6 साल का मोहित राजस्थान के अलवर जिले के पिलावर गांव के अपने फार्म के पास स्कूल गया. उसके फार्म में बड़े थ्रेसिंग व्हील थे, जिससे गेहूं के फसलों की थ्रेसिंग की जाती थी. साल 2015 में, फरवरी की ठंडी सुबह मोहित जैकेट पहनकर व्हील के पास एक स्टूल पर खड़ा था.
दुर्भाग्य से उसके जैकेट की जिप व्हील में फंस गई और व्हील ने उसे खींच लिया.
उसे तुरंत ही जयपुर के महात्मा गांधी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में ले जाया गया, जहां उसे दिमागी रूप से मृत (ब्रेन डेड) घोषित कर दिया गया.
जब मोहन फाउंडेशन जयपुर सिटिजन फोरम के भावना जगवानी ने उनसे मोहित के अंग को दान करने के लिए बात की, तब उसके पिता के पास उस समय तक इसकी कोई जानकारी नहीं थी.
मिस भावना याद करते हुए कहती हैं कि मोहित के पिता को यह फैसला लेने में सिर्फ 15 मिनट लगे कि वह अपने बेटे की मौत के बाद भी किसी दूसरे बच्चे का जीवन बचाकर मोहित को जीवित रख सकते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हमेशा ऐसा नहीं होता है.
हालांकि, दिल, गुर्दा, जिगर संबंधित गंभीर बीमारियों से ग्रस्त बच्चों के इलाज के लिए अंगदान एक सबसे महत्वपूर्ण रास्ता बन गया है, लेकिन फिर भी बच्चों के लिए अंग की उपलब्धता की बहुत अधिक कमी है.
इस कमी के पीछे के कारणों को समझने के लिए सबसे पहले हमें ब्रेन डेथ के बारे में जानना चाहिए और यह भी जानना चाहिए कि आखिर डॉक्टर बच्चों में ब्रेन डेथ की जांच कैसे करते हैं?
बच्चों में ब्रेन डेथ
नवजातों, शिशुओं और बच्चों के ब्रेन डेथ (बीडी) को सुनिश्चित करना न्यूरोलॉजी फंक्शन की अनुपस्थिति आधारित एक क्लिनिकल डायग्नोसिस है, जिसमें इस बात की जानकारी प्राप्त की जाती है कि इनका कोमा से बाहर निकलना लगभग असंभव है.
ट्रांसपोर्टेशन ऑफ ऑर्गन एक्ट 2011 के अनुसार रोगियों को ब्रेन डेड घोषित करने से पहले डॉक्टर के लिए दोनों जांच करना अनिवार्य है. इसमें पहली जांच से न्यूरोलॉजी फंक्शन की अनुपस्थिति सुनिश्चित होती है, तो दूसरी जांच से यह पता लगता है कि उनकी स्थिति अपरिवर्तनीय है और रोगी को अब इस स्थिति से बाहर निकालना लगभग असंभव है.
भारत में जहां वयस्कों के लिए यह प्रक्रिया बिल्कुल स्पष्ट है, लेकिन बच्चों के लिए ऐसा नहीं है.
बाल चिकित्सा ब्रेन डेथ के लिए क्या है कानून?
बच्चों के अंगदान और प्रत्यारोपण के लिए जागरुकता पैदा करने के लिए फोर्टिस ऑर्गन रिट्राइवल एंड ट्रांसप्लांट ने सम्मेलन का आयोजन किया.
इस अवसर पर क्विंट से बात करते हुए फोर्टिस ऑर्गन रिट्राइवल एंड ट्रांसप्लांट के डायरेक्टर डॉ अवनीश सेठ कहते हैं:
भारत में बच्चों की ब्रेन डेथ के संबंध में कई अस्पष्टताएं हैं, क्योंकि बच्चों को ब्रेन डेड घोषित करने में यहां के डॉक्टर बहुत झिझक महसूस करते हैं. इसके कारण बहुत सारे अंग, जिसे दान दिया जा सकता है और दूसरे बच्चों का जीवन बचाया जा सकता है, वे ऐसे ही रह जाते हैं.डॉ अवनीश सेठ
सामान्यतः बच्चों के द्वारा दान किए गए अंग का प्रत्यारोपण बच्चों और वयस्कों दोनों में किया जा सकता है, लेकिन वयस्कों के अंग का प्रत्यारोपण बच्चों में नहीं किया जा सकता है.
और यहां तक कि बच्चों को ब्रेन डेड घोषित किए जाने के बाद भी उनके परिवार वालों को बच्चे के अंग को दान करने के लिए मनाना डॉक्टर के लिए काफी मुश्किल होता है.
परिवारों को समझाना
हालांकि, ब्रेन डेड बच्चों के परिवार वालों को बच्चों के अंग दान के लिए प्रोत्साहित और शिक्षित करना महत्वपूर्ण है लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है, उनके परिवार और विशेष तौर पर उनके माता-पिता की मानसिक स्थिति को समझना.
मोहन फाउंडेशन की मिस सुजाता सूर्यमूर्ति ने ब्रेन डेड बच्चों के कई परिवारों को अंग दान के लिए समझाया है.
