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किसान आंदोलन को समझने में नाकाम रही शिवराज सरकार, नतीजे सामने हैं

शिवराज सरकार ने महज एक किसान संगठन भारतीय किसान संघ से बात करके ही आंदोलन को खत्म मान लिया

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मध्य प्रदेश का किसान आंदोलन लगातार उग्र होता जा रहा है. किसान पिछले 7 दिनों से हड़ताल पर हैं, 5 किसानों की मौत के बाद तो हालात सरकार के हाथ से निकलती दिख रही है. इस पूरे मामले में प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं.

ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने शुरुआती दौर से ही इतने बड़े मामले को गंभीरता से नहीं लिया. इस बात का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि शिवराज सरकार ने महज एक किसान संगठन भारतीय किसान संघ से बात करके ही आंदोलन को खत्म मान लिया. आगजनी, लाठी चार्ज, फायरिंग और 5 मौतें हुईं, हालात बेकाबू हैं लेकिन शिवराज सिंह इसे राजनीतिक साजिश बताकर, अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए नजर आए.

मामला बढ़ता देख केंद्र की बीजेपी सरकार शिवराज सिंह से जवाब-तलब कर सकती है. बताया जा रहा है कि बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने पूरे मामले पर रिपोर्ट मांगी है.
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हर दिन आंदोलन नया हिंसक स्वरुप ले रहा है और शिवराज इस मामले को सही ढंग से सुलझा नहीं पा रहे हैं. सरकार की तरफ से हर एक चीज गड़बड़ होती दिख रही है-

कुछ नमूने देखिए:

  • सरकार ने पहले पुलिस फायरिंग से इनकार किया, फिर माना गया कि फायरिंग हुई है.
  • पहले मुआवजे की रकम 5 लाख, फिर 10 लाख और फिर एक करोड़ रुपए की गई
  • एक करोड़ रुपए का मुआवाजा तो कभी किसी को नहीं दिया गया
  • किसान नाराज हैं लेकिन सिर्फ 'भारतीय किसान संघ' से बात करके तय हो गया कि सबकुछ ठीक है. दूसरे संगठनों की अनदेखी क्यों की गई ?
  • किसानों की समस्या को निपटाने के लिए अफसरों को तैनात किया गया वो भी देरी से
  • पार्टी के नेताओं के बजाए, डीएम और दूसरे अफस नेताओं जैसे काम करते नजर आए. उन्हें ज्यादा छूट दी गई.

नतीजा देखिए:

पिछले 7 दिनों से प्रदेश में एक तरीके से अघोषित कर्फ्यू लगा है. दूध और सब्जियों की सप्लाई किसानों के आंदोलन की भेंट चढ़ी है. खास तौर से मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर, उज्जैन, मंदसौर और नीमच जैसे इलाकों में तो हालात और बुरे हैं.

ये इलाके बीजेपी के गढ़ हैं, जहां इन दिनों किसानों ने अपना डेरा जमा रखा है, प्रदेश की शिवराज सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं.

मध्य प्रदेश के मालवा को तो धान का कटोरा कहा जाता है. यहां पर सोयाबिन, गेंहू फल-सब्जियां और दालें भरपूर मात्रा में पैदा होती हैं. पैदावार अच्छी होने के बावजूद किसानों को इसका वाजिफ दाम नहीं मिलता, इसी हक को मांगने के लिए किसान सड़कों पर उतरे हुए हैं.

आंदोलन इतना उग्र होता जा रहा है कि मंदसौर में 5 किसानों की पुलिस फायरिंग में जान चली गई. खुफिया एजेंसियों की चूक भी इस पूरे आंदोलन में ऊभर कर सामने आई है. ऐसा भी कह सकते हैं कि पूरे मामले में शिवराज के अफसर नेताओं की भूमिका में दिखें और नेता क्या कर रहे थे ये नहीं समझा जा सका.

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राजनीतिक नफा-नुकसान

किसानों के इस आंदोलन पर कई पार्टियों ने सियासी रोटियां सेंकनी शुरू कर दी है. कांग्रेस इनमें सबसे आगे हैं. राहुल गांधी जल्द ही मध्य प्रदेश पहुंच सकते हैं. कांग्रेस के इस तरह के किसान प्रेम से शक भी होता है.

अगर कांग्रेस ने वास्तविक तौर पर किसानों की हितों की न सोचकर इसे अवसर के तौर पर देखा तो उसे कोई फायदा नहीं होने जा रहे है. क्योंकि प्रदेश में अब भी कांग्रेस की जड़ें बहुत कमजोर है.

बीजेपी के लिए ये पूरा किसान आंदोलन एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा सकता है, मध्य प्रदेश में अकेले मालवा में ही विधानसभा की 65 सीटें हैं जिनमें ज्यादातर बीजेपी के ही पास हैं. मालवा का किसान अब आंदोलन कर रहा है, बीजेपी की इस सरकार से उसे कुछ भी फायदा होता नहीं दिख रहा है.

ऐसे में ये ‘मामा’ शिवराज और बीजेपी के लिए चुनौती होगी कि वो किसानों की समस्याओं को अब कैसे सुलझाएं.

(लेखक राजा शर्मा इंदौर में रहते हैं और पत्रकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है )

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