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Tuberculosis day 2023: क्यों टीबी के मरीज कलंक के साथ जीने को मजबूर हैं?

सिर्फ भारत ही नहीं, चीन, युगांडा, फिलीपींस, इंडोनेशिया और अन्य हिस्सों में भी टीबी से जुड़ा है लांछन.

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“जब मुझे टीबी हुई, तो सबने मुझे अकेला छोड़ दिया. मेरे पति का परिवार, मेरे दोस्त सब ने. मेरे साथ खड़ा इकलौता शख्स मेरा भाई था. केवल एक चीज जिसने मुझे जिंदा रखा, वह थी जीने की ख्वाहिश.”
नीरा देवी, मल्टीपल ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी सर्वाइवर

नीरा देवी की कहानी टीबी के 26 लाख से ज्यादा मरीज में से एक है. और उनकी आपबीती- ट्यूबरक्सोसिस (टीबी) या क्षय रोग होने के बाद अलगाव, बहिष्कार और अलग-थलग पड़ जाने की कहानियों से कतई अलग नहीं है.

बल्कि आमतौर पर यही तो होता है. अच्छे हालात में रहने वाले मध्य या उच्च-मध्यवर्ग के हमारे जैसे बहुत से लोग इसके ट्रीटमेंट को नहीं समझ सकते हैं. टीबी से जुड़ा लांछन या कलंक दुनिया भर में एक बड़ी समस्या है, और इसके चलते संक्रमण और गंभीर हो जाता है, ट्रीटमेंट में देरी होती है, और यहां तक कि अंजाम जानलेवा भी हो सकता है.

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टीबी के साथ लांछन कैसे जुड़ गया?

टीबी को लेकर लांछन को समझने के लिए हमें पहले यह जानने की जरूरत है कि दुनिया भर में टीबी के लगभग एक करोड़ मरीजों में से दो तिहाई से ज्यादा मरीज एशिया के विकासशील हिस्सों और उप-सहारा क्षेत्र में हैं. गरीबी टीबी के लिए मददगार माहौल बनाती है, क्योंकि तंग जगहों पर रहने के हालात, स्वास्थ्य सुविधा और साफ-सफाई की कमी टीबी के फैलाव के लिए अनुकूल होती है. इनमें से ज्यादातर गरीब/विकासशील देशों में तो टीबी को कलंक की तरह देखा जाता है.

2021 का एक अध्ययन, युगांडा में टीबी के लांछन का असर दिखाता है, जिसमें शहरी आबादी से लिए गए सैंपल में आधे से ज्यादा लोगों को टीबी से जुड़े कलंक का सामना करना पड़ा था.


युगांडा में पाए गए टीबी से जुड़े ज्यादातर लांछन चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, जांबिया, सूडान, इथोपिया और दुनिया के दूसरे विकासशील देशों में भी पाए गए. अमीरी-गरीबी का गहरा अंतर और टीबी के बीच संबंध बहुत समय पहले बनाया गया. इसके लिए खासकर पास-पास रहने, जो टीबी फैलाने के लिए बहुत अनुकूल है, को वजह बताया गया है.

इसमें यह यकीन भी शामिल है कि टीबी और एचआईवी एक दूसरे जुड़े हैं, यह कि टीबी खाना और/या सिगरेट बांटने से फैल सकती है, और यहां तक कि यौन संपर्क से भी टीबी फैल सकती है.

टीबी कलंक क्यों है?

टीबी को कलंक मानने की एक बड़ी वजह एचआईवी और एड्स से जुड़े होने की सोच है. दुनिया के कई हिस्सों में अक्सर दोनों के लक्षण आपस में जुड़े होते हैं और लोग धोखे से दोनों को एक समझ लेते हैं. हकीकत में साल 2019 में भारत में टीबी के 26 लाख मरीजों में से सिर्फ 71,000 को एचआईवी और टीबी दोनों थे. यानी 5.2 फीसद.

साल 2010 की एक स्टडी के मुताबिक टीबी को कलंकित बीमारी बनाने वाले दूसरी वजह इसका छूत की बीमारी होने से जुड़ा है. अध्ययन के अनुसार:

“टीबी से जुड़े लांछन की सबसे आम वजह टीबी संक्रमित लोगों से सबसे कमजोर समुदाय के सदस्यों में संक्रमण का जोखिम है. हालांकि भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से एचआईवी, गरीबी, निचला सामाजिक तबका, कुपोषण, या शर्मनाक बर्ताव के साथ जुड़ाव की वजह से टीबी को भी कलंकित किया जाता है.”
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टीबी कलंक क्या होता है?

