ADVERTISEMENTREMOVE AD

विश्व अल्जाइमर दिवस: मरीज की देखरेख करने वाले करें अपनी भी देखभाल

मरीज की देखभाल करने वाले कैसे रखें अपना ख्याल?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भारत में अधिकतर बच्चे स्वाभाविक रूप से अपने बुजुर्ग माता-पिता या सास-ससुर की देखभाल करने वालों की भूमिका में आ जाते हैं. आमतौर पर देखभाल करने वाले की जिम्मेदारी महिलाओं के ही कंधों पर आती है. ये महिलाएं घर की बेटी या बहू होती हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मरीज की देखभाल जो भी करे, ये बेहद जिम्मेदारी वाला काम होता है, जो काफी तनावपूर्ण भी हो सकता है. रिसर्च से यह पता चलता है कि अल्जाइमर या डिमेंशिया (मनोभ्रंश) रोगी की देखभाल सबसे अधिक कठिन होती है.

उन माता-पिता की देखभाल करना बेहद तनावपूर्ण होता है, जिनकी शॉर्ट टर्म मेमोरी खराब होती है या जिनकी याददाश्त पूरी तरह से जा चुकी होती है. या वे लोग जो अपनी साधारण चीजों के बारे में याद रखने की अक्षमता के कारण हतोत्साहित और क्रोधित हो जाते हैं. ऐसे माता-पिता शारीरिक रूप से तो ठीक होते हैं, लेकिन मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होते हैं.

मैं अन्य कामों के साथ ही अपने पिता जो पार्किंसन और डिमेंशिया से ग्रस्त थे, की देखभाल करती. मैंने 29 साल से अधिक समय तक कॉर्पोरेट इंडिया में नौकरी की. बड़ी और ग्लोबली टीमों का मैनेजमेंट किया. कई विलय, अधिग्रहण और कंपनियों की खरीद-बिक्री की प्रक्रिया का हिस्सा रही. लेकिन ये सब मेरे बीमार पिता की देखभाल और उनके घर के रखरखाव की तुलना में काफी हल्का था.

अंततः मैंने फुलटाइम नौकरी छोड़ दी. फिलहाल मैं कंसल्टिंग का कुछ काम कर रही हूं. मेरे दिन का बड़ा हिस्सा अपने पिता के घर और उनके स्वास्थ्य की देखभाल में चला जाता और यह फुलटाइम नौकरी से कहीं बड़ा होता.

जब मुझसे पूछा जाता कि मैं क्या करती हूं, तो स्वाभिक रूप से मेरा जवाब रहता, ‘कुछ भी नहीं.’ और यही सबसे बड़ा झूठ होता. मैं बहुत सारा काम करती. बस, मुझे इसके लिए पैसे नहीं मिलते. मेरे काम के लिए दिन, सप्ताह या महीने में कोई समय निर्धारित नहीं रहता. कोई मूल्यांकन और कोई अप्रेजल नहीं. इसके लिए कोई पुरस्कार या मान्यता भी नहीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इन सबके के बीच मैं अपने बारे में यानी देखभाल करने वाली (caregiver) के बारे में भूल गई. मैं सिर्फ वो शख्स बन गई, जो उनकी देखभाल कर सके. मैं ही वो थी, जो चौबीसों घंटे उनके देखभाल की जिम्मेदारी निभा सके. किसी भी वक्त, चाहे आधी रात हो या अल सुबह, खाते वक्त या मूवी देखते वक्त, मैं हमेशा तैयार रहती. मैं बाथरूम में भी अपना मोबाइल फोन लेकर जाती.

मेरी बातचीत मेरे पिता के इर्दगिर्द ही घूमती रहती. वह क्या खा रहे हैं, वह क्या चाहते हैं. कभी भी अपने बारे में बात नहीं होती कि मैं क्या कर रही हूं या मैं क्या चाहती हूं.

लेकिन मेरे जैसे देखभाल करने वालों को भी देखभाल की जरूरत होती है. अगर आप देखभाल करने वाले या वाली हैं, तो मैं आपको एक बात बता दूं. कोई भी आपकी परवाह करने वाला नहीं है. मुझे यह अहसास हुआ कि मुझे भी खुद की देखभाल की जरूरत है. मुझे खुद से अपनी देखभाल करने की मांग करने की जरूरत पड़ी. मैं यह अपने लिए अच्छे से नहीं कर सकती थी. इसके लिए संघर्ष और कोशिश की जरूरत होती है.

