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मोदी इंटरव्यू: सवाल-जवाब पहले से तय थे तो इतनी गलतियां क्यों हुईं?

नए इंटरव्यू से भी पीएम मोदी को सुर्खियां मिलीं, लेकिन साथ में बदनामी भी

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इस इलेक्शन सीजन पीएम मोदी ने एक और इंटरव्यू दिया. इंटरव्यू दे-देकर सुर्खियों पर कब्जा जमाते जा रहे पीएम मोदी के ताजा इंटरव्यू से तीन ऐसी चीजें निकलकर आईं कि लोग पेट पकड़-पकड़ कर हंस रहे हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उनके बयानों को लेकर लतीफों से पटे हुए हैं. कहीं 'बादल' से ट्रोल बरस रहे हैं, कहीं 'ई-मेल' पर चुटकुले भेजे जा रहे हैं तो कहीं 'डिजिटल कैमरे' पर तस्वीर बिगाड़ी जा रही है. लेकिन हकीकत ये है कि ये सब हंसी मजाक की बात नहीं है. 21वीं सदी के भारतीय वोटर का दिल बहलाने के लिए जो लंबा सीरियल चल रहा है, ये उसी का ताजा एपिसोड है.

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पहले से तय थे सवाल और जवाब?

इसी इंटरव्यू में एंकर ने पीएम से पूछा - मैं कवि नरेंद्र मोदी से पूछना चाहता हूं कि क्या आपने पिछले 5 सालों में कुछ लिखा है?

जवाब में मोदी कहते हैं -''आज भी मैंने हिमाचल से आते हुए रास्ते में एक कविता लिखी. शायद मेरी फाइल पड़ी होगी, साथ है?' फिर वो अपने स्टाफ की ओर देखते हैं और इशारों में फाइल मांगते हैं. जिन पन्नों पर कविता लिखी थी, वो मिलने के बाद पीएम मोदी उठाकर दिखाते हैं और कहते हैं कि काफी रफ है, अभी तो ऐसे ही टेढ़े मेढ़े अछरों में लिखा पड़ा है. एंकर कहते हैं कि अच्छा है लोगों को आपकी हैंडराइटिंग दिख जाएगी. इस पर मोदी एक बार फिर कागज को हवा में लहराते हुए कहते हैं कि लोगों को मेरी हैंडराइटिंग पसंद नहीं आएगी.

इंटरव्यू के दौरान तो कुछ समझ नहीं आया लेकिन फिर एक वेबसाइट ने इंटरव्यू के इस हिस्से का स्लोमोशन वीडियो शेयर किया. वीडियो में साफ दिखा कि जो सवाल एंकर ने पूछा था वो पीएम मोदी को दिए गए पन्नों पर प्रिंट था. उसके नीचे कविता भी प्रिंट थी.

ये कैसे हुआ कि उधर एंकर ने सवाल पूछा और इधर मोदी जी के हाथ में पड़े पन्नों में छप गया? क्या जैसे ई-मेल की तकनीक आम जनता से पहले मोदी जी को मिल गई थी, उसी तरह ये कोई नई तकनीक है जो अभी जन सामान्य के हाथ नहीं लगी है? लेकिन ऐसा है भी तो फिर प्रिंटेड कविता को दिखाकर पीएम मोदी क्यों कह रहे थे कि उनकी लिखावट खराब है?

विपक्ष ने सवाल उठाया है कि क्या सवाल और जवाब पहले से तय थे. बहरहाल इस स्लोमोशन वीडियो के सामने आने के बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर मजे लेने शुरू कर दिए.

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ई-मेल पर मिले चुटकुले

इंटरव्यू में पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने 1987-88 में डिजिटल कैमरे से आडवाणी की कलर फोटो ली और फिर गुजरात से दिल्ली ई-मेल किया. सोशल मीडिया पर लोगों ने सवाल दागा कि देश में आम जनता के लिए ई-मेल की शुरुआत 1995 से हुई तो आपने 1987 में ही कैसे ई-मेल कर दिया. ये भी पूछा कि जब आज भी देश के ज्यादातर हिस्सों में नेट की स्पीड बैलगाड़ी की रफ्तार से चलती है तो आपने एक भारी-भरकम फाइल (फोटो) अटैच करके 1987 में ही कैसे भेज दी? तीसरा सवाल कि जब डिजिटल कैमरों की बिक्री 1990 में शुरू हुई तो आपके हाथ 1987 में कैसे लगी? सवाल ये भी पूछा जा रहा है कि जब आप बार-बार कहते हैं कि गरीबी में जीवन बीता तो ई-मेल और डिजिटल कैमरे जैसी महंगी सहूलियतें कैसे मिलीं?