बीमारी से जुड़े लांछन के चलते लोग टीबी के मरीज के तौर पर पहचाने जाने के बुरे सामाजिक नतीजों से बचने के लिए इलाज से परहेज करते हैं. ज्यादातर मामलों में यहां तक कि अगर लोग इलाज का विकल्प चुनते हैं, तब भी उनका बहिष्कार किया जाता है.

कमला किशोर, 43

सिर्फ भारत ही नहीं, चीन, युगांडा, फिलीपींस, इंडोनेशिया और अन्य हिस्सों में भी टीबी से जुड़ा है लांछन.

कमल किशोर डॉट्स (DOTS) प्रोवाइडर के तौर पर काम करते हैं टीबी के दूसरे मरीजों की मदद करते हैं.

(फोटो : Global Health Strategies)

लखनऊ के एक किसान कमला किशोर को 2012 में टीबी हो गई थी, लेकिन काफी समय तक उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई. उनके डॉक्टर ने बीमारी के बारे में बताए बिना उनका इलाज शुरू कर दिया. आखिरकार जब उन्हें पता चल गया और उन्होंने गंभीरता से इलाज शुरू किया तो दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया. लेकिन उनका परिवार उनके साथ खड़ा था, और उनका कहना है कि टीबी उनकी जिंदगी की सबसे अच्छी चीजों में से एक थी. अब वह एक किसान और डॉट्स (DOTS) प्रोवाइडर के तौर पर काम करते हैं और टीबी के दूसरे मरीजों की मदद करते हैं.

डॉट्स का फुल फॉर्म है- डायरेक्टली ऑब्जर्व्ड थेरेपी शॉर्टकोर्स (Directly Observed Therapy Short course). यह सुपरविजन/सहायता कार्यक्रम है, जो टीबी मरीजों को उनकी जरूरत के हिसाब से ट्रीटमेंट और उन्हें मिलने वाली मदद मुहैया कराता है.

शुरू में हमने 2010 के जिस अध्ययन का जिक्र किया था, उसमें कहा गया है:

“लांछन एक ऐसी प्रक्रिया है, जो तब शुरू होती है जब किसी शख्स या समूह की कोई अलग खासियत या चरित्र को अवांछनीय या निम्न स्तर के रूप में इंगित किया जाता है. कलंकित शख्स अक्सर इस गिरावट की भावना को झेलता है और इंगित विशेषता को लेकर शर्म, घिन व अपराध बोध सहित उससे जुड़ी सोच का सामना करता है.”
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राकेश कुमार, 30

सिर्फ भारत ही नहीं, चीन, युगांडा, फिलीपींस, इंडोनेशिया और अन्य हिस्सों में भी टीबी से जुड़ा है लांछन.

राकेश कुमार को मल्टीपल ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी (Multiple Drug-Resistant MDR TB) था और अब वो ठीक हो चुके हैं और TB के मरीजों की मदद करना चाहते हैं.

(फोटो: Rakesh Kumar)

“जब मुझे पता चला कि मुझे मल्टीपल ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी (Multiple Drug-Resistant MDR TB) है, तो मैं डर गया था. मैं छह महीने तक ऑफिस नहीं गया. मैं डर गया था और अपने परिवार तक को इसके बारे में बताना नहीं चाहता था.”
राकेश कुमार, एमडीआर टीबी सर्वाइवर

राकेश दिल्ली में रहने वाले 30 वर्षीय सिविल इंजीनियर हैं. उन्हें 2017 में उस समय एमडीआर टीबी हो गई थी, जब वह इसी बीमारी के शिकार अपने भाई की देखभाल कर रहे थे. उन्होंने अपने माता-पिता को भी इस बारे में नहीं बताया. उनके भाई की टीबी से मौत हो गई थी, और अपने परिवार के मजबूत सहारे के बावजूद वह नहीं चाहते थे कि उनके मां-बाप को दोबारा उसी सदमे का सामना करना पड़े.

यह टीबी से जुड़े लांछन के कुछ नतीजों में से एक है- लोग या तो अपने संक्रमण के बारे में बताने से बचते हैं, अपने करीबियों को अपनी हालत के बारे में बताते हैं और अलगाव का सामना करते हैं, या पूरी तरह वह ट्रीटमेंट कराते हैं, जिसकी उन्हें जरूरत होती है.
सिर्फ भारत ही नहीं, चीन, युगांडा, फिलीपींस, इंडोनेशिया और अन्य हिस्सों में भी टीबी से जुड़ा है लांछन.

