इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिरोजाबाद और मथुरा जिलों में दर्ज कुछ आपराधिक मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दिया है, जिन पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और अनुसूचित जाति (एससी) आयोग ने नोटिस लिया था।
आरोप लगाया गया है कि पुलिसकर्मी याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों, जो दलित हैं, के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर रहे हैं, ताकि उन पर 35 पुलिस अधिकारियों को झूठे मामलों का प्रबंधन करने का प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने के मामले वापस लेने का दबाव डाला जा सके।
कोर्ट ने यूपी के प्रमुख सचिव (गृह) को केस नं. 108/2022, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363, 366 (अपहरण) के तहत फिरोजाबाद जिले के रसूलपुर में दर्ज और अन्य संबंधित मामले सीबीआई, नई दिल्ली में दर्ज किए गए।
इससे जुड़ा एक मामला 2014 से मथुरा जिले के थाना हाईवे पर भी लंबित है।
एक सुनीत कुमार और एक अन्य द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुनीत कुमार और सैयद वाइज मियां की खंडपीठ ने सीबीआई को मामला दर्ज करने और जांच आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।
अदालत ने इस मामले को 11 नवंबर को सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हुए निर्देश दिया कि इस तारीख को सीबीआई अदालत को जांच में हुई प्रगति से अवगत कराए।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, कम से कम 35 पुलिसकर्मियों को याचिकाकर्ताओं और उनके परिवार के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने और सबूत गढ़ने में शामिल होने का दोषी ठहराया गया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि उन अधिकारियों के खिलाफ एससी आयोग के विशिष्ट निर्देश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
अदालती कार्यवाही के दौरान राज्य के वकील यह बताने में असमर्थ थे कि क्या दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई है।
इसे गंभीरता से लेते हुए अदालत ने कहा, यह स्पष्ट है कि पुलिसकर्मी याचिकाकर्ताओं के परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने का प्रबंधन कर रहे हैं, जिसका नोटिस एनएचआरसी और एससी आयोग द्वारा लिया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि मथुरा जिले के पुलिस अधिकारियों ने या तो याचिकाकर्ताओं और उनके भाई के खिलाफ पहले के मामलों में समझौता करने का दबाव बनाने के लिए कई और झूठे मामले दर्ज किए हैं।
--आईएएनएस
एसजीके
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