लोकसभा सचिवालय ने 'असंसदीय शब्द 2021' शीर्षक के तहत ऐसे शब्दों और वाक्यों की लिस्ट तैयार की है, जिन्हें ‘असंसदीय अभिव्यक्ति’ की श्रेणी में रखा गया है. अब इन शब्दों का इस्तेमाल करना गलत और असंसदीय माना जाएगा.
संसद में 'जुमलाजीवी', 'तानाशाही', 'गद्दार', 'बाल बुद्धि', 'कोविड स्प्रेडर', 'स्नूपगेट' जैसे शब्दों का इस्तेमाल असंसदीय कहलाएगा.
अब जैसे ही खबर लगी कि इन शब्दों को असंसदीय करार दे दिया गया है तो विपक्षी पार्टियां टेंशन में आ गईं. एक तो सरकार को घेरने के लिए बेचारों के पास दो चार शब्द हैं वो भी बोलने पर रोक.
वहीं इस मामले पर राज्यसभा सांसद और आरजेडी नेता प्रोफेसर मनोज झा का कहना है,
"आजादी के 75 वें वर्ष में जो भी ऐसी चीजें लेकर आ रहे हैं कि वो संभवतः समझते हैं कि इन शब्दों के प्रयोग को रोककर आप विपक्ष और आम आदमी के विरोध के स्वर और तेवर को कुंद कर सकते हैं, खत्म कर सकते हैं. विरोध शब्द नहीं ढूंढता है, वो भाव है. इसलिए मेरा पीठासीन पदाधिकारियों से आग्रह है कि यह अलोकतांत्रिक फैसला न होने दें".
चलिए अब आपको उन शब्दों के बारे में बताते हैं, जिन्हें असंसदीय कैटेगरी में रखा गया है.
अहंकार
अपमान
असत्य
बॉबकट
बाल बुद्धि
बेचारा
बहरी सरकार
चमचागिरी
भ्रष्ट
घड़ियाली आंसू
दादागिरी
दलाल
दंगा
ढिंढोरा पीटना
गद्दार
गिरगिट
जयचन्द
जुमलाजीवी
काला बाजारी
काला दिन
नौटंकी
निकम्मा
पिट्ठू
संवेदनहीन
शकुनी
तानाशाह
तानाशाही
विनाश पुरुष
विश्वासघाती
अब जरा ताजा-ताजा 'असंसदीय' हुए शब्दों का मतलब समझाते हैं.
'जुमलाजीवी'
अभी हाल ही में किसान आंदोलन के दौरान एक नए शब्द का जन्म हुआ था 'जुमलाजीवी', उस पर भी दिक्कत है. बाहर किसी को कोई जुमलाजीवी लगता है तो लगे, सदन के अंदर नहीं लगना चाहिए. अब करें तो करें क्या और बोलें तो बोलें क्या वाला सीन हो गया.
अहंकार मतलब घमंड, वही जो जीतने के बाद कुछ नेताओं को हो जाता है कि वो सर्वेसर्वा हैं. कुछ भी कर सकते हैं..
बहरी सरकार- मतलब जब सरकार जनता और जन प्रतिनिधियों की सुनना बंद कर दे. अपनी ही करती जाए. विपक्ष सरकार पर यही होने का आरोप लगातार लगाता रहा है. लेकिन अब सदन में नहीं लगा पाएगा... कम से कम इस शब्द के जरिए तो नहीं
चमचागिरी- देश में छात्र से लेकर हर दफ्तर और हर पार्टी इस बीमारी से पीड़ित है. पीढ़ी दर पीढ़ी चमचागिरी नाम के दीमक ने टैलेंट को चाट लिया लेकिन इसे बोलने असंसदीय हो गया है. बाहर में चलती रहेगी चमचागिरी, सदन में नो एंट्री.
भ्रष्ट - एक और दीमक जो देश को दशकों से चाट रहा है. भ्रष्टाचार तो इस देश की शाश्वत समस्या है. लेकिन सदन में Shhhh.
निकम्मा- मतलब कुछ नहीं करने वाला. जब देश में इतना काम हो रहा है तो शायद ठीक ही किया इस शब्द को उच्चरित करने से मना कर दिया.
दलाल- ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो, जन्म प्रमाण पत्र निकलवना हो या फिर और कोई काम कराना हो, दलाल नाम का प्राणी बड़ा काम आता है....लेकिन संसद में इसकी नो एंट्री है.
संवेदनहीन- माने जिसका मन किसी के दुख, तकलीफ को देखकर भी टस से मस नहीं होता. अगर किसी जनप्रतिनिधि को कोई और नेता ऐसा लगता है कि या सरकार ऐसी लगती है तो थोड़ी अपनी संवेदना को न दिखाए और ये शब्द मुंह पर न लाए.
तानाशाह- लोकतंत्र में इस शब्द का वैसे भी क्या काम है. आरोप लगाने वाले तो लगाएंगे लेकिन सदन में इसका क्या काम. समझ रहे हैं ना?
अंग्रेजी के इन शब्दों को देखिए
Untrue - माने असत्य, 'सतयुग' आ चुका है, Untrue बोलना मना है.
Incompetent-वही निकम्मा-मतलब आपको ऊपर समझा चुके, कारण समझाने की भी कोशिश कर चुके, वैसे आपसे ज्यादा इसका मतलब कौन जानता होगा..
Ashamed यानी शर्मिंदा...वैसे भी ये भाव पब्लिक लाइफ में लुप्त प्राय हो चुकी है, तो सदन में इसका क्या काम?
ऐसा नहीं है कि ये पहली बार है जब ऐसे शब्दों को असंसदीय कहा गया है. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा है कि ये प्रक्रिया काफी लंबे समय से चली आ रही है. 1954 से असंसदीय शब्दों को हटाने के प्रक्रिया रही है. उन्होंने तो 1100 पन्ने की असंसदीय भाषाओं की एक पूरी किताब ही दिखा दी. ओम बिरला का कहना है कि नए शब्दों पर बैन नहीं लगाया गया है, इन्हें सिर्फ असंसदीय घोषित किया गया है.
कानूनी भाषा में समझाते हैं
अब भाषा की इस रोक टोक पर थोड़ा कानूनी भाषा समझ लेते हैं. नियम के मुताबिक सांसद सदन में जो कुछ भी कहते हैं वह संसद के नियमों, सदस्यों की "अच्छी समझ" और अध्यक्ष के विवेक के अधीन है. और ये भी है कि सांसदों से अपेक्षा की जाती है कि सदन में "अपमानजनक या अभद्र या अशोभनीय या असंसदीय शब्दों" का उपयोग नहीं करेंगे.
लोकसभा में कामकाज की प्रक्रिया और आचार के नियम 380 के मुताबिक,
‘अगर अध्यक्ष को लगता है कि चर्चा के दौरान अपमानजनक या असंसदीय या अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वे सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने का आदेश दे सकते हैं.’
इसके अलावा रूल 381 के मुताबिक, सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे चिह्नित करने के बाद कार्यवाही में एक नोट इस तरह से डाला जाता है कि अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक इसे हटाया गया.
अब भले ही लोकसभा सचिवालय के बाबू लोगों ने विपक्ष के सपोर्ट सिस्टम वाले शब्दों को बिना 'Childishness' दिखाए, बिना किसी की 'दादागिरी' से डरे असंसदीय बना दिया हो, लेकिन राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष के पास इन शब्दों और भावों को सदन की कार्यवाही से हटाने का अंतिम अधिकार होगा. शब्दों को हटाने से पहले ये भी देखा जाएगा कि संदर्भ क्या है?
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