ठंड से कुल्फी जैसा जम जाना या गर्मी की वजह से पसीना-पसीना हो जाना. बात जब ऑफिस या वर्कप्लेस पर टेंपरेचर की आती है, तो ऐसा लगता है कि केवल ये दो ही अंतिम स्थिति है. अगर आप भी इससे पीड़ित हैं, तो आप दुनिया भर के उन लाखों कर्मचारियों में से एक हैं, जो इस बात पर एक दूसरे से लड़ रहे हैं कि ऑफिस में आइडल टेंपरेचर या आदर्श तापमान क्या हो.
आइडल टेंपरेचर से यहां आशय उस टेंपरेंचर से है, जिसमें न किसी को बहुत अधिक ठंड लगे और ना ही कोई गर्मी से बेहाल हो जाए. बस सारी लड़ाई इसी बात की तो है. आपको यह जान कर हैरानी होगी कि ये लड़ाई केवल ऑफिस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह घरों में भी देखने को मिल रही है. इस रिपोर्ट के अनुसार लगभग एक तिहाई कपल आइडल टेंपरेचर पर बहस करते हैं. हर 10 में से 4 महिलाएं अपने पार्टनर से नजरें बचाकर चुपचाप एसी का टेंपरेंचर बढ़ा देती हैं.
क्या महिला और पुरुष की बॉडी टेंपरेचर में अंतर है?
इसका सिंपल जवाब है, हां. यही रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में ज्यादातर ऑफिस में, टेंपरेचर को एक व्यक्ति के औसत मेटाबॉलिज्म (चयापचय) के आधार पर एडजस्ट किया जाता है. दूसरी ओर, महिलाओं में मेटाबॉलिज्म रेट कम होता है, मसल कम और फैट सेल्स अधिक होते हैं. इससे उनका शरीर कम गर्मी पैदा करता है और उन्हें लगभग 3 डिग्री सेल्सियस अधिक टेंपरेचर की जरूरत होती है.
आकाश हेल्थकेयर सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल, द्वारका के इंटरनल मेडिसिन में सीनियर कंसल्टेंट डॉ राकेश पंडित कहते हैं:
आपके शरीर का मेटाबॉलिज्म गर्मी और एनर्जी के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है. हालांकि, महिलाओं और पुरुषों दोनों के बॉडी का टेंपरेचर समान होता है, लेकिन पुरुषों के मामले में आमतौर पर अधिक मास होता है. इसलिए वे महिलाओं की तुलना में अपने शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करने के लिए अधिक कैलोरी बर्न करते हैं. इससे अधिक गर्मी पैदा होती है. महिलाओं के मामले में, मेटाबॉलिज्म दर कम होने के कारण, उनके शरीर से कम गर्मी पैदा होती है. इसलिए वे आमतौर पर पुरुषों के मुकाबले ठंडा महसूस करती हैं.
डच वैज्ञानिकों ने 2015 के स्टडी में निष्कर्ष निकाला कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में 2.5 डिग्री सेल्सियस अधिक टेंपरेचर पसंद करती हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं में स्किन टेंपरेचर भी कम होता है. जब पुरुषों और महिलाओं दोनों के हाथ ठंड के संपर्क में लाए गए, तो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के बॉडी का टेंपरेचर 3 डिग्री कम पाया गया.
महिलाओं को ज्यादा ठंड क्यों लगती है?
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें उनकी मसल डेंसिटी, मेटाबॉलिक रेट, फैट और ब्लड फ्लो शामिल है.
इसमें एस्ट्रोजेन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि यह ब्लड को गाढ़ा करता है. यह बदले में, केशिकाओं (capillaries) में ब्लड फ्लो को प्रतिबंधित करता है. इसका मतलब है कि महिलाओं की पैर की उंगलियां और हाथों की उंगलियां पुरुषों की तुलना में आसानी से कम तापमान के प्रति अधिक सेंसिटिव हैं. आगे ये निष्कर्ष निकला है कि महिलाओं को ओव्यूलेशन के आसपास ठंडा महसूस होता है. ऐसा उनके शरीर में एस्ट्रोजन लेवल बढ़ने के कारण होता है.
इसके अतिरिक्त, हाई मसल मास का मतलब हाई मेटाबॉलिज्म है. ऐसे में ब्लड फ्लो तेज होता है. फिर से एक प्रक्रिया है, जहां पुरुष महिलाओं से आगे हैं. इसके बाद स्किन के टेंपरेचर में कमी की बात आती है.
अगर इन सब बातों में मेडिकल कंडिशन को जोड़ा जाता है, तो महिलाएं ठंड के प्रति कम या ज्यादा सेंसिटिव हो सकती हैं.