"मैं कर सकता हूं तो कोई भी कर सकता है"

(फोटो: Rakesh Kumar)

राकेश अब आत्मविश्वास के साथ फिट से कहते हैं, “अगर मैं कर सका तो कोई भी कर सकता है. अगर आप किसी ऐसे शख्स को जानते हैं, जो टीबी का शिकार है और मानसिक परेशानी में है, तो उसे मेरा फोन नंबर दें. मैं उससे बात कर लूंगा.”


कमला किशोर की तरह ही राकेश संक्रमण के शिकार लोगों की मदद करने और टीबी के बारे में ज्यादा जागरूकता फैलाने के ख्वाहिशमंद हैं ताकि दूसरों की मदद हो सके. टीबी से ठीक हुए बहुत से लोग बताते हैं कि बीमारी की चपेट में आने के बाद उन्होंने अलगाव या बहिष्कार झेला. मरीज को जरूरी मदद नहीं मिलती है, या उसे इलाज मिलना रुक जाता हैं, जिसकी उसे जरूरत होती है.

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नीरा देवी, 37

सिर्फ भारत ही नहीं, चीन, युगांडा, फिलीपींस, इंडोनेशिया और अन्य हिस्सों में भी टीबी से जुड़ा है लांछन.

टीबी का पता चलने के बाद नीरा देवी के पति ने आत्महत्या कर ली थी. तब से उन्होंने मन में ठान लिया कि वह कभी भी बीमारी को उसे हराने नहीं देगी.

(फोटो : Global Health Strategies)

37 साल की नीरा देवी के पति को बीमारी का पता चलने के बाद उन्होंने दिल्ली में टीबी का इलाज शुरू किया. हालांकि, उन्होंने बहुत जल्द उम्मीद छोड़ दी और उत्तर प्रदेश में अपने गांव लौट गए. इसके कुछ ही समय बाद उन्होंने खुदकुशी कर ली.

टीबी के हजारों दूसरे मरीजों की तरह उनकी देखभाल करते हुए नीरा भी संक्रमित हो गईं. लेकिन नीरा बीमारी के आगे हार मानने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने बीमारी को हराने के लिए सरकार की मदद से निक्षय पोषण योजना (Nikshay Poshan Yojana) में अपना इलाज शुरू किया.

नीरा अब पूरी तरह ठीक हो चुकी हैं, दिल्ली में दर्जी का काम करती हैं और दूसरे मरीजों को सलाह देती हैं, और उन्हें जरूरी ट्रीटमेंट जारी रखने के लिए प्रेरित करती हैं.

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तो टीबी से जुड़े लांछन को खत्म करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

राष्ट्रीय स्तर पर राज्य की अगुवाई वाली कल्याणकारी गतिविधियां और गरीबी को खत्म करने या कम करने की कोशिशें गरीबों के लिए रहने की दशा में सुधार ला सकती हैं, और रहने की दशा को टीबी के फैलाव के लिए कम-अनुकूल बना सकती हैं.


राज्य सरकारों या एनजीओ को भी टीबी की हकीकत के बारे में जागरूकता फैलाने और इसके फैलाव को लेकर मिथकों को दूर करने की जरूरत है.

निजी तौर पर हम सभी समझ सकते हैं कि टीबी कैसे फैलती है और दूसरों को इसके बारे में जागरूक कर सकते हैं.

टीबी इन चीजों से नहीं फैलती है:

  • शरीर छूने से

  • ड्रिंक या खाने की चीजें बांटने से

  • चादर या टॉयलेट सीट के संपर्क में आना

  • चुंबन या यौन संपर्क से

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (Centers for Disease Control या CDC) का कहना है कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया हवा के जरिये एक शख्स से दूसरे शख्स में फैलता है. यह हवा में तब आता है जब गले या फेफड़ों की टीबी (throat or lungs TB) वाला कोई शख्स खांसता, बोलता या गाता है. ऐसे माहौल में सांस लेने वाले दूसरे लोग बैक्टीरिया से संक्रमित हो सकते हैं.

हालांकि, रीढ़ या किडनी की टीबी (spine or kidney TB) इस तरह से नहीं फैलती है.

इन बिंदुओं को समझना और जागरूकता फैलाना टीबी से जुड़े कुछ लांछनों को दूर करने में मददगार हो सकती है. यह एक छोटा कदम है, लेकिन ऐसे कई छोटे कदम मिलकर एक बड़ा, साफ दिखने वाले असर डाल सकते हैं.

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