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प्रियजन की आत्महत्या से दुखी इंसान की कैसे करें मदद?

प्रियजन की खुदकुशी व्यक्ति को अंदर ही अंदर तोड़ देती है.

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किसी प्रियजन की आत्महत्या व्यक्ति को भीतर से तोड़ कर रख देती है. अगर व्यक्ति की मौत कारण कोई बीमारी या दुर्घटना हो, तो इसे स्वीकार किया जा सकता है. लेकिन जब कोई अपना खुद की जिंदगी को अपने हाथों खत्म कर लेता है, तो बहुत तकलीफ होती है.

इस दुख के साथ ग्लानि की भावना भी आती है. इसके पीछे वो हिंसा जिम्मेदार होती है, जो अक्सर इस तरह की मौत के साथ जुड़ी होती है. इसका सामना करना आसान नहीं होता है.

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भारत में आत्महत्या के मामले

  • भारत में साल 2014 में दुर्घटना के बाद मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या था.
  • प्रति एक लाख भारतीयों में 10 से 11 लोग आत्महत्या करते हैं.
  • साल 2013 में 10-14 आयु वर्ग के 3,594 किशोरों ने आत्महत्या की. वहीं 15-19 साल की उम्र वाले 2,3748 किशोरों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. अपने हाथों अपनी जिंदगी खत्म करने वालों में 20-24 साल आयु वर्ग के 35,618 लोग शामिल थे.
  • साल 2014 में हर घंटे कम से कम 15 आत्महत्या हुई. महाराष्ट्र में सबसे अधिक आत्महत्याएं (16,307) हुईं. वहीं चेन्नई (2,214) इन शहरों की सूची में सबसे निचले स्थान पर रहा.
  • हर एक आत्महत्या से कम से कम सात लोग गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं.

(सोर्सः इंडियन एक्सप्रेस, योरस्टोरी, स्नेहा इंडिया)

तो, आप कैसे उन लोगों की मदद कर सकते हैं, जिनके किसी करीबी ने आत्महत्या की हो? यहां तक कि वे दुख के पांच चरणों- अस्वीकार, गुस्सा, बार्गिनिंग, अवसाद और स्वीकृति से गुजरते हैं. ऐसे में व्यक्ति (महिला या पुरुष) को सदमे से उबरने के लिए विशेष मदद की जरूरत होती है.

जरूरत के आधार पर करें सहयोग

एक अच्छे श्रोता की तरह उसकी बात सुनिए. जैसे कोई दुख से पीड़ित व्यक्ति की मदद करना चाहता है, तो इसके लिए महत्वपूर्ण है कि वह उसकी भावनाओं को ठीक से समझे. इसके बाद ही उसकी सही मायनों में मदद की जा सकती है.

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इसके लिए तीन चीजें महत्वपूर्ण हैं:

  1. घटना या हादसा कितने समय पहले हुआ है. दुख के कई चरण हैं. एक आदमी संयम, निराशा, क्रोध और इस तरह की कई अन्य भावनाओं से गुजर रहा होता है. इसमें महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति की मौलिक भावनाओं के प्रति संवेदनशील तरीके से प्रतिक्रिया दी जाए.
  2. यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि भावनाएं समय के साथ बदलती रहेंगी. इनमें उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा. इसलिए व्यक्ति की मौजूदा स्थिति को ध्यानपूर्वक देखें.
  3. देखें कि किस आदमी की मौत हुई है. उदाहरण के लिए जीवनसाथी की आत्महत्या माता-पिता की आत्महत्या से बिल्कुल अलग है. यह बच्चे की आत्महत्या से भी भिन्न है. हर स्थिति में व्यक्ति अलग-अलग विचारों से व्यग्र हो जाएगा.

डॉ अनुराधा सोवानी, प्रोफेसर एंड हेड, डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी, एसएनडीटी वूमन्स यूनिवर्सिटी, मुंबई

यह महत्वपूर्ण है कि आपका सहयोग या मदद बिना उनके दायरे और अधिकार में दखल दिए बगैर हो.

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इस बात के प्रति आश्वस्त होने के बाद कि दुखी व्यक्ति अपने आप को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा, उनको अकेला छोड़ने या थोड़ा समय देने की जरूरत होती है. चीजों को लेकर या भावनाओं में चमत्कारिक बदलाव के लिए बहुत जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है. इस तरह की घटना से उबरने में व्यक्ति को 4 से 11 महीने का समय लग जाता है. ऐसे में धैर्य रखना जरूरी होता है.
डॉ रोहन जहागीरदार, कंसल्टेंट साइकाइट्रिस्ट
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उसकी भावनाओं का सम्मान करें

हर व्यक्ति सदमे को लेकर अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करता है. उसकी मौलिक (प्राइमरी) भावनाएं दुख से लेकर ग्लानि व अवसाद जैसे कई रूप में हो सकती हैं. ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि आप उस दुखी व्यक्ति पर अपनी भावनाएं न थोपें. या उसे भावनाओं को किस तरीके से व्यक्त करना है, इस बारे में अपनी सोच के अनुसार सलाह न दें.

