Thalassemia Test: इन सर्दियों में लाखों शादियां होंगी और इस दौरान लाखों परिवारों को अपने जीवन के नए और खुशनुमा अध्याय की शुरुआत करने का मौका मिलेगा. अमीर और गरीब सभी अपने-अपने सामाजिक स्तर के हिसाब से इन रीति-रिवाजों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे और उन्हें इस पवित्र शुरुआत के साथ कुछ उम्मीदें, आशाएं होंगी.
इन खुशियों को और भी सुरक्षित बनाने के लिए क्या हम कुछ कर सकते हैं?
इसका आसान जवाब है "हां". इन नई-नई खुशियों को बनाए रखने और अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने के लिए, हमें हर दंपती को थैलसीमिया के बारे में जागरूक बनाने की जरूरत है.
शादी से पहले कराएं थैलसीमिया टेस्ट
यह एक गंभीर बीमारी है, जिसमें 6 महीने की उम्र से ही बच्चों में नियमित रूप से जीवन भर खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. यह एक प्रकार की जेनेटिक ब्लड संबंधी समस्या है, जिसमें शरीर में पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है.
हीमोग्लोबिन, रेड ब्लड सेल्स का एकीकृत (integrated) हिस्सा है और इसकी कमी होने पर शरीर में ऑक्सीजन का फ्लो कम हो जाता है. इसकी वजह से लाइफ थ्रिएटनिंग बीमारियां हो सकती हैं.
यह एक प्रकार की जेनेटिक गड़बड़ी की वजह से होती है, जो माता-पिता से उनके बच्चों तक पहुंच जाती है.
शादी के साथ-साथ हाई-परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी (एचपीएलसी) ब्लड टेस्टिंग के बारे में जागरूकता से इस बीमारी से आसानी से बचा जा सकता है. एचबी ए2, एचबी फ और असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगाने का संवेदनशील और सटीक तरीका है. यह टेस्ट यह जानने के लिए किया जाता है कि क्या मां को थैलसीमिया जैसी कोई ब्लड संबंधी बीमारी है?
यह टेस्ट बहुत महंगा नहीं होता है और गर्भधारण करने से पहले जेनेटिक काउंसिलिंग के साथ-साथ यह टेस्ट कराना जरूरी होता है.
शादी से पहले की जाने वाली जांच जरुरी
महिला में गर्भावस्था के पहले 12 हफ्तों के दौरान अगर आयरन की कमी होती है, तो इसकी वजह से बच्चे को कम आईक्यू और न्यूरल ट्यूब इफेक्ट्स जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि उस समय भ्रूण का मस्तिष्क विकसित हो रहा होता है. इस समस्या की वजह से बच्चा परेशानियों में फंस जाता है.
शादी से पहले की जाने वाली जांच, शादी करने की योजना बना रहे जोड़ों की सेहत और अच्छे जीवन को बढ़ावा देने के लिहाज से महत्वपूर्ण है और ये आने वाली पीढ़ी को आसानी से कई बीमारियों से बचा सकती है.
शादी करने से पहले लड़का-लड़की को जेनेटिक और इन्फेक्शियस बीमारियों की जांच करानी चाहिए.
थैलसीमिया जैसी जेनेटिक बीमारियों की रोकथाम में यह पॉजिटिव रवैया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इससे न सिर्फ शादी करने जा रहे लोगों बल्कि उनके बच्चों को भी सुरक्षित बनाए रखने में मदद मिलती है.
आम तौर पर जैसे ही किसी महिला के गर्भवती होने का पता चलता है, हम उसकी देखभाल करना शुरू कर देते हैं. दुर्भाग्यवश तब तक बच्चे में किसी भी तरह की दिक्कत होने से बचाने के लिहाज से बहुत देर हो चुकी होती है, जिसकी वजह से माता-पिता और बच्चों को जीवन भर के दुख का सामना करना पड़ सकता है.
इससे बचने के लिए और सभी परिवारों की खुशियां सुनिश्चित करने के लिए, हेमेटोलॉजी विभाग सभी नव-विवाहितों को अपने आयरन के लेवल की जांच कराने और अगर जरूरत हो तो आयरन सप्लिमेंट लेने के लिए प्रोत्साहित करता है. असल में आयरन सप्लिमेंट और आयरन युक्त खानपान थैलसीमिया से पीड़ित व्यक्तियों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि थैलसीमिया से पीड़ित व्यक्तियों में खानपान से अधिक मात्रा में आयरन अब्सोर्ब करने का ट्रेंड होता है.
यह अतिरिक्त आयरन शरीर में इकट्ठा हो जाता है और दिल और लिवर जैसे अंगों को नुकसान पहुंचाता है.
इसके अलावा, ग्रामीण भारत में कई लोगों को पता ही नहीं होता है कि उन्हें थैलसीमिया है या वे थैलसीमिया जीन के वाहक हैं इसकी वजह से बीमारी का पता लगाने और उपचार में देरी हो सकती है जिससे थैलसीमिया से पीड़ित लोगों की सेहत को नुकसान हो सकते है.
दंपतियों को शादी से पहले कंप्लीट ब्लड काउंट और हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस जैसी जांच कराने के लिए प्रेरित करके हम व्यक्तियों, परिवारों और आने वाली पीढ़ियों की सेहत को सुरक्षित रख सकते हैं.
सोना मूल्यवान हो सकता है, लेकिन शादियों और परिवारों की खुशियों को हमेशा के लिए बनाए रखने में आयरन की भूमिका अमूल्य है.
(ये आर्टिकल गुरुग्राम, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्रिंसिपल डायरेक्टर एंड चीफ बीएमटी-डॉ. राहुल भार्गव ने फिट हिंदी के लिये लिखा है.)
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