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वर्ल्ड किडनी डे: पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा पीड़ित 

महिलाओं में गुर्दे की तकलीफें 14 फीसदी होती हैं तो वहीं पुरुषों में 12 फीसदी

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दुनिया भर में किडनी संबंधी रोग से पीड़ित मरीजों में महिलाओं की तादाद पुरुषों से कहीं ज्यादा है, जिसकी मुख्य वजह लापरवाही है. यह बात गुरुवार को दिल्ली में वर्ल्ड किडनी डे पर आयोजित एक कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने कही. विशेषज्ञों ने बताया कि देश के ग्रामीण इलाकों में किडनी संबंधी रोगों को लेकर महिलाओं में जागरुकता फैलाने की जरूरत है, जिससे वे अपनी हिफाजत कर पाएं और समय पर जांच और इलाज कराएं.

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खानपान और आदतों में सुधार लाएं

विश्व किडनी दिवस और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर दिल्ली के धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट विभाग की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सुमन लता नायक ने कहा कि महिलाओं को अपनी लाइफ स्टाइल को ठीक रखनी चाहिए और गुर्दा संबंधी कोई तकलीफ होने पर तुरंत जांच करवानी चाहिए. उन्होंने बताया कि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से गुर्दे की तकलीफें बढ़ती हैं, इसलिए खानपान और आदत में सुधार लाकर इन पर नियंत्रण रखना जरूरी है.

डॉ. नायक के मुताबिक दुनिया भर में साढ़े तीन अरब से ज्यादा गुर्दे के मरीज हैं, जिनमें महिलाओं की तादाद 1.9 अरब है. ग्रामीण इलाकों में महिलाओं में जागरुकता नहीं होने की वजह से गुर्दे की बीमारी का समय पर इलाज नहीं हो पाता है. महिलाओं में गुर्दे की तकलीफें 14 फीसदी होती हैं तो पुरुषों में 12 फीसदी. इसलिए महिलाओं को अपने स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.

यूरोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के सीनियर कंसल्टेंट विकास जैन ने बताया कि गुर्दा खराब होने पर गुर्दे का ट्रांसप्लांट ही सही विकल्प है, लेकिन जागरुकता की कमी होने की वजह से किडनी की उपलब्धता कम है.

“हमारे पास जो गुर्दा दान करने वाले लोग आ रहे हैं, उनमें ज्यादातर अपने परिजनों की जान बचाने के लिए अपना गुर्दा देने वाले लोग हैं. जब तक मृत शरीर से गुर्दे की सप्लाई नहीं होगी, तब तक गुर्दे की जितनी जरूरत है, उतनी मांग पूरी नहीं हो पाएगी. इसलिए लोग अपने अंग दान करने का संकल्प लें ताकि उनके मरने के बाद उनके अंग किसी के काम आए.”
- डॉ. विकास जैन, सीनियर कंसल्टेंट, धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल

यूरोलॉजी स्पेशलिस्ट अनिल गोयल ने कहा कि एक गुर्दा भी पूरी जिंदगी के लिए काफी है, इसलिए लोगों को यह धारणा बदलनी होगी कि उनके एक गुर्दा दान करने से उन्हें आगे तकलीफ हो सकती है.

(इनपुट: IANS)

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