व्यक्ति की भावनाओं का सम्मान करें. कुछ लोग बहुत तेज आवाज में रोते हैं, कुछ लोग धीमी आवाज में रोते हैं. कुछ लोग बहुत गुस्से में आ जाते हैं. यह महत्वपूर्ण है कि आप लोगों को अपनी सोच के अनुसार भावनाओं को व्यक्त करने के लिए जोर न डालें. हम कहते हैं कि इस तरह की घटना के बाद रोने से दुख कम हो जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है. लोगों को अपने तरीके से इस दुख से निपटने दे और उन्हें इसके लिए समय देने के साथ ही थोड़ा अकेला छोड़ दें.
डॉ रोहन जहागीरदार
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निरंतर मदद की जरूरत

जैसी परंपरा है कि किसी भी मौत के बाद बहुत सारे लोग संवेदना व्यक्त करने आते हैं. वे लोग घटना के तुरंत बाद शोक संतप्त परिवार के साथ अपना समर्थन व्यक्त करते हैं. लेकिन कुछ दिन बाद, शोकाकुल व्यक्ति बिल्कुल अकेला हो जाता है. इस तरह व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाता है.

यदि आप किसी की मदद करना चाहते हैं, तो कृपया लंबे समय तक उसकी मदद कीजिए. आप उस व्यक्ति के साथ लंबे समय तक रहें जिसने अपने करीबी को खो दिया है. भले ही इसमें थोड़ी सी असहजता महसूस हो, भले ही वे आपको जाने को कहे. आपको इस बात को समझना होगा कि वह कब आपका साथ चाहता है और कब वह अकेला रहना चाहता है. कोई भी हर समय आपसे बात नहीं कर सकता है. सिर्फ उसे अपनी मौजूदगी का एहसास कराते रहें.
डॉ अनुराधा सोवानी
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काम में हाथ बंटाएं

डॉ. जहागीरदार सलाह देते हैं कि निरंतर मदद का महत्वपूर्ण हिस्सा दैनिक जीवन के कामों में जहां तक संभव हो हाथ बंटाना भी शामिल है. इससे भी दुख में डूबे व्यक्ति की मदद होती है. यदि उस घर में कोई बच्चा है, तो कुछ समय के लिए उसकी ही देखभाल करें. इससे पेरेंट्स को कुछ दिनों के लिए ही सही बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों से राहत मिल जाएगी.

आमतौर पर जो माना जाता है, उसके विपरीत काम में डूबने से इस प्रकार के दुख से निपटने में मदद नहीं मिलती है. ऐसे में महत्वूर्ण है कि इसे अपने तरीके से ही चलने दें.

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पुरानी घटनाओं की याद न दिलाएं

पुरानी घटनाओं को याद करना सबसे खराब चीज हैं, जो हम संवेदना जताने के नाम पर करते हैं. विशेषकर भारतीय समाज में, शोकाकुल परिवार में लोगों का रेला आता है. इनमें से लगभग हर आदमी यही पूछता है कि ‘ये कैसे हो गया’. क्या आपने कभी सोचा है कि इस सवाल से सामने वाले पर क्या गुजरती है.

हर बार आप ये पूछकर पहले से दुखी व्यक्ति को सबकुछ याद दिला कर, उसे और दुखी कर देते हैं. ऐसा मत करें. इस विषय पर बिल्कुल ही चर्चा न करें.
डॉ रोहन जहागीरदार

और जहां परिवार और दोस्त असफल हो जाते हैं, ग्रीफ सपोर्ट ग्रुप करिश्मा कर देते हैं. भारत में ऐसे कई समूह हैं, जो शोकाकुल परिवार व लोगों को मदद करते हैं. इसमें वे लोगों से दुख व शोक की कहानियां साझा करते हैं. इसमें प्रियजनों की आत्महत्या से मौत भी शामिल है.

विश्वास कीजिए, वे जितनी मदद हो सकती है, करते हैं.

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(यदि आपके मन में आत्मघाती विचार आ रहे हैं या आप किसी को जानते हैं जिसे मदद की जरूरत है, तो कृपया उन्हें इन विश्वसनीय मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल्स की राज्यवार सूची के बारे में बताएं.)

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