वक्त- सुबह 7 बजे. दिल्ली से बरेली की तरफ जाने वाले नेशनल हाईवे-24 पर गढ़मुक्तेश्वर से 6 किलोमीटर पहले एक पतली सी सड़क बांयी तरफ कटती है. उस पर मुड़ते ही पशुओं के रंभाने की आवाज और गोबर की गंध आपको घेर लेते हैं. हल्की बारिश की वजह से कंक्रीट की पक्की सड़क भी मिट्टी और गोबर के कीचड़ से सन चुकी है.
हापुड़ जिले के गांव अठसैनी में आपका स्वागत है.
अठसैनी में अफजाल अली की 34 बीघा जमीन पर आम के बगीचे की छांव में एक पशु बाजार लगता है. पिछले साठ साल से हर हफ्ते लगने वाले इस बाजार में खरीद-बिक्री के लिए हजारों मवेशी आते हैं. लेकिन इन दिनों बाजार की रौनक पर डर और असमंजस का साया है.
डर की वजह है गाय और भैंसो को गोश्त के लिए बेचने के खिलाफ बना माहौल. यूं तो ये माहौल देश के तमाम इलाकों में है लेकिन बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश में ये कुछ ज्यादा ही दिख रहा है. डर के इसी माहौल की जमीनी हकीकत का अंदाजा लेने हम पहुंचे अठसैनी पशु बाजार.
सरकार-पुलिस का डर
ऐसा आमतौर पर नहीं होता कि मोबाइल-कैमरा और माइक के साथ कोई पत्रकार किसी बाजार में पहुंचे और तमाम लोग उसे शक की निगाह से देख रहे हों. शक इस बात का कि कहीं ये सरकार या पुलिस का गुर्गा तो नहीं. अठसैनी पशु बाजार में हमें यही अजीब तजुर्बा हुआ. ज्यादातर लोग हमें अपना नाम-पता तक बताने को तैयार नहीं थे.
आलम ये कि पैठ मालिक (जिसके पास बाजार लगवाने का लाइसेंस है) अफजाल अली ने एक लोकल पत्रकार को बुलवाकर हमारे पहचान-पत्र की जांच तक करवाई. इस शक की वजह दरअसल वो खौफ है जो कथित गौरक्षकों ने पैदा कर दिया है. काफी कोशिशों के बाद लोग हमसे बात करने को तैयार हुए.
पेशे से किसान जाकिर (पूछने के बाद भी अपना पूरा नाम उन्होंने हमें नहीं बताया) करीब 35 किलोमीटर दूर से मेले में अपनी भैंस बेचने आए हैं. 4 साल की इस दुधारू भैंस की कीमत उन्होंने 55 हजार रुपये तय की है. जाकिर को इसी साल सर्दियों में अपनी बेटी की शादी करनी है. इसीलिए वो अपनी दुधारू भैंस बेच रहे हैं. लेकिन उनके मुताबिक
भैंस को बाजार तक लाने का काम भारी मुसीबत का है. पूरे रास्ते डर बना रहता है कि बजरंग दल वाले गोश्त के नाम पर बेचने का आरोप लगाकर भैंस छीन न लें. उनसे बचे तो पुलिसवालों का डर है. बिक्री के लिए जा रहे हर जानवर पर पुलिस वाले एक-एक हजार रुपये की रिश्वत ले लेते हैं.
इतना डर है कि जाकिर अपनी भैंस को वापिस ले जाने के बजाए औने-पौने दाम पर बेचने को भी तैयार हैं. यही वजह है कि बाजार में पशुओं की कीमत में 40-50 फीसदी तक की गिरावट है जिसका सीधा-सीधा नुकसान पशु-मालिक किसानों को हो रहा है.
लोगों ने हमें बताया
मार्च महीने के बाद से इस बाजार में गाय, बैल और बछड़े पूरी तरह गायब हैं. वजह है उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की ताजपोशी और माहौल में आया बदलाव.
देश के कई राज्यों समेत यूपी में गाय को गोश्त के लिए बेचने पर कानूनी रोक पहले से है. लेकिन पालने के लिए दुधारू गाय, जवान बैल और बछड़ों की खरीद-बिक्री पर की रोक नहीं है. मगर यूपी में सत्ता बदलने के बाद से कथित गौरक्षकों की गुंडागर्दी की घटनाएं तेजी से बढ़ीं और गाय और उसके वंशज पशु बाजारों से गायब हो गए.
अठसैनी से 20 किलोमीटर दूर सिंगरावटी गांव से आए प्रेमपाल सिंह भी अपनी दुधारू भैंस बेचने बाजार में आए हैं. उन्होंने बताया कि
मेरे पास भैंस के अलावा पांच गाय और दो बछड़े हैं. मैं उनका क्या करुंगा. हमें तो कर्ज भी पशुओं के बेस पर ही मिलता है और वो बिक नहीं रहे. दूध का ढोर (पशु) भी बेचने जाओ तो उसे भी रास्ते में छीन लेते हैं.
बुरी तरह गिरा पशु व्यापार
‘रास्ते में छीनने’ के इस डर ने बाजारों में पशुओं का व्यापार पहले के मुकाबले बेहद कम कर दिया है. अफजाल के भाई इकबाल ने हमें बताया कि
पहले डेढ़- दो हजार मवेशी आते थे जो अब घटकर 400-500 रह गए हैं. इसके अलावा अगर मीडिया में पशुओं से जुड़ी कोई बयानबाजी हो जाए तो बाजार खत्म ही हो जाता है.
बाजार की इस घटी रौनक का असर सिर्फ पशु व्यापारियों पर ही नहीं पड़ा. दरअसल, हर मेले की तरह साप्ताहिक पशु बाजारों में भी तरह-तरह की दुकानें लगती हैं. कपड़े-लत्ते, खाना-पीना और पशुओं से जुड़े रस्सी, घंटी, लाठी, घुंघरू जैसे सामान.
25 किलोमीटर दूर स्याना गांव से अठसैनी आए 27 साल के नदीम ने हमें बताया कि
पशु नहीं बिकेंगे तो हमारा सामान क्या बिकेगा. पहले चार-पांच हजार रुपये की बिक्री होती थी जो अब हजार-डेढ़ हजार की रह गई है.
आगे और बढ़ेगी मुसीबत
पशु व्यापार की ये मुसीबत आने वाले दिनों में और बढ़नी है. हाल ही में यूपी पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह ने गाय की हत्या या तस्करी करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाने का आदेश दिया है. इससे पहले 23 मई को केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर पशु बाजार में गोश्त के लिए मवेशियों की बिक्री पर रोक लगा दी है. नए कानून में गाय के साथ भैंस और ऊंट भी शामिल हैं.
हालांकि, इस अधिसूचना पर फिलहाल मद्रास हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया है. लेकिन इस तरह के कानून असमंजस, पुलिस-राज और असामाजिक तत्वों की गुंडागर्दी बढ़ने की आशंका है.
रूरल-इकनॉमी पर भारी संकट
एक अनुमान के मुताबिक, 70% मवेशी छोटे, सीमांत किसान और भूमिहीन मजदूरों के पास हैं. पशुओं की खरीद-बिक्री पर पाबंदी से सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं लोगों को होना है.
जाहिर है कि नए नियम और उनसे पैदा नया माहौल, मीट उद्योग से होने वाली करोड़ों की कमाई के संकट को बढ़ाएगा ही, देश की रूरल-इकनॉमी की जड़ें भी खोखली कर देगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)