका इलाज करना चाहिए.
हकीकतः आत्महत्या की कोशिश के बारे में मनोचिकित्सक/काउंसलर/फिजीशियन को बताया जाना चाहिए. उनके आकलन से कारणों का निदान करने में मदद मिलेगी. दोस्त, रिश्तेदार ट्रीटमेंट में मदद कर सकते हैं.
मिथकः छात्रों की आत्महत्या के लिए हमेशा शैक्षिक संस्थान जिम्मेदार होते हैं.
हकीकतः शैक्षिक संस्थान सारी आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकते, लेकिन काउंसलिंग और मेंटल हेल्थ सुविधाओं का अभाव मनोवैज्ञानिक लापरवाही है.
मिथकः आत्महत्या खराब परवरिश का नतीजा है और मेंटल हेल्थ केयर में लापरवाही से बच्चों के लिए जोखिम बढ़ जाता है.
हकीकतः हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता है, लेकिन जागरुकता की कमी और मेंटल हेल्थ पर ध्यान नहीं देना कारण हो सकता है. जिस समय सबसे ज्यादा मदद की जरूरत हो, उस समय पेरेंट भी मदद से इनकार कर दें, तो दोहरा नुकसान हो सकता है.
मिथकः हादसों और आपदाओं के उलट आत्महत्या शर्म और अपमान का विषय है.
हकीकतः आत्महत्या दिमाग के हादसे का शिकार हो जाना है और यह किसी भी परिवार को निशाना बना सकता है. जब कोई आत्महत्या के ख्याल के बारे में कहता है तो उसे फौरन काउंसलर/मनोचिकित्सक को उसी तरह दिखाना चाहिए जैसे सीने में दर्द होने पर किसी हार्ट स्पेशलिस्ट को दिखाया जाता है.
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे) 10 सितंबर को मनाया जाता है. ये स्टोरी Fit पर अगस्त 2018 में पब्लिश की गई थी.
(डॉ हर्ष शेट्टी मुंबई में डॉ. एल.एच. हीरानंदानी हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक हैं.)
(अगर आपके मन में आत्महत्या के ख्याल आते हैं, या किसी ऐसे शख्स को जानते हैं, जिसे मदद की जरूरत है तो उसके लिए इस विश्वसनीय मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स की राज्यवार लिस्ट की मदद जरूर लें.)
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