यह मानी हुई बात है कि कोकाकोला का केन कितना भी नुकसानदेह क्यों न हो, हर बच्चे को यह पसंद है. इसे पीने से स्वास्थ्य पर होने वाले बुरे असर की जानकारी भले ही सभी को पता हो, पर हर घर में आपको कोक जरूर मिल जाएगा.
“अनिल,” एक दिन मेरी मां ने मेरे पिता से कहा, “हमें अब घर पर कोकाकोला लाना बंद कर देना चाहिए. ये जहरीला है और हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं.” मेरे पिता का जवाब ‘हां’ में ही था.
मां ने आगे कहा, “मैंने आज नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन का एक आर्टिकल पढ़ा. इसके हिसाब से एक दिन में हमें 20-25 ग्राम शक्कर लेनी चाहिए, जबकि कोक के एक केन में आठ बड़े चम्मच शक्कर होती है, जो कि करीब 120 ग्राम बैठती है.”
“हम कब से जहर पी रहे हैं!” मां ने जोड़ा.
हमने भले ही कोकाकोला को घर लाना बंद कर दिया हो, पर अब भी कंपनी करोड़ों लोगों को दिन-रात यह जहर बेच रही है.
आम तौर पर एक भारतीय के घर के भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा काफी ज्यादा होती है. खाने में कार्बोहाइड्रेट एक जरूरी अवयव है, पर इसकी अधिकता से परेशानियां बढ़ जाती हैं. खासतौर पर मीठा आगे चलकर जहर की तरह हो जाता है.
IMaCS की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच दशकों में भारतीयों के भोजन में शक्कर का इस्तेमाल 5 फीसदी से बढ़कर 13 फीसदी हो गया है. भोजन में प्रति सप्ताह एक से दो कोक का इजाफा कर दीजिए और फिर डायबिटीज, ओबेसिटी और दांत खराब होने की रेसिपी तैयार है.
क्या कहते हैं पीडियाट्रीशियन और एक्स एम्प्लॉई
एक पीडियाट्रीशियन डॉ. विपिन वैश का कहना है कि कोक बेहद नुकसानदेह है. खासतौर पर बच्चों को इससे दूर रखना चाहिए.
कोक एसिडिक है और इसमें इतनी कैलोरी है कि इसे पीने वाले बच्चों की भूख में तुरंत कमी आने लगती है. इसमें मौजूद कैफीन बच्चों की नींद को भी नुकसान पहुंचा सकती है.डॉ. विपिन वैश, पीडियाट्रीशियन
एक रिपोर्ट में कोकाकोला के पुराने एम्प्लॉई क्रिस हेमिंग्स ने कंपनी के उन तरीकों के बारे में बताया है, जिनके जरिए वह अपने प्रॉडक्ट्स को हानिकारक बताने वाली रिपोर्ट्स से बच निकलती है.
हम कोकाकोला जैसी कंपनियों को फीफा, ओलंपिक और रग्बी वर्ल्डकप जैसे आयोजनों को प्रायोजित करने का मौका देते हैं. ऐसे निर्णय लेने से पहले एथिक्स पर ध्यान नहीं देते. इन आयोजनों पर करोड़ों डॉलर खर्च करने के बाद हम फिजिकल एक्टिविटी की तुलना एक फिजी ड्रिंक से करने लगते हैं. यह हास्यास्पद है, तब भी कोई इस पर सवाल नहीं उठाता.क्रिस हेमिंग्स
कम से कम भारत में कोकाकोला ने जितना नुकसान हमारे स्वास्थ्य को पहुंचाया है, उतना ही हमारे वातावरण को भी पहुंचाया है. कहा जाता है कि दुनिया की यह सबसे बड़ी पेय पदार्थ बनाने वाली कंपनी भारत को सुखा रही है, क्योंकि इसके प्लांट्स को उत्पादन के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में पानी चाहिए होता है.
कड़वा सच: 1 लीटर कोकाकोला बनाने में 2.7 लीटर पानी खर्च होता है.
उदाहरण के लिए 2004 में केरल में एक कोकाकोला प्लांट को बंद करा दिया गया था, क्योंकि यह ग्राउंडवाटर को प्रदूषित कर रहा था. बाद में एक कोकाकोला प्रवक्ता ने द गार्जियन को बताया,
हम पानी की उचित मात्रा के इस्तेमाल करने पर जोर दे रहे हैं. भारत में 2000 से 2004 के बीच हमने पानी के इस्तेमाल को 24 फीसदी घटाया है. अब तक हमने अपने 26 प्लांट्स में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा दिया है.
क्या कहना है कोक का
कोकाकोला का कहना है कि वह सामाजिक रूप से उत्तरदायी कंपनी बनने के लिए लगातार कदम उठाती रहती है. कंपनी के अनुसार, उसने सभी के लिए सुरक्षित ड्रिंक बनाने के लिए मेडिकल नॉलेज का इस्तेमाल किया है.
एक कंपनी के तौर पर हम चाहते हैं कि हमारे ड्रिंक्स का इस्तेमाल किफायत से करें और उन्हें एक हेल्दी डाइट और लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाएं. भारत में हम डाइट कोक और कोक जीरो जैसे लो कैलोरी और नो कैलोरी ड्रिंक भी उतार चुके हैं. हम अपने ड्रिंक्स की मार्केटिंग भी जिम्मेदारी के साथ करते हैं. हम 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए एडवर्टाइजिंग नहीं करते और हमारे ड्रिंक्स के पैकेट पर न्यूट्रीशन से जुड़ी जानकारी साफ दी गई होती है.कोकाकोला ने ‘द क्विंट’ को बताया
पिएं मगर ध्यान से
मेरा परिवार कोकाकोला से दूरी बना चुका है, और मेरे कई दोस्त भी. हम न तो यह कह सकते हैं कि यह पूरी तरह सुरक्षित है, न ही इसे पूरी तरह नुकसानदायक बता सकते हैं. ऐसे में बेहतर होगा कि इन ड्रिंक्स का इस्तेमाल सोच-समझकर किया जाए.
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