फैक्टरी में माल नहीं आ रहा. काम बहुत घट गया है. 150 भैंस रोज कटती थीं लेकिन अब 10-20 ही कट रही हैं. फैक्टरी के करीब 150 दिहाड़ी मजदूरों में से ज्यादातर बेकार हैं. हमारे पास बूचड़खाने का लाइसेंस है. प्रशासन तो अब तक हमारे पास नहीं आया लेकिन चारों तरफ खौफ का माहौल है.
क्विंट हिंदी से फोन पर ये बातचीत करते वक्त मुरादाबाद के संभल इलाके में अल फलाह फ्रोजन फूड्स के एमडी शकील अहमद की आवाज लगभग कांप रही थी. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में सरकार बदलने के बाद से स्लॉटर हाउस यानी बूचड़खानों में जानवरों (भैंसों) की आमद बेहद कम हो चुकी है और धंधे से जुड़े तमाम लोग खौफजदा हैं.
परमानेंट और दिहाड़ी मजदूरों को मिलाकर शकील अहमद की फैक्टरी में करीब ढाई सौ लोग काम करते हैं. इन दिनों ज्यादातर के पास कोई काम नहीं है. फैक्टरी में हर रोज कटने वाली भैंसों की तादाद डेढ़ सौ से घटकर 15-20 पर आ गई है.
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के शपथ ग्रहण के बाद से सूबे के बूचड़खानों पर लगातार छापेमारी चल रही है. हालांकि अब तक गैरकानूनी बूचड़खाने ही प्रशासन की जद में आए हैं लेकिन खतरे की तलवार लाइसेंसधारी बूचड़खानों पर भी लटक रही है.
नाम ना बताने की शर्त पर एक लाइसेंसधारी बूचड़खाना मालिक ने बताया कि राज्य प्रदूषण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी जब-तब जांच के लिए आते हैं और बूचड़खाने में ऑनलाइन सिस्टम, प्रदूषण, पानी की सफाई, फायर सेफ्टी, लेबर लॉ और दर्जनों कानूनों से जुड़े दस्तावेजों की जांच करते हैं. ऐसे में डर सता रहा है कि कोई ना कोई कमी निकालकर उनके कानूनी बूचड़खाने भी बंद कर दिया जाएंगे.
दरअसल यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मेनिफेस्टो से लेकर रैलियों तक में बीजेपी ने साफ एलान किया था कि नई सरकार के शपथ लेने के साथ ही अध्यादेश के जरिये उत्तर प्रदेश के तमाम बूचड़खाने बंद कर दिये जाएंगे.
यही वजह है कि नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर इलाहाबाद, हाथरस, वाराणसी जैसे इलाकों में पिछले तीन दिन में दर्जनों बूचड़खाने बंद किये जा चुके हैं. बुधवार को लखनऊ में पुलिस ने छापेमारी कर कई गैरकानूनी बूचड़खानों और मीट की दुकानों पर ताला जड़ दिया.
मेरठ में भी प्रशासन ने 7 बूचड़खाने सील कर दिए. मेरठ के एडीएम दिनेश चंद्र ने क्विंट हिंदी को बताया कि
डेवेलेपमेंट अथॉरिटी, लेबर, प्रदूषण, पानी की सफाई, फायर सेफ्टी से जुड़े अलग अलग कानूनों के तहत गैरकानूनी तरीकों से चल रहे बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई की गई है और एफआईआर भी दर्ज कराई गई है.
लेकिन मेरठ की अल शाकिब एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ हाजी शाहिद अखलाक के मुताबिक
बूचड़खाने सील करने से पहले हमें कोई वक्त नहीं दिया गया. लाइसेंसी बूचड़खानों पर भी प्रशासन की लाठी चल रही है. हमने उन्हें मंत्रियों के वॉट्सऐप मैसेज भी दिखाए ,लेकिन उनपर कोई असर नहीं हुआ.
क्या कहते हैं नियम?
बूचड़खानों को लाइसेंस लेने के लिए राज्य और केंद्र सरकार दोनों से इजाजत लेनी पड़ती हैं. दरअसल राज्य सरकार का प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड जांच के बाद पहली सहमति देता हैं. उस सहमति के आधार पर कॉमर्स और इंडस्ट्री मंत्रालय के तहत आने वाली एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवेलेपमेंट अथॉरिटी (APEDA) दो साल के लिए बूचड़खाने को लाइसेंस देती है.
APEDA के आंकड़ों के मुताबिक
- 2015-16 में भारत ने 26,681.56 करोड़ रूपये के भैंस मीट का निर्यात किया
- देश भर में APEDA के तहत कुल 75 बूचड़खाने
- इनमें से 41 सिर्फ उत्तर प्रदेश में
एक अनुमान के मुताबिक, अगर उत्तर प्रदेश से भैंस मीट का निर्यात पूरी तरह रोक लगा दी गई तो सूबे को हर साल 11,350 करोड़ रुपये का चूना लगेगा.
इस बीच यूपी सरकार ने पहली बार साफ किया कि लाइसेंसधारी बूचड़खानों के काम काज पर रोक नहीं लगाई जाएगी.
दरअसल, इस मसले पर जमीं धुंध को सरकार को पूरी तरह दूर करना ही होगा. क्योंकि बात सिर्फ मीट के एक्सपोर्ट तक सीमित नहीं है. अगर बूचड़खाने बंद हुए तो चमड़ा उद्योग, हड्डियों के चूरे से बनने वाला मुर्गी दाना और सींग के चारे से बनने वाले हैंडीक्राफ्ट के कारोबार भी बुरा असर पड़ेगा. यूपी में उन तमाम धंधों से हजारों लोग जुड़े हुए हैं.
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