टीकाकरण (Immunisation) के फायदों के कई सबूत हैं. एक किफायती तरीके के तौर पर वैक्सीन या टीके ने अनगिनत जिंदगियां बचाई हैं. वैक्सीन से दुनिया भर में स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार हुआ है. 2014 में, भारत सरकार ने पूर्ण टीकाकरण कवरेज प्राप्त करने के लिए 'मिशन इन्द्रधनुष (MI)' लॉन्च किया.
मिशन इन्द्रधनुष को कम टीकाकरण कवरेज वाले 201 जिलों के साथ शुरू किया गया था. जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि दो वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सात घातक रोगों के खिलाफ पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया जा सके. मिशन इन्द्रधनुष के चार चरण, जुलाई 2017 तक, देश भर के 528 जिलों में 2.55 करोड़ बच्चों और लगभग 68.7 लाख गर्भवती महिलाओं तक पहुंच हो सकी.
अक्टूबर 2017 में, भारत के प्रधानमंत्री ने प्रगति में तेजी लाने के लिए गहन मिशन इन्द्रधनुष (IMI)- एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की. IMI के अंत में, लगभग 59.46 लाख बच्चों का टीकाकरण किया गया. इसमें 14 लाख बच्चों का पूरी तरह से टीकाकरण किया गया. आईएमआई से पहले एक स्वतंत्र सर्वेक्षण के अनुसार, जिलों में पूर्ण टीकाकरण कवरेज वाले बच्चों का अनुपात 69% होने का अनुमान था. यह पूर्व-आईएमआई अनुमानों से 18.5% की निर्धारित वृद्धि दिखाता है.
पूर्ण टीकाकरण की चुनौतियां
जैसा कि सरकार का लक्ष्य 90 प्रतिशत पूर्ण टीकाकरण कवरेज तक पहुंचना है, इस दिशा में कई गंभीर चुनौतियां हैं. इसमें टीकाकरण की आवश्यकता और वैल्यू की समझ, टीकाकरण सेवाओं की उपलब्धता और पहुंच के बारे में जागरुकता की कमी है.
बच्चों की बीमारी और मृत्यु के बोझ को कम करने में टीकाकरण की ऐतिहासिक सफलता के बावजूद, वैक्सीन्स को लेकर लोगों की चिंताओं और अफवाहों की कई घटनाएं सामने आई हैं.
ये अफवाहें तेजी से फैलती हैं और टीकाकरण को लेकर जनता के विश्वास को खत्म करती हैं. यह टीकाकरण के प्रति नाटकीय प्रभाव, टीकाकरण को लेकर अस्वीकृति और रोग के प्रकोप का बड़ा डर है. 90 प्रतिशत पूर्ण टीकाकरण कवरेज तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है, वैक्सीन और टीकाकरण को लेकर लाभार्थियों के बीच विश्वास की कमी. इसके कारण वे लोग वैक्सीन लगवाने में देरी करते हैं या टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल होने से ही इनकार कर देते हैं.
टीकाकरण को लेकर विश्वास की कमी क्यों है?
वैक्सीन कम लगवाना और टीकाकरण से इनकार करना कोई नई प्रवृत्ति नहीं है. यह कई दशकों से है. इसके तीन प्रमुख कारण हैं.
- सबसे पहले, कई क्षेत्रों तक वैक्सीन की पहुंच बहुत मुश्किल है.
- दूसरा, टीकाकरण के अवांछित प्रभावों का डर.
- तीसरा, वैक्सीन से बचाव योग्य रोगों के बारे में और टीकाकरण कैसे घातक बीमारियों का मुकाबला करता है, के बारे में जागरुकता की कमी.
- ऐसे अन्य अनगिनत अज्ञात कारक भी हैं, जो बच्चों को वैक्सीन लगवाने से रोकते हैं. ये अफवाहों और मिथकों के माध्यम से फैले हुए हैं.
वर्तमान टीकाकरण की स्थिति में वैक्सीन प्रतिरोध का मुकाबला करने के लिए एक व्यवस्थित सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. टीकाकरण के प्रति माता-पिता की अप्रोच को आकार देने वाला एक महत्वपूर्ण कारक हेल्थ प्रोफेशनल्स के साथ माता-पिता की बातचीत है.
