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सांसों के लिए संघर्ष: वेंटिलेटर की कमी से जा रही बच्चों की जान

वेंटिलेटर की कमी से देश की राजधानी में दम तोड़ रहे हैं बच्चे.

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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास

'हमने उसे हर मिनट मरते हुए देखा है, 5-6 दिन तक मेरे बेटे ने लगातार मौत से संघर्ष किया और फिर वो शांत हो गया, हमेशा के लिए...', ये बताते हुए फरवरी 2019 में अपने 2 साल के बेटे फरहान को खोने वाले अशफाक की आंखें नम हो जाती हैं.

लेकिन सिर्फ किसी बीमारी के कारण ही फरहान की जान नहीं गई. अशफाक के मुताबिक उनका बेटा ठीक हो जाता, अगर समय पर उसे वेंटिलेटर सपोर्ट दे दिया जाता.

कहा जा रहा है कि लोक नायक जय प्रकाश (LNJP) हॉस्पिटल, दिल्ली के इस सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटर की कमी घातक साबित हो रही है.

वेंटिलेटर के लिए जाना पड़ा कोर्ट

अशफाक की बीवी फरहान की मौत के बारे में बात नहीं करना चाहती हैं. उनकी नम आंखें सवाल करती हैं, 'क्या मेरे बेटे को वापस ला सकते हो?'

नॉर्थ दिल्ली के खजूरी खास इलाके में एक तीन मंजिला घर में रहने वाले अशफाक की फैमिली में हर किसी के पास अपने दुलारे फरहान के बारे में बताने के लिए कुछ न कुछ है.

जब हॉस्पिटल अथॉरिटी ने अशफाक को बताया कि आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) में जगह नहीं है और इसलिए वो वेंटिलेटर की व्यवस्था नहीं कर सकते, तब परिवार ने फरहान के लिए एंबू बैग का इस्तेमाल किया.

हमें बताया गया कि बच्चे को सांस लेने में कठिनाई हो रही है, आपको एंबू बैग से ही मैनेज करना होगा. हमें एंबू बैग को हाथ से दबाते रहने के लिए कहा गया.
अशफाक अली अंसारी (वेंटिलेटर की कमी का केस दर्ज कराया है) 
वेंटिलेटर की कमी से देश की राजधानी में दम तोड़ रहे हैं बच्चे.
फरहान के मेडिकल डॉक्यूमेंट्स दिखाते फरहान के पिता अशफाक अली
(फोटो: आकांक्षा कुमार/द क्विंट)

अशफाक ने हॉस्पिटल स्टाफ की बात मान ली और उन्हें लगा कि एंबू बैग से फरहान की हालत में सुधार आ जाएगा.

तीन दिनों तक फरहान ट्यूब से जुड़े रबर के उस पंप की मदद से सांस लेता रहा. मूल रूप से, ये सिर्फ सक्शन था, जो कि बच्चे को सांस लेने में मदद कर रहा था.

अपने बच्चे को वेंटिलेटर की सुविधा न मिलता देख अशफाक ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, ताकि फरहान को जल्द से जल्द वेंटिलेटर पर रखा जा सके.

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दिल्ली हाई कोर्ट में अशफाक की याचिका से सच्चाई सामने आ गई क्योंकि दिल्ली सरकार ने जो जवाब दिया, उससे मांग और आपूर्ति के बीच अंतर का पता चला.

कोर्ट को दिए जवाब में बताया गया कि दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले 33 हॉस्पिटल में आईसीयू और नॉन-आईसीयू बेडों में से सिर्फ 3.4 फीसदी बेड वेंटिलेटर के साथ हैं.

डॉक्टर्स बताते हैं कि आदर्श तौर पर वेंटिलेटर की संख्या बेडों की 10 फीसदी होनी चाहिए. कोर्ट ने केंद्र सरकार के अंतर्गत चलने वाले अस्पतालों की जानकारी मांगी.

इस मामले ने सरकारी अस्पतालों की सच्चाई का खुलासा किया है. 1,000 बेडों के लिए 400 वेंटिलेटर पर्याप्त नहीं हैं. हरेक की जिंदगी का दायित्व कानून के तहत सरकार का है.
अशोक अग्रवाल, अशफाक के वकील
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तीन सरकारी अस्पतालों ने एक नवजात को वेंटिलेटर पर रखने से इनकार किया

अपने बच्चे को खोने वाले अशफाक अकेले नहीं हैं. खजूरी खास में अशफाक के घर से कुछ गली दूर एक और परिवार ने अपनी एक दिन बेटी को साल 2017 में खो दिया, जब तीन सरकारी अस्पतालों ने वेंटिलेटर की सुविधा देने से इनकार कर दिया.

खदीजा अपनी बच्ची का चेहरा भी नहीं देख पाईं, जिसका नाम घरवालों ने शाहिदा रखा था.

सितंबर 2017 की बात है, जग प्रवेश चंद्र हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने खदीजा की फैमिली से कहा कि वे अपनी नवजात बच्ची को किसी ऐसे हॉस्पिटल ले जाएं, जहां वेंटिलेटर की सुविधा मिल सके. खदीजा के ससुर रिजवान मंसूरी तीन सरकारी अस्पताल पहुंचे, लेकिन तीनों जगह इनकार कर दिया गया.

वेंटिलेटर की कमी से देश की राजधानी में दम तोड़ रहे हैं बच्चे.
अपनी बड़ी पोती के साथ रिजवान मंसूरी
(फोटो: आकांक्षा कुमार/द क्विंट)
काफी मशक्कत के बाद हम डॉक्टर से बात कर पाए, लेकिन उनका बर्ताव ठीक नहीं था. उन्होंने कहा कि न तो ICU में जगह है और न ही उनके पास वक्त है. इसलिए मैंने पूछा, ‘हमें बताइए कि हम क्या करें?’
रिजवान मंसूरी (इन्होंने 2017 में अपनी एक दिन की पोती को खो दिया)

उन्हें रात 10 बजे से भोर में 4 बजे तक एंबू बैग इस्तेमाल करने पर मजबूर किया गया. लेकिन खदीजा की बेटी की मौत हो गई.

अशफाक और रिजवान दोनों ही मामले राजधानी दिल्ली में सरकारी अस्पतालों की हालत बेहतर करने की जरूरत पर जोर देते हैं. भारत में जहां पब्लिक हेल्थकेयर पर जीडीपी का 1.02 फीसदी खर्च किया जाता है, पहला कदम बजट आवंटन में बढ़ोतरी हो सकता है.

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