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‘मुझसे शादी करनी है तो इंजीनियरिंग के साथ कोई और कोर्स भी कर लो’

देश में इंजीनियरिंग के घटते क्रेज के पड़ताल की जरूरत महसूस हुई. इस दौरान एक और छात्र का दर्द सुनने को मिला

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भारत
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मुझसे शादी करनी है तो कुछ और कोर्स कर लो

ये नसीहत बीटेक कर रहे एक छात्र को उसकी गर्लफ्रेंड ने दी. इस तर्क के साथ कि उसका भाई भी इंजीनियरिंग करने के बाद बेरोजगार बैठा हुआ है और उसके परिवार वाले किसी बीटेक पास स्टूडेंट के साथ अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार नहीं होंगे.

मसला गंभीर था, इसलिए देश में इंजीनियरिंग के घटते क्रेज के पड़ताल की जरूरत महसूस हुई. इस दौरान एक और छात्र का दर्द सुनने को मिला-

बीटेक के बाद तो नौकरी नहीं मिली, अब एमटेक कर रहा हूं. इसके बाद भी नौकरी मिले या न मिले कुछ कह नहीं सकते.
सौदान सिंह, एमटेक स्टूडेंट

यूपी के बुलंदशहर के रहने वाले सौदान सिंह नोएडा की गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी से एमटेक कर रहे हैं. साल 2013 में सौदान ने उत्तर प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एकेटीयू) के एक प्राइवेट कॉलेज से बीटेक किया था. सौदान का प्लेसमेंट नहीं हुआ.

1 साल तक सौदान घूमते रहे लेकिन कोई भी नौकरी देने को तैयार न था. नोएडा में घर-घर में खुली जॉब लगवाने वाली फर्जी कंपनियों से भी वो मिलकर आए, कईयों ने 1-2 हजार देकर नौकरी की बात कही लेकिन हर जगह निराशा हाथ लगी.

फिर सौदान ने एमटेक करने का फैसला किया. हालात ये हैं कि एमटेक करते हुए भी सौदान को नौकरी की गारंटी नहीं है.

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ये यूपी में या कहें तो देशभर के ज्यादातर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की कहानी है, जहां 4 साल बीटेक या बीई जैसे कोर्सेज में खपाने के बाद भी नौकरी के लाले पड़ने लगते हैं. ऐसे में छात्र या तो भारी भरकम फीस वाले शॉर्ट टर्म कोर्सेज का सहारा ले रहे हैं या तो पेशा ही बदल ले रहे हैं.

60 फीसदी इंजीनियरिंग ग्रेजुएट बेरोजगार- रिपोर्ट

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2015-16 में करीब 8.5 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट पासआउट हुए. पिछले कुछ सालों से ये आंकड़ा 8 लाख के करीब होता है.

हाल ही टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन 8 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में से 60 फीसदी यानी 4.8 लाख बेरोजगार रहते हैं.

कोर इंजीनियरिंग की नौकरी नहीं मिलती

मैकेनिकल, सिविल, इलेक्ट्रॉनिक्स, एरोनॉटिक्स जैसे स्ट्रीम में इंजीनियरिंग करने के बावजूद छात्र बीपीओ, सेल्स-मार्केटिंग जैसे सेक्टर्स में जॉब करने को मजबूर हैं.

द क्विंट से बातचीत में वाराणसी के रहने वाले शशांक ने अपनी मजबूरियां गिनाईं.

कुछ नहीं होने से बेहतर है कि हाथ में कोई जॉब हो, लेकिन जॉब में ऐसा लग रहा था जैसे मैंने अपने 4 साल और 8 लाख बर्बाद कर दिए.
शशांक

शशांक ने नोएडा की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्यूनिकेशन में बीटेक किया था. 2013 में पासआउट होने के वक्त यूनिवर्सिटी प्लेसमेंट दे पाने में नाकाम रही. शशांक को कुछ महीनों बाद जॉब मिली, लेकिन एक इलेक्ट्रॉनिक कंपनी में सेल्स इंजीनियर (मार्केटिंग) की. सैलरी थी महज 7 हजार रुपए.

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1 साल में ही शशांक का धैर्य जवाब दे गया. वो वापस घर लौट आए और आज बिजनेस कर रहे हैं. शशांक अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को बस एक ही सलाह देते हैं कि इंजीनियरिंग करना तो सिर्फ आईआईटीज या एनआईटीज से, वरना नहीं.

आईआईटी जैसे बड़े संस्थान से पासआउट एक छात्र ने द क्विंट को बताया कि उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में अपना ग्रेजुएशन किया था. लेकिन वो अब रियल एस्टेट की कंपनी में नौकरी कर रहे हैं. जहां ज्यादा फोकस मैनपावर हैंडलिंग पर ही होता है. ऐसे ही एक सरकारी संस्थान से पढ़े इंजीनियर ने बताया कि वो एक पीएसयू कंपनी में काम करते थे लेकिन वहां मैनेजमेंट से ज्यादा उनके लिए कुछ करने को नहीं है. ऐसे में जो छात्र इंजीनियर बनने का सपना लेकर आता है वो मैनेजर, एग्जीक्युटिव या कुछ और बन जाता है लेकिन इंजीनियर नहीं बन पाता.

जॉब से ज्यादा इंजीनियर हैं !

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‘यार इस देश में जॉब मिलेगी कहां से ? चार पत्थर उछालो तो दो इंजीनियर के सिर पर गिरेगा !’

यूपी के महाराजगंज के रितेश पांडेय ने मजाक में ये बात कही, लेकिन बात कड़वी सच्चाई से दूर नहीं है. आईटी-सॉफ्टवेयर सेक्टर को छोड़ दें तो इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल या मैकेनिकल इंजीनियरिंग क्षेत्र में नौकरियां, पासआउट्स के लिहाज से काफी कम हैं. अब सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री का भी बुरा हाल चल रहा है, इसका असर भी छात्रों पर खूब पड़ रहा है.

इस पर से 'करेले पर नीम चढ़ा' की हालत अलग,

पिछले कुछ सालों में कई रिपोर्ट सामने आए, जिनमें कहा गया कि देश के कुल इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स का 10 से कम फीसद ही इंजीनियरिंग की जॉब करने लायक हैं. कोर स्ट्रीम में इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों को इन नौकरियों के लायक नहीं समझा जाता.

दरअसल, हजारों की संख्या में कुकुरमुत्ते की तरह खुले प्राइवेट कॉलेज इंजीनियरिंग करा रहे हैं. जहां प्रैक्टिकल कराने के लिए सही से लैब का इंतजाम तक नहीं है. सिलेबस भी ऐसा जिसका आजकल की प्रैक्टिकल इंजीनियरिंग से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं हैं. ऐसे में जो लोग पहले इंजीनियरिंग कर चुके हैं वो भी दूसरों को यही राय देते दिखते हैं कि इंजीनियरिंग से बचा जाए तो ही बेहतर है.

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