एनीमिया, कुपोषण, डायबिटीज, थायरॉयड डिसऑर्डर, वैसकुलिटिस जैसी बीमारियां महिलाओं को ठंडा या गर्म महसूस करा सकती हैं.डॉ राकेश पंडित
अपवादों से परे और अधिक
जबकि ये मानक अधिकांश स्थितियों पर लागू होते हैं, हार्मोन और बॉडी क्लॉक की तरह कई चीजें हैं, जो इसे बाधित कर सकती हैं. ऐसे उदाहरण हैं, जब महिलाओं का कोर टेंपरेंचर पुरुषों की तुलना में ज्यादा हो. इनमें प्रेग्नेंसी और हार्मोनल कॉन्ट्रासेप्टिव शामिल हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार, दोनों शरीर के तापमान को 0.5 से 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा सकते हैं.
डॉ पंडित आगे बताते हैं:
पुरुषों और महिलाओं के शरीर के टेंपरेचर के बीच का अंतर उम्र से संबंधित कारक भी है. अधेड़ उम्र की महिलाएं जो रजोनिवृत्ति के चरण (menopausal phase) से गुजर रही हैं, उनके शरीर में अधिक हार्मोनल बदलाव के कारण वृद्ध महिलाओं की तुलना में अधिक गर्मी पैदा होती है. मेनोपॉज के बाद उनका बॉडी टेंपरेचर नॉर्मल हो जाता है. पुरुषों में इसके उलट होता है. वे अपने मेनोपॉज या एंड्रोपॉज पर आते हैं, तो अतिरिक्त गर्मी पैदा करना बंद कर देते हैं. एंड्रोपॉज से उनका बॉडी मास कम होने लगता है. इस कारण उन्हें पहले के टेंपरेचर जिसमें वे सहज महसूस करते थे, के प्रति ठंड महसूस होती है.
पुरुषों और महिलाओं के बॉडी क्लॉक में अंतर होता है. यह उनके शरीर को अपने आसपास के टेंपरेंचर के प्रति रिएक्ट करने के तरीके को प्रभावित करता है. अगर स्टडीज की मानें, तो महिलाएं पुरुषों की तुलना में पहले सो जाती हैं. नतीजतन, वे पहले उठती हैं, जब सुबह ठंडी होती है. अगर वे जागने पर ठंड महसूस करती हैं, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि सचमुच ठंड है.
हालांकि, यह केवल दिन के शुरुआती हिस्से के लिए है. दिन और आपके काम के घंटों के दौरान, इन अंतरों को कवर किया गया है. इसके अतिरिक्त, कोर टेंपरेचर और स्किन टेंपरेचर के बीच अंतर बनाया जाना है. जबकि दिन के कुछ हिस्सों के दौरान महिलाओं का कोर टेंपरेचर पुरुषों की तुलना में अधिक हो सकता है, जब स्किन की बात आती है, तो पुरुषों की तुलना में महिलाओं का टेंपरेचर कम होता है.
पुरुषों और महिलाओं के कोर बॉडी टेंपरेचर में अंतर बहुत कम होता है और भले ही पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कोर ऑर्गन में अधिक टेंपरेचर होता है, लेकिन महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले हाथों और पैरों का टेंपरेचर कम होता है.डॉ राकेश पंडित
टेंपरेचर और प्रोडक्टिविटी के बीच संबंध
अब जब हमने इसकी बायोलॉजी पर ध्यान दिया है, तब भी एक और व्यावहारिक चिंता है, जो बॉडी टेंपरेचर में असमानता से जुड़ी है - काम पर प्रभाव. ब्रिटेन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 2 प्रतिशत ऑफिस टाइम ‘आइडल टेंपरेचर क्या हो’, इस विषय पर झगड़े के दौरान बर्बाद हो जाता है. इसकी लागत उनकी अर्थव्यवस्था पर सालाना 13 बिलियन पाउंड से अधिक होती है. इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में टेंपरेचर वॉर के कारण 6.2 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है.
अगर ये काफी नहीं है, तो कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी और वर्कप्लेस टेंपरेचर के बीच संबंध के सुझाव दिए गए हैं. एक आरामदायक टेंपरेचर न केवल प्रोडक्टिविटी बल्कि कर्मचारियों के आपसी संबंध में भी सुधार लाता है. माना जाता है कि वातावरण की गर्मी, भावनात्मक गर्मी को भी प्रोत्साहित करती है. टेंपरेचर के जवाब के प्रति मस्तिष्क का जो हिस्सा सक्रिय हो जाता है, वो वही हिस्सा है जो विश्वास और सहानुभूति की भावनाओं से जुड़ा होता है. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के अनुसार, आइडल वर्कप्लेस टेंपरेचर 22 डिग्री सेल्सियस और 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है. जबकि सैद्धांतिक रूप से एक आइडल टेंपरेचर मौजूद है, अफसोस इस बात का है कि ये चलन में नहीं है क्योंकि टेंपरेचर के लिए लड़ाई जारी है.
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