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बहुत हो गई बहस, महाभारत काल में इंटरनेट था, वो भी 5G स्पीड वाला 

सनसनीखेज खुलासों से नासा में हड़कंप

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दो दोस्त आपस में बात कर रहे थे. एक ने कहा हमारे घर में 2000 साल पहले भी टेलीफोन था, दूसरे ने पूछा क्या सबूत है तुम्हारे पास, उसने कहा खुदाई में एक बहुत पुराना तार मिला था. दूसरे दोस्त ने कहा हमारे घर में तो 2000 साल पहले भी मोबाइल फोन था, क्योंकि खुदाई में कुछ नहीं मिला था.

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने अपने नाम के मुताबिक सनसनीखेज खुलासा करके टेक्नोलॉजी की दुनिया में हंगामा मचा दिया है. बिप्लब देब ने रहस्य उजागर कर दिया कि महाभारत काल यानी करीब 5000 साल पहले भी इंटरनेट मौजूद था. यही नहीं आधुनिक सैटेलाइट भी उसी वक्त वजूद में आ चुका था.

इन तर्कों के सामने कौन ठहरेगा

बिप्लब देब का तर्क है कि अगर इंटरनेट नहीं रहा होता तो हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र को संजय युद्ध का आंखो देखा हाल कैसे सुना पाते?

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त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बीजेपी की नई पीढ़ी के नेता हैं, सिर्फ 46 साल के हैं, मतलब उन्हें आधुनिक माना जा सकता है. जाहिर है उनकी बातों को हल्के में नहीं लिया जा सकता. वो एक संवैधानिक पद पर हैं इसलिए उनकी बात को गप्प भी करार नहीं दिया सकता. उनके हाथ जरूर ऐसे सीक्रेट दस्तावेज लगे होंगे जिससे पता चलता है कि हाईस्पीड इंटरनेट टेक्नोलॉजी उस जमाने में रही होगी.

किसी को शंका संदेह ना रहे इसलिए त्रिपुरा के गवर्नर तथागत रॉय ने भी अपने मुख्यमंत्री की बातों पर पक्की मुहर लगा दी है.

बिप्लब देब सही कह रहे हैं, बिना प्रोटोटाइप के आविष्कार नहीं हो सकता. पौराणिक बातों का महत्तव है. सच यही है कि उन दिनों इस तरह की टेक्नोलॉजी जरूर रही होगी
तथागत रॉय, राज्यपाल, त्रिपुरा

अब दो दो शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे लोग जब कह रहे हैं तो इस पर सवाल उठाने का मतलब ही नहीं.

गुरुकुल में भी इंटरनेट जरूर रहा होगा

त्रिपुरा के युवा सीएम जो खुलासा कर रहे हैं उसमें संदेह नहीं होना चाहिए. ये बातें पक्के तौर पर रही होंगी क्योंकि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने भी दो दिन पहले कहा है कि वो प्राचीन गुरुकुल सिस्टम को दोबारा शुरु करना चाहते हैं.

ये मात्र संयोग नहीं है, परिस्थितियों के मुताबिक जो सबूत सामने आए हैं वो बताते हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि हजारों साल पहले महाभारत काल में इंटरनेट टेक्नोलॉजी थी, सैटेलाइट था क्योंकि उस वक्त के गुरुकुल बहुत आधुनिक थे.

रिसर्च पेपर हाथ लग गया

काफी कोशिश के बाद हमें वो रिसर्च पेपर मिल गया है. इसमें कई हैरान करने वाली बातें मिली हैं. पता चला है कि कौरव पांडवों के गुरुकुल के संचालक आचार्य द्रोणाचार्य उन दिनों इंटरनेट के जरिए पढ़ाई करवाया करते थे.

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पढ़ा एकलव्य

द्रोणाचार्य का गुरुकुल हस्तिनापुर के करीब था जिसमें कौरवों और पांडव राजकुमारों ने एडमिशन ले रखा था. एकलव्य भी उनसे शिक्षा लेना चाहता था लेकिन हस्तिनापुर काफी दूर था.

एकलव्य ने प्रस्ताव दिया कि गुरुदेव उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ट्रेनिंग दे सकते हैं. हाईस्पीड इंटरनेट स्पीड की वजह से इसमें कोई दिक्कत नहीं हुई और द्रोणाचार्य ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एकलव्य को उसी क्वालिटी की एजुकेशन और हथियारों की ट्रेनिंग दी जो दूसरे कौरव और पांडव राजकुमारों को मिली थी.

इस बात का यकीन है कि जल्द ही इस बात का खुलासा भी हो जाएगा कि महाभारत के वक्त चूंकि इंटरनेट था तो डिजिटल ट्रांजैक्शन भी बड़े पैमाने पर होता था. इसलिए अभी जो डिजिटल ट्रांजैक्शन पर जोर दिया जा रहा है उसमें कुछ भी अनोखा नहीं है सब पुराने जमाने का है.

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ब्रिटेन और नासा के वैज्ञानिक सन्न

बिप्लब देव ने कहा इंटरनेट ही नहीं सैटेलाइट टेक्नोलॉजी भी उस वक्त मौजूद थी. मतलब इसरो को सैटेलाइट टेक्नोलॉजी हासिल करने के लिए कोई दिक्कत नहीं करनी पड़ी. बल्कि हो सकता है कि भारत की ही टेक्नोलॉजी की वजह से नासा चल रही हो, इसलिए भारत उससे अरबों डॉलर की रॉयल्टी की मांग भी कर सकता है.

इस खुलासे से ब्रिटेन और अमेरिका तक सभी वैज्ञानिक सन्न हैं. खास तौर पर ब्रिटेन को तो इस बात का ही अफसोस है कि भारत में इतने साल राज करने के बाद भी ये टेक्नोलॉजी उसके हाथ क्यों नहीं लगी.

ब्रिटेन तो इस बात की जांच भी करा सकता है कि भारत में 100 साल राज करने के बाद भी उन्हें ये बात क्यों पता नहीं चली.

कहा जाता है जब नए आविष्कार होते हैं, नए सिद्धांत बनते हैं, वैज्ञानिक खोज होती हैं तो बने बनाए ढर्रे टूटते हैं. हम अपनी जड़ों की तरफ लौट रहे हैं.

इसरो से लेकर भाभा संस्थान तक, आईआईटी तक सब जगह कथाओं को पढ़ना जरूरी बना देना चाहिए, क्या पता हम टेक्नोलॉजी में पिछलग्गू बनने के बजाए लीडर बन जाएं. फिर ना हमें ना तो एफडीआई की फिक्र करने की जरूरत और ना ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस से मिन्नतें करने की जरूरत.

इस रास्ते पर चल निकले तो तय है कि दूसरे देश लाइन लगाकर भारत से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का अनुरोध करेंगे और हम उन्हें ज्ञान बांटेंगे.

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