एक प्रभावी बातचीत वैक्सीन का सपोर्ट करने वाले माता-पिता की चिंताओं को दूर कर सकती है. ये वैक्सीनेशन के प्रति माता-पिता की हिचकिचाहट दूर कर सकती है.
ज्यादातर मामलों में, परिवार बाल रोग विशेषज्ञों के सीधे संपर्क में नहीं आते हैं क्योंकि वे फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स के साथ बातचीत करते हैं. वैक्सीन और वैक्सीन से बचाव योग्य रोगों पर उनकी क्षमता की जानकारी देना और उन्हें माता-पिता के साथ बातचीत करने के लिए सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है. इसे ग्रामीण और शहरी दोनों स्तरों पर व्यापक सोशल और बिहेवियर चेंज कम्यूनिकेशन के माध्यम से दूर किया जा सकता है.
मीडिया और डॉक्टरों की भूमिका
वैक्सीन के बारे में विश्वास जगाने के लिए एक और उपाय मीडिया द्वारा टीकाकरण और वैक्सीन के बारे में उचित जानकारी देना है. सर्विस प्रोवाइडर या सरकारी एजेंसियों की ओर से पैदा कम्यूनिकेशन गैप के कारण कम्यूनिटी में टीकाकरण के बारे में मिथक हो सकते हैं. संचार सामग्री की एक सीरीज, विशेष रूप से मीडिया के लिए नियमित अंतराल में तैयार और शेयर की जानी चाहिए. टीकाकरण एक्सपर्ट जो अच्छी तरह से परिचित हैं, उन्हें जरूरी होने पर मीडिया से बात करने के लिए उपलब्ध होना चाहिए.
मीजल्स रूबेला के चल रहे अभियान में, कुछ राज्यों ने वैक्सीन और इसके लाभों के बारे में पॉजिटिव जानकारी का प्रसार किया. मीडिया को तथ्यों पर ध्यान देते हुए एक संतुलित तरीके से क्राइसिस की रिपोर्ट करने के लिए अच्छी तरह से तैयार होना चाहिए.
बाल रोग विशेषज्ञ भी इम्यूनाइजेशन (टीकाकरण) सिस्टम में विश्वास को मजबूत करने और सेवाओं को सुनिश्चित करने, समझने और प्रैक्टिसेज को अच्छी तरह से स्वीकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. वे लोगों को समझाने और वैक्सीन की वैल्यू बारे में बताने के लिए बेहतर सलाहकार माने जाते हैं. वे कम्यूनिटी में टीकाकरण के बारे में मिथकों और गलतफहमी को दूर कर सकते हैं. उन्हें सरकार या आधिकारिक कार्यक्रम की तुलना में अधिक न्यूट्रल रूप से देखा जाता है. उन्हें टीके के प्रति विश्वास जगाने को स्टैंडर्ड मैसेज देने के लिए कम्यूनिकेशन अप्रोच से ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. साथ ही वैक्सीन को लेकर झिझक को दूर करने के लिए रणनीतियों की पहचान करनी चाहिए.
इस डिजिटल युग में, सोशल मीडिया की पावर को कम नहीं आंका जाना चाहिए. जिन क्षेत्रों तक मुश्किलें आती हैं, वहां पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत वाले सोशल मीडिया इनिशिएटिव/एक्टिविटिज की जानी चाहिए. पॉजिटिव व्हाट्सएप मैसेज आशंकाओं को दूर कर सकते हैं. निकट भविष्य में सोशल मीडिया टीकाकरण कार्यक्रम को लोगों का आंदोलन बनाने में मदद कर सकता है.
(लेखक, पोलियो पर इंडिया एक्सपर्ट एडवाइजरी ग्रुप और वैक्सीन के लिए अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड ऑफ वॉइसेज के सदस्य हैं. वे साल 2010 से गावी सिविल सोसाइटी ऑर्गनाइजेशन (CSO) संचालन समिति में सेवारत हैं.)
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