ADVERTISEMENTREMOVE AD

होली: मोदी राष्ट्रवाद से रंगेंगे या राहुल चलाएंगे ‘राफेल पिचकारी’

जानिए इस होली पर कौन-सा नेता किसे कौन-सा रंग लगाना चाहेगा.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

राजनीतिक होली का नाम सुना है? हां वही, जहां 'दाग' अच्छे होते हैं. मतलब जो दागदार नहीं, वो नेता-कलाकार नहीं. ऐसे होली और राजनीति फोटोकॉपी हैं, एक-दूसरे की. जैसे होली में होलिका दहन, वैसे राजनीति में भी तो एक-दूसरे को भस्म करने का काम चलता है. यहां भी तो जुमलों के गुब्बारे फेंके जाते हैं, शब्दों की पिचकारी चलती है, कोई किसी का कुर्ता फाड़ता है, तो कोई रंग-बिरंगी टोपी बदलता है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस होली पर कौन-सा नेता किसे कौन-सा रंग लगाना चाहेगा.

मसलन मोदी जी चाहेंगे कि वो जनता के चेहरे पर राष्ट्रवाद का रंग लगाएं, जो कम से कम आने वाले दो महीने तक तो उतरे नहीं. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिवाली वाले राफेल रॉकेट की मदद से मोदी जी के चेहरे पर भ्रष्टाचार का रंग लगाना तो चाहेंगे ही. 

आइए देखते हैं, कौन किसे कौन-सा रंग लगाएगा और किसे किन रंगों से परहेज है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी जी और उनके फेवरेट कलर

रंग खुद लगाना और स्वच्छता अभियान में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना कोई मोदी जी से सीखे. हां, वो अलग बात है कि काले रंग को लेकर थोड़ा कन्फ्यूजन है. काला अगर कपड़ा है, तो ‘नो एंट्री’, मतलब हर रैली से पहले बेचारे अधिकारि‍यों को 'काला ढूंढो' अभियान में लगना पड़ जाता है. लेकिन वही काला अगर धन है, मतलब ब्लैकमनी है, तो उस पर अटैक. उस ब्लैक धन के चक्कर में नोटबंदी ने कितनों के चेहरे के रंग ही उड़ा दिए.

काला पैसा मिला या नहीं, इसका तो पता नहीं, लेकिन होली के बाद जो पॉकेट में रखे नोटों का रंग बदल जाता था, वो अब पहले से ही गुलाबी, हरे, पीले, नीले रंग के रंग में बदल चुके हैं.

राहुल की बोली में छिपी उनकी होली

राहुल गांधी 2019 के चुनाव से पहले सूखे, गीले, गुलाल, पिचकारी, हर तरह के रंग पीएम मोदी पर उछाल रहे हैं. फिलहाल तो वो पीएम मोदी पर राफेल के नाम पर भ्रष्टाचार का रंग लगाने में जुटे हैं. यही नहीं, वे तो बेरोजगारी से फीके पड़ गए युवाओं के चेहरे का रंग दिखाकर बीजेपी की होली पार्टी ही कैंसिल करने पर लगे हैं. यहां एक प्रॉब्लम ये है कि इन्हें होली खेलनी भी है, लेकिन मोहल्ले के बाकी साथी या गठबंधन से दूरी बनाकर.

योगी की होली में रंग एक ही है

होली रंग नहीं, रंगों का त्‍योहार है, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बात कुछ और ही है. शायद ही किसी ने योगी आदित्यनाथ को कभी हरे, नीले, सफेद, पीले रंग के कपड़े में देखा होगा. खैर, कपड़े किसी रंग का भी पहनें, लेकिन वो एक रंग से इतना प्यार करते हैं कि समझ नहीं आ रहा कि होली में भगवा के अलावा रंग खेलते भी हैं या नहीं. अब सुना तो ये भी गया है कि योगी जी के टीम मेंबर 'लट्ठमार होली' बहुत पसंद करते हैं.

अरविंद केजरीवाल आजकल 'होली फ्रेंड' ढूंढ रहे हैं

सफेद रंग के झंडे की राजनीति में जगह दिलाने वाले केजरीवाल आजकल होली खेलने के लिए साथी की तलाश में जुटे हैं. यहां तक कि दोस्ती के लिए धरना दे देंगे, टाइप भी माहौल चल रहा है. हालांकि उन्होंने अभी भी हिम्मत नहीं छोड़ी है.

ऐसे होली खेलने वाले इनके पूराने लगभग सभी साथी इनसे दूर हो चुके हैं. इनके कुछ साथियों को लगता है कि जनाब खुद ही पिचकारी चलाना चाहते हैं और खूद पर ही रंग लगता हुआ देखना चाहते हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

ममता दीदी को लाल से परहेज

बंगाल में सिर्फ लाल रंग से होली का ट्रेंड ममता दीदी ने तोड़ा. हालांकि उन पर कई बार हरे रंग से होली खेलने का आरोप लगता रहा है, तो कभी तो ऐसा हुआ कि उन पर रमजान के लिए होली न खेलने का आरोप तक लग गया.

ऐसे तो ममता दीदी लाल और भगवा, दोनों रंग से परहेज करती हैं. लेकिन होली खेलने के लिए उनके पास देशभर के अलग-अलग राज्यों में दोस्त भी कम नहीं हैं. हालांकि लगता नहीं है कि ममता दीदी अपनी होली पार्टी में राहुल गांधी को बुलाएंगी.

मायावती-अखिलेश नया रंग बनाने जा रहे हैं

बहनजी मायावती होली खेलती भी हैं या नहीं, कहना मुश्किल है. लेकिन सियासी होली में वो पुराने रंग को नया रूप जरूर देने में जुटी हैं. उनके साथ हैं अखिलेश यादव. मतलब एसपी-बीएसपी की होली. ऐसे मायावती कब, कौन से रंग उड़ाएंगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.

मायावती का चहेता रंग नीला है, लेकिन इस बार वे यूपी के चुनाव में ‘दलित-मुस्लिम’ रंगों के साथ खेल रही हैं. इतना ज्यादा कॉन्फि‍डेंट हैं कि कांग्रेस का हाथ थामने को भी नहीं तैयार हैं. ऐसे मायावती की वजह से लगता नहीं है कि इस बार ‘यूपी के दो लड़के’ राहुल और अखिलेश आपस में होली खेल सकेंगे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

महबूबा का रंग से हुआ मोहभंग

कश्‍मीर हो या कन्याकुमारी, होली के खुमार से कोई नहीं बच सकता. कुछ दिन पहले तक कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी मिलकर होली मनाती थी. लेकिन यहां दिक्कत ये हुई कि दोनों ने एक-दूसरे पर ऐसा रंग लगाना चाहा कि समझ ही नहीं आया कि किसका असली रंग कौन सा है. फिर क्या था, दोस्ती टूटी और होली से महबूबा का मोहभंग हो गया.

चंद्रबाबू नायडू को कौन-सा रंग पसंद है, ये कोई नहीं जानता

पूरब, पश्चिम हो या उत्तर, दक्षिण, रंग बदलने, लगाने, छुड़ाने की हवा चल रही है. कल तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू  पर मोदी जी का रंग चढ़ा हुआ था, लेकिन जो चढ़ता है, वो उतरता भी तो है. अब चंद्रबाबू नायडू उस रंग से पीछा छुड़ाकर नया रंग ढूंढ रहे हैं. होली खेलने के लिए नए दोस्तों से पक्की दोस्ती की बात कर रहे हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×