यहां कुछ बातों की लिस्ट है, मेरे हिसाब से इसकी जरूरत मरीज की देखभाल करने वाले हर शख्स को होती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

खुद को दोष देना छोड़ दें

मुझे नहीं पता, मैं खुद को दोषी क्यों महसूस करती. मैं अपनी क्षमता से बेहतर काम करती. मेरे पिता खुश रहते (जैसा कि वह कहते). इसके बावजूद मुझे ग्लानि महसूस होती. ग्लानि इस बात पर कि मैं बहुत ज्यादा नहीं कर पा रही, ये कि मेरे पिता अवसाद ग्रस्त हैं, उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है. मैं खुद को समझाती कि मुझे जानबूझ कर खुद को दोषी महसूस नहीं करना. मैं क्या कर सकती हूं और क्या नहीं कर सकती हूं, इस बारे में यथार्थवादी होना होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीमारी के बारे में ज्यादा खोजबीन न करें

यह बहुत मुश्किल था. मुझे अपने पापा की बीमारी के बारे में खोजबीन करने की जरूरत थी, जिससे कि उससे निपटने और उसके लक्षणों को समझ सकूं. लेकिन उनकी बीमारी के निदान ने मुझे डरा दिया. मुझे पता नहीं था कि मैं उस समय क्या करूंगी, जब मेरे पिता अपनी जिंदगी के अंतिम चरण में होंगे. क्या मैं उन्हें धीरे-धीरे मौत की तरफ बढ़ते देखूंगी या वे अपने सांस लेने की हिम्मत छोड़ रहे होंगे. मैं वो जानने की कोशिश कर रही थी, जो मैं नहीं जानना चाहती थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

थोड़ा ब्रेक लें

आप अपने चाचा-चाची, कजन, भाई या बहन में से किसी को कहें कि वे कुछ दिनों के लिए आपके बीमारी से प्रभावित माता या पिता की देखभाल करें. जैसे ही आपको समय मिले, आप ब्रेक ले लें. हां, कुछ सप्ताह के लिए. कुछ दिन इसके लिए काफी नहीं हैं. आपको कुछ समय के लिए पूरी तरह इस जिम्मेदारी से दूर हो जाने की जरूरत होती है. दो हफ्ते के लिए कहीं दूर निकल जाएं. कोई फोन न करें. रोगी के बारे में न सोचें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुछ कलात्मक करें

मैं लिखना चाहती थी. मैंने पहले कोशिश भी की थी, लेकिन सभी कई कारणों से विफल हो गए. इसके बाद मेरे दोस्त जस्टिन ने सलाह दी कि मैं लिखने की खुशी के लिए लिखूं. फिर इसे मैं बोनस मानूं. फिर मैंने लिखना शुरू किया. मैंने एक ब्लॉग बनाया. मेरे ब्लॉग पोस्ट को लोगों ने पढ़ा. मुझे लेख लिखने के लिए रख लिया गया. यह सबसे संतुष्टि देने वाली चीज थी, जो मैं अपने लिए कर सकती थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीमारी से पीड़ित अपने माता या पिता से बात करें

यह उस बारे में बातचीत है कि हमारे माता या पिता अपनी देखभाल के अंत/बीमारी बढ़ने पर इलाज के संदर्भ में क्या चाहते हैं. या उस स्तर पर जहां हम अब खुद का ख्याल नहीं रख सकते हैं. मैं इस बातचीत को लेकर एक साल से अधिक समय तक परेशान रही. एक बार जब मैंने अपने पिता के साथ इलाज को लेकर बातचीत की थी कि क्या वह इससे संतुष्ट हैं. साथ ही उनके डॉक्टर से भी इस बारे में बात की थी कि हम क्या कर सकते हैं. इससे मुझे कुछ राहत मिली थी.

यह पूरी लिस्ट नहीं है, और मैं देखभाल करने वालों की मदद करने की विशेषज्ञ भी नहीं हूं. लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह देखभाल करने वालों के बीच में चर्चा को शुरू करेगा, जिससे कि हम एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(29 साल तक कॉर्पोरेट इंडिया में काम करने के बाद संगीता ने अपने पिता की देखभाल के लिए काम छोड़ दिया. उनके पिता को साल 2008 में पार्किंसन बीमारी होने के बारे में पता चला था. संगीता को उम्मीद है कि उनकी यह वास्तविक कहानी रोगियों और उनकी देखभाल करने वालों की मदद करेगी. इससे पार्किंसन बीमारी के प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी. आप यहां संगीता के ब्लॉग को फॉलो कर सकते हैं.)

(ये आर्टिकल सबसे पहले 21 सितंबर 2015 को प्रकाशित किया गया था.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×