गुजरात चुनाव में पहले चरण की वोटिंग आज सुबह 8 बजे से शुरू हो चुकी है. इस चरण में दक्षिण गुजरात और सौराष्ट्र की 89 सीटों पर वोटिंग होनी है. इन सीटों पर 2.12 करोड़ वोटर्स हैं.
यहां हम आपको बता रहे हैं पिछले चुनावी आंकड़ों से निकलते 5 संकेत, जो भविष्य के कुछ इशारे दे सकते हैं.
1.शहरी इलाके रहे हैं बीजेपी का गढ़
बीजेपी ने 2012 में राज्य की 182 में से 115 सीटें जीतीं. कांग्रेस को 61 सीटें मिलीं. बीजेपी की नैया पार लगाने में शहरी वोटर का बड़ा योगदान रहा. 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का शहरी वोट शेयर 59.5% था जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 32.8% था. अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा जैसे शहरों में बीजेपी के पक्ष में जम कर वोट पड़े. शहरी मतदाताओं का रुझान बीजेपी की तरफ कितना था इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पूरे राज्य में बीजेपी का ओवरआॅल वोट शेयर 47.9 % रहा था लेकिन कुल वोट का 60% शहरों से बीजेपी के खाते में गया था. उसी तरह साउथ गुजरात भी बीजेपी का गढ़ रहा है.
हां, सौराष्ट्र और कच्छ में कांग्रेस ने टक्कर देने की कोशिश की थी.
सर्वे बताते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी के लागू होने से शहरी कारोबारियों का मूड खराब है. अगर ये गुस्सा विरोधी के वोट में तब्दील हुआ तो...
2.बीजेपी की पकड़ गांवों में बहुत मजबूत नहीं
दूसरी अहम बात ये है कि इतने सालों के शासन के बाद भी बीजेपी गांवों में मजबूत पकड़ नहीं बना पाई है. ग्रामीण इलाकों की सीटों की बात करें तो कांग्रेस ने 49 सीटों पर जीत दर्ज की थी वहीं बीजेपी का स्कोर इन इलाकों में 44 सीटों पर जीत का रहा. गांधीनगर, बनासकांठा, साबरकांठा जैसे जिलों में कांग्रेस आगे रही. साबरकांठा में तो कांग्रेस ने 7 में से 6 सीटों पर जीत हासिल की थी.
3.आदिवासी वोट कांग्रेस को मिलते रहे हैं
अब बात करते हैं ट्राइबल्स की. यहां भी बीजेपी, कांग्रेस से सीट और वोट शेयर दोनों मामलों में पीछे है. 2012 के चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर आरक्षित (अनुसूचित जन जाति) वाले इलाके से 45.3% रहा था. जबकि बीजेपी का वोट शेयर 40.2 % था. 2007 से तुलना की जाए तो बीजेपी एक सीट से घाटे में चली गई थी. जबकि कांग्रेस को 4 सीटों का फायदा हुआ था.
ये वोट भी अहम हैं क्योंकि गुजरात की जनसंख्या में 15% ट्राइब्स हैं.
4.कम वोट मार्जिन पर हो सकता है उलटफेर
2012 के चुनाव में 36 सीटों पर वोट मार्जिन 5000 से कम था. इतने कम मार्जिन वाली सीट में उलटफेर संभव है. इन इलाकों में वोटर के मूड में मामूली बदलाव भी चुनावी गणित को काफी बदल सकता है.
5. ‘अन्य’ की हैसियत में कमी आई तो
पिछले कुछ चुनावों में देखा गया है कि कांग्रेस और बीजेपी के अलावा दूसरी पार्टियां 10 से 15 फीसदी वोट पा रही हैं. ऐसे में इन पार्टियों की हैसियत में कमी आती है तो दो प्रमुख पार्टियों के वोट शेयर का गणित काफी बदल सकता है. इसका असर चुनाव के नतीजों पर होना भी तय है.
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