'बादल' से फूटी हंसी की फुहार

इसी इंटरव्यू में पीएम मोदी ने ये भी कहा था कि बालाकोट एयर स्ट्राइक की रात उन्होंने एक्सपर्ट्स को सलाह दी थी कि खराब मौसम है, बादल हैं, फिर भी आप स्ट्राइक कीजिए क्योंकि बादलों के कारण पाकिस्तानी रडार हमारे विमानों को पकड़ नहीं पाएंगे. नेशनल टेक्नोलॉजी डे पर आए इस इंटरव्यू में रडार तकनीक के बारे में पीएम मोदी के इस ज्ञान का खूब मजाक उड़ा. लोगों ने समझाया कि रडार को बादल नहीं रोक पाते. ये खराब मौसम में भी काम करता है.

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गलती या सोची समझी चाल?

कहा जाता है कि भाषणों से लेकर पब्लिक मीटिंग तक में पीएम मोदी क्या बोलेंगे, इसपर एक लंबी चौड़ी इलीट टीम काम करती है. इस इंटरव्यू के लिए भी अगर सवाल जवाब पहले से तय थे तो इतनी भयंकर गलतियां कैसे हुईं? क्या ये किसी भी कीमत पर सुर्खियों का रंग भगवा रखने की कोशिश थी? क्या ये तर्क को ताक पर रखकर वोट जुटाने के लिए किया गया स्टंट था? क्या ये उसी सोच का नतीजा था कि इस देश में सब चलता है? क्या ये देश के 21वीं सदी के वोटर की इंटेलिजेंस को चुनौती नहीं है? ये उनकी समझ का मजाक उड़ाना नहीं है क्या? जरा सोचिए बादलों और रडार का कनेक्शन सुन देश के रक्षा एक्सपर्ट्स को कैसा लग रहा होगा? जरा सोचिए 1987 में ई-मेल की बात सुन स्पेस टेक्नोलॉजी में नए कीर्तिमान बना रहे वैज्ञानिकों को कैसा लगता होगा? बहरहाल अगर ये वोट के लिए स्टंट है भी, ये नया स्टंट नहीं है.

राहुल गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा कि वो टीवी पर आने से नहीं डरते, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, गलतियां होंगी, होने दीजिए. लगता है दूसरे अर्थों में मोदी जी पहले से ही इसे फॉलो कर रहे हैं.

इस चुनाव में सरकार वोटर से जो बातें कह रही हैं, वो भी किसी स्टंट से कम नहीं. पांच साल पहले ‘अच्छे दिन आएंगे’ का वादा करने वाली सरकार के काम का जब मूल्यांकन करने का वक्त आया तो वो ये बताने को तैयार नहीं कि उसने क्या किया? हर साल एक करोड़ नौकरियां देने का वादा करने वाली सरकार पांच साल बाद आज ये तक नहीं बता पा रही कि देश में कितने बेरोजगार हैं. वो युवा वोटरों से बालाकोट के नाम पर वोट मांग रही है. बीजेपी के नेता खुलकर कह रहे हैं कि ये चुनाव राष्ट्र सुरक्षा के नाम पर लड़ा जा रहा है. जबकि सच्चाई ये है कि देश में 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है.

मेक इन इंडिया में क्या बनाया, पता नहीं. नोटबंदी से कितना काला धन रुका, पता नहीं. तो वादा किसी चीज का और वोट मांग रहे हैं किसी और चीज के नाम पर. ये वोटर को मूर्ख समझना नहीं है तो क्या है?

जो देश मंगलयान बना रहा है, जिस देश के वैज्ञानिक एंटी सैटेलाइट मिसाइल बना रहे हैं, जिसकी तकनीक का लोहा पूरी दुनिया मानती है, उस देश के नागरिकों से पीएम ऐसी बातें करें तो क्या वो खेल नहीं समझेंगे? क्या इसके आसार नहीं हैं कि चुनाव प्रचार से लेकर इंटरव्यू तक में हो रहे स्टंट का दांव उल्टा पड़ जाएगा? ज्यादातर जनता ने अपना जवाब EVM के जरिए दे दिया है. जवाब क्या है, 23 मई को पता भी चल जाएगा.

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