सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सतलुज-यमुना-लिंक जल विवाद पर पंजाब को झटका देने वाला फैसला दिया है. इसके बाद कांग्रेस के 44 विधायकों ने पंजाब विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है. अमरिंदर सिंह ने अपनी लोकसभा सदस्यता छोड़ दी है. पंजाब सीएम ने भी कहा है कि पंजाब हरियाणा को पानी की एक बूंद भी नहीं देगा.
सुप्रीम कोर्ट का पंजाब को ‘सुप्रीम झटका’
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पंजाब द्वारा सतलज यमुना संपर्क नहर समझौता तोड़ने के लिये 2004 में बनाया गया पंजाब समझौता निरस्तीकरण कानून 2004 असंवैधानिक है. ये फैसला न्यायमूर्ति ए के दवे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया है.
इस फैसले के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लोकसभा पद से इस्तीफा दे दिया है.
पंजाब का तर्क है कि जब इस समझौते को किया गया था तो स्थितियां दूसरी थीं. लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं और पंजाब का पानी पंजाब के लिए ही पूरा नहीं पड़ रहा है. वहीं, हरियाणा के सीएम एमएल खट्टर ने कहा है कि ये हरियाणा के साथ न्याय है.
पंजाब सरकार ने साल 2004 में इस समझौते को तोड़ने के लिए ‘पंजाब समझौता निरस्तीकरण कानून 2004’ पारित किया था. इस कानून की मदद से पंजाब ने हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, दिल्ली और चंडीगढ़ के साथ हुए समझौतों को अपनी तरफ से रद्द कर दिया. तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया कि क्या कोई स्टेट अपनी तरफ से समझौतों को रद्द कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल बाद दिया जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रपति के सवाल का ही जवाब दिया है. संविधान पीठ ने साफ किया है कि राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए सभी सवालों का जवाब ‘ना’ में हैं. कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया कि पंजाब समझौता निरस्तीकरण कानून 2004 असंवैधानिक है. इसके साथ ही पंजाब इस जल बंटवारे समझौते के बारे में हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, दिल्ली और चंडीगढ़ के साथ हुये समझौते को एकतरफा रद्द करने का फैसला नहीं कर सकता.
क्या है सतलुज-यमुना लिंक विवाद?
साल 1966 में पंजाब और हरियाणा दो अलग-अलग राज्य बने. दोनों राज्यों के बीच पानी के बंटवारे पर विवाद शुरु हुआ. इसके बाद साल 1981 में केंद्र सरकार ने दोनों राज्यों के बीच सतलुज-यमुना लिंक समझौता करवाया. इसके तहत हरियाणा और पंजाब के बीच सतलुज-यमुना नहर बनाना तय किया गया. दोनों तरफ जमीनें आवंटित की गईं. हरियाणा ने अपनी तरफ की नहर का निर्माण कर दिया. लेकिन पंजाब ने नहीं किया.
इसके बाद साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को पंजाब के हिस्से की नहर बनाने का आदेश दिया. लेकिन पंजाब ने पंजाब समझौता निरस्तीकरण कानून 2004 पास कर दिया और तर्क दिया कि जब समझौता ही नहीं है तो नहर का निर्माण क्यों हुआ. इसी कानून पर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया कि क्या ऐसा संभव है कि कोई राज्य अपनी तरफ से ऐसे समझौतों को तोड़ दे. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार के फैसले में इसी सवाल का जवाब दिया है. इसके साथ ही पंजाब सरकार का साल 2004 वाला कानून रद्द हो गया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का राष्ट्रपति को दिए जवाब को फैसला नहीं कहा जा सकता है. ऐसे में कोर्ट जल्द ही इस मामले पर औपचारिक फैसला देगी.
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