पहले दिन से ही माता-पिता अपने बच्चे के विकास पर कड़ी नजर रखते हैं. बच्चे कब बोलना शुरू करेंगे? कब चलना शुरू करेंगे? हर चीज के लिए एक चार्ट तैयार रहता है.
ऐसा ही शर्मिता भिंडर के साथ भी हुआ. एक कार्यक्रम में बोलते हुए, उन्होंने अपने छोटे बेटे मानव के बारे में बताया, जिसे एस्परगर सिंड्रोम है. एस्परगर सिंड्रोम ऑटिज्म स्पेक्ट्रम के हिस्से के रूप में मौजूद है.
वह नहीं चाहतीं कि लोग उनके बेटे मानव के बारे में जान कर गमगीन माहौल में चले जाएं बल्कि जानने के बाद समानता के दृष्टिकोण के साथ उसे देखें.
'ऑटिज्म' का शाब्दिक अर्थ होता है 'स्वलीनता'. इसका मतलब अपनी दुनिया में इतना व्यस्त रहना कि अपने आसपास के वातावरण की पूरी तरह से अनदेखी कर देना.
अपने में खोए रहने की इसी जीवन पद्धति के कारण ऑटिस्टिक बच्चों का बौद्धिक और कभी-कभी शारीरिक विकास भी प्रभावित होता है.
समय के साथ, उन्होंने महसूस किया कि मानव शारीरिक रूप से धीमा था, लेकिन उसकी सोचने की क्षमता, उसकी उम्र के औसत बच्चे की तुलना में बहुत अधिक थी.
"जब वह 6 या 7 साल का था, तो कुछ भावनात्मक मुद्दे थे, आँखे मिलाने से हिचकिचाता था और अपनी शर्ट की बटन ठीक से नहीं लगा सकता था, लेकिन सामान्य ज्ञान में उसकी जानकारी काबिले तारीफ थी. हमें नहीं पता था कि वह सारी जानकारी कहां से ले रहा था"शर्मिता भिंडर
वह कहती हैं कि वह एक तरफ अदभुद था, तो दूसरी तरफ अजीब था.
वो बातों को अर्थ समझना नहीं जनता था, उससे जो कहा जाता वो वही करता. अगर गुस्से में, आपने उसे घर से बाहर निकलने के लिए कहा, तो वह सचमुच बाहर जाकर खड़ा हो जाएगा.
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के बारे में ज्ञान और जानकारी का अभाव है.
शर्मिता कहती हैं कि ऐसे बच्चों में किसी की दिलचस्पी नहीं है, हम उन्हें सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं करते हैं, और हम केवल चैरिटी का काम करते हैं.
वह इसे बदलना चाहती हैं और अपने ‘एनजीओ एम्पावर’ के माध्यम से इस दिशा में काम कर रही हैं.
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