इन दिनों दिल्ली के एक आम आदमी की माफी सीरीज खूब सुर्खियां बटोर रही है. क्या आम, क्या खास, ज्यादातर लोगों को ऐसा लगता है कि माफी मांगने की बजाए उस आम आदमी को अपनी बात पर अड़े रहना चाहिए था. हालांकि कुछ का मानना है कि माफी मांगने में आखिर हर्ज क्या है? माफी मांगने और माफ करने का ट्रेंड कोई नया थोड़े ही है.
साल में एक दिन क्षमा दिवस के रूप में मनाया जाता है. बॉलीवुड में हमका माफी दइदो से लेकर एक्सक्यूज मी प्लीज तक ढेरों गीत हैं. क्षमा शोभती उस भुजंग को... जैसी उकसाने वाली कविताएं भी हैं. क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात... का सहारा लेकर भयंकर उपद्रव तक होते रहे हैं.
इन बातों के बावजूद, मेरी राय में किसी भी इंसान को मांफी मांगने की नौबत आने पर भी आसानी से सरेंडर नहीं करना चाहिए. ऊपर-ऊपर माफी मांगने का दिखावा जरूर हो, लेकिन भीतर ही भीतर सामने वाले को ही घुटने टेकने पर मजबूर करने की चाल छिपी हो. कैसे? अब जरा गौर से सुनिए...
तो माफी मांगने का दिखावा कैसे किया जाए?
अगर जगहंसाई से बचने का इरादा पक्का कर लिया हो, तो ये गांठ बांध लें कि किसी से भी सीधे-सीधे माफी नहीं मांगनी है. अगर कोर्ट-कचहरी का चक्कर महंगा पड़ रहा हो, तो इतनी शर्तों के साथ माफी मांगें कि सामने वाला खुद घुटने टेकने को मजबूर हो जाए.
अब सवाल है कि माफीनामे की भाषा या इसकी शर्तें कैसी होनी चाहिए? हम इस बारे में आपको कुछ हिंट दे रहे हैं. आप अपनी सुविधा या हालात के मुताबिक इसका इस्तेमाल कर सकते हैं:
- अगर मेरी किसी बात से किसी का दिल आहत हुआ हो, तो मैं खेद प्रकट करता हूं. यहां अगर को बोल्ड कर दें.
- माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता है, दिल में ये विचार करके ही माफी मांग रहा हूं.
- वैसे तो मेरी ओर से कोई गलती नहीं हुई है. इसके बावजूद अगर आपकी खुशी इस बात में है कि मैं माफी मांग लूं, तो मैं ऐसा करने को तैयार हूं.
- मैं आपसे माफी मांगने को तैयार हूं, बशर्ते आप मेरे लगाए सारे आरोपों से अदालत से बेदाग बरी होने की कुव्वत रखते हों.
- वैसे तो आपकी हरकतें बड़ी नहीं (मतलब एकदम छोटी) हैं. मुझे विवश होकर कहना पड़ रहा है कि आपका काम निंदा के योग्य ही था. इसके बावजूद मैं विनम्रता का परिचय देते हुए माफी चाहता हूं.
- मेरी माफी अदालती केस के निपटारे तक ही मान्य समझी जाए. केस खत्म होने के बाद भी मुझसे इस तरह शिष्ट बने रहने की अपेक्षा न की जाए.
- वैसे तो मैंने कोई गैरवाजिब बात नहीं कही थी, इसके बावजूद आप इसे बड़ा मुद्दा बनाकर अदालत चले गए. इस केस से आपको भी मानसिक यातना के दौर से गुजरना पड़ रहा होगा, ये सोचकर मैं ही माफी मांगता हूं.
- मेरे माफीनामे को अपनी जीत समझने का मुगालता न पालें. वक्त आने पर मैं भी किसी को कोर्ट का रास्ता दिखा सकता हूं.
- अदालत के चक्कर लगाते-लगाते मैं परेशान हो चुका हूं, वर्ना मैं आपको बीच रोड पर, सरेआम आदमी के बीच बता देता कि माफी मांगना किसे कहते हैं.
इनमें से ज्यादातर सुझाव सभ्य समाज को ध्यान में रखकर ही लिखे गए हैं, फिर भी इसमें अंतिम वाले ऑप्शन का इस्तेमाल निहायत ही मुश्किल हालात में किया जाना चाहिए.
वैसे दिल्ली के लोग घुमा-फिराकर बातें करने की जगह साफगोई में ज्यादा यकीन करते हैं. आपने बीच सड़क पर ऐसी सूक्तियां जरूर सुनी होंगी: मैं सॉरी तो बोल ही रहा हूं और तेरे को क्या चाहिए #@#$% के...
[क्विंट ने अपने कैफेटेरिया से प्लास्टिक प्लेट और चम्मच को पहले ही ‘गुडबाय’ कह दिया है. अपनी धरती की खातिर, 24 मार्च को ‘अर्थ आवर’ पर आप कौन-सा कदम उठाने जा रहे हैं? #GiveUp हैशटैग के साथ @TheQuint को टैग करते हुए अपनी बात हमें बताएं.]
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)