उनके लिए पानी सिर्फ पानी नहीं था, सच में जीवन था. उनके लिए जल सिर्फ जल नहीं था, बल्कि कल भी था. उन्होंने एक बार कहा था, ‘हमारे देश में न सुन पाने की परंपरा काफी पुरानी है, पानी की समस्या को भी हमने अनसुना कर दिया तो पानी पर पानी फिरते देर नहीं लगेगी.’
हम बात कर रहे हैं देश के जाने-माने पर्यावरणविद और जल संरक्षण के पुरोधा रहे अनुपम मिश्र की. सोमवार सुबह कैंसर जैसी बीमारी के चलते उन्होंने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली. लेकिन ‘जल संरक्षण’ के लिए उन्होंने जो बातें लोगों से कहीं, वे कभी अंतिम नहीं हो सकतीं. अगर उनकी बताई हुई बातों पर हम सही ढंग से अमल कर पाएं, तो उनके लिए इससे बड़ी श्रद्धांजलि नहीं होगी.
बाकी बहुत सी चीजों की तरह हम लोग पानी भी खरीदने लगे हैं. पानी के मामले में हम लोग उपभोक्ता बन गए हैं. इसका मतलब है कि हम पानी संग्रह नहीं करते, सिर्फ नारे लगा लेते हैं. पानी खरीदते हैं, वह भी बेहद कम दाम पर. पानी के महंगा होने की शिकायत भले ही हो, लेकिन पानी की असल कीमत हम अब भी नहीं चुका रहे हैं.
राष्ट्रपति भवन में हुई थी जल संरक्षण की शुरुआत
मिश्र ने एक टीवी प्रोग्राम में कहा था, 'राष्ट्रपति के सलाहकार रहे गोपाल गांधी जी के मन में विचार आया था कि क्यों न राष्ट्रपति भवन में ही तालाब बनाने की व्यवस्था की जाए. हालांकि देश के बाकी तालाबों की तरह रायसीना हिल में भी तालाब बनाने की बात कहीं खो गई और खबरों में बने रहने वाला राष्ट्रपति भवन पानी की समस्या से बेखबर हो गया.
देश की नदियों पर अनुपम मिश्र की राय, देखिए वीडियो...
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