बच्चों की मौत उसके माता-पिता के लिए अत्यधिक दुःख का क्षण होता है. मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के तौर पर हम उनके साथ सहानुभूति रखना भूल जाते हैं. यह समझना बहुत जरूरी है कि वे लोग अपने बच्चे की मौत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं और उनके लिए यह बहुत बड़ा झटका होता है.सुजाता सूर्यमूर्ति, मोहन फाउंडेशन
एक बार जब प्राथमिक शॉक थोड़ा कम हो जाता है, केवल तभी अंग दान के बारे में चर्चा करनी चाहिए.
भारत में चुनौतियां
सबसे बड़ी चुनौती बच्चों के संदर्भ में डाटा की कमी है. बच्चों के अंगदान संबंधी रिकॉर्ड नहीं रखे जाते हैं.
इसके अलावा ब्रेन डेड घोषित किए जाने की स्थिति और मेडिकल फैक्टर के संबंध में भी काफी विवाद है. रोगी का परिवार भी उसकी स्थिति से पूरी तरह से परिचित नहीं होता है, जिसके कारण भी वे अपने बच्चे के अंग को दान करने के संदर्भ में अनिच्छुक होते हैं.
द क्विंट से बात करते हुए पीडियाट्रिक क्रिटिकल केयर, चिल्ड्रेन्स स्पेशियलिटी फिजिशियन, ओमाहा के निदेशक डॉ. मोहन आर मैसूर कहते हैः
भारत में ब्रेन डेथ के संदर्भ में लोगों के बीच और अधिक जागरुकता पैदा करने की जरूरत है. इस तरह की जानकारी से स्पष्टता आएगी और बच्चों की स्थिति को समझने में उन्हें सहायता मिलेगी और यह उन्हें अंगदान करने की स्थिति के और नजदीक लेकर आएगा. केवल इस स्थिति के बाद ही हमलोग अगले चरण के लिए बात कर सकते हैं.डॉ. मोहन आर मैसूर
जब परिवार अंग दान करने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के लिए अंग को रखने के विशेष नियमों का पालन करने से संबंधित कानून की अस्पष्टता के कारण बहुत परेशानी आती है. इसके कारण अंग की गुणवत्ता खराब हो जाती है और उसके कारण यह प्रत्यारोपण के योग्य नहीं रह जाता है.
विदेशों से सबक?
बहुत सारे विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हम अंग दान के गैप को भरने के प्रति गंभीर हैं, तो भारत को स्पेन की तरह का मॉडल स्वीकार करना चाहिए. स्पेन में, कोई भी नागरिक अपने आप ही अंग दाता बन जाता है, चाहे वह इसे स्वीकार करे या नहीं.
इस व्यवस्था ने स्पेन को अंग दान में विश्व का अगुआ बना दिया है.
द क्विंट से बात करते हुए डोनेशन एंड ट्रांसप्लांट इंस्टीट्यूट, बर्सिलोना, स्पेन के प्रेसिडेंट डॉ मार्टी मेनियालिच कहते हैः
स्पेन में कोई बच्चा अंग के लिए इंतजार की सूची में नहीं है. इसका कारण यह है कि अंग की जरूरत वाले बच्चों को राष्ट्रीय प्राथमिकता दी जाती है और अधिकतम 6 महीने के भीतर उनका अंग प्रत्यारोपण किया जाता है.डॉ मार्टी मेनियालिच
भारत के लिए अगला चरण?
बच्चों के अंगदाताओं और उसकी आवश्यकता वालों का आंकड़ा इकट्ठा करना आज के समय की आवश्यकता है. इसके साथ हीं अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे बच्चों के लिए एक पंजीकरण की सुविधा का विकास करना भी अत्यंत आवश्यक है, ताकि अंग दान किए जाने के बाद उसका सही तरीके से इस्तेमाल हो सके.
भारत में अंगदाता संगठनों को विस्तार देने की आवश्यकता है. पेडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट्स (पाईसीयू) को अधिक स्पष्टता प्रदान करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने को नीति निर्माताओं और मेडिकल संस्थाओं को एक साथ आने की जरूरत है.डॉ अवनीश सेठ
बड़े पैमाने पर अंग दान की प्रक्रियाओं और आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता पैदा करके और बच्चों के अंगदाताओं और प्राप्तकर्ताओं की पर्याप्त आंकड़ा तैयार करके, भारत में बच्चों के अंग दान के गैप को पाटा जाना संभव है.
पिछले पांच सालों से भारत में अंग दान की दर 0.05 प्रति दस लाख से बढ़कर 0.8 प्रति लाख हो गई है, लेकिन अभी भी बच्चों के लिए अंग की बहुत अधिक कमी है.
वयस्कों के लिए अंग प्रत्यारोपण एक्ट में ब्रेन डेड के लिए प्राथमिक और सुनिश्चित करने वाली जांच के लिए 6 घंटे का समय के अंतराल को अनिवार्य किया गया है. लेकिन बच्चों के लिए ऐसी स्पष्टता नहीं है.
अंतर्राष्ट्रीय दिशा निर्देशों के अनुसार 30 दिन तक के नवजात शिशुओं के ब्रेन डेड की जांच के लिए 24 घंटे का आब्जर्वेशन पीरियड होना चाहिए और 18 साल तक के शिशुओं और बच्चों के ब्रेन डेड की जांच के लिए 12 घंटे का आब्जर्वेशन पीरियड होना चाहिए.
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