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विराट-अनुष्‍का! न्‍यू ईयर पर हम विकास नहीं, प्रगति चाहते हैं

विराट-अनुष्‍का की जोड़ी ने सबको दी न्‍यू ईयर की बधाई. हम भी नए साल पर देश के हित की बात कर रहे हैं.

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विराट कोहली-अनुष्‍का शर्मा की जोड़ी ने नए साल के मौके पर इंस्‍टाग्राम पर फोटो डालकर अपने चाहने वालों की अच्‍छी सेहत और समृद्ध‍ि की कामना की है. हम भी नए साल पर विरुष्‍का के लिए अच्‍छी कामना करते हैं. साथ ही अपने दिल की ख्‍वाहिश भी खोलकर बता दे रहे हैं.

एक बात साफ कर दें कि हम उन लोगों में नहीं, जो किसी की नई सत्ता देखते ही सीधे विकास खोजने लगते हैं. अनुभवी लोग बताते हैं कि विकास की जगह, प्रगति का होना बेहतर होता है. इसलिए अपनी, आपकी और देश की अच्‍छी सेहत, समृद्ध‍ि और दीर्घकालीन सुख-शांति के लिए प्रगति की कामना करते हैं.

विकास और प्रगति का फर्क

हैपी न्‍यू ईयर पर हमें ये तय करना होगा कि हमें विकास चाहिए या प्रगति. जानकार बताते हैं कि विकास हमेशा पॉजिटिव हो, ऐसा कोई जरूरी नहीं. विकास अधोमुखी भी हो सकता है. काम-धाम छोड़कर उधम ज्‍यादा करता है. बांध तोड़कर बाढ़ भी लाता है. शोर ज्‍यादा मचाता है. चुनाव के टाइम पर पोस्‍टरबॉय बना नजर आता है. कभी-कभी थोड़ी-सी कामयाबी से बौरा भी जाता है.

लेकिन प्रगति की बात अलग है. धीर-गंभीर हो या चुलबुली, धीमी हो या तेज, सबको भाती है. हमेशा आगे जाती है. देश का मान बढ़ाती है.

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'आप सेहतमंद हों' का मतलब क्‍या होता है?

विराट भाई, आपकी शुभकामना के बहाने जरा सेहत की बात कर लें. न्‍यू ईयर पर किसी की अच्‍छी सेहत की कामना करने का मतलब क्‍या होता है? क्‍या ये नहीं कि बीमार होकर आखिर जाएंगे कहां?

वजह भी साफ है. ज्‍यादातर अस्‍पताल आज भी आम लोगों के काम के नहीं. सरकारी वाले में भीड़ ज्‍यादा, बेड कम. घुटन भरा माहौल और ऑक्‍सीजन कम. प्राइवेट में सब चकाचक होता है. सबकुछ साफ होता है, सबसे ज्‍यादा तो पॉकेट. और वहां जाने लायक ही कितने होते हैं?

ऐसे में पता चलता है कि देश में विकास पैदा तो हुआ है, लेकिन लायक (Like) नहीं हो पाया है. तभी तो हम प्रगति चाह रहे हैं. इस कामना के साथ, सर्वे सन्‍तु निरामया: ...और कोई उपाय है क्‍या?
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सुख-समृद्धि‍ के बारे में क्‍या कहना?

अब बात आपके ट्वीट के अगले पार्ट की. सुख-समृद्ध की बात सोचकर सबसे पहले पॉकेट में ही हाथ जाता है. हममें से हर किसी की जेब में कुछ न कुछ होता जरूर है. कभी फरमाइशों की लिस्‍ट, कभी भारी-भरकम बिल. जिनकी जेब में क्रेडिट कार्ड होते हैं, वे भी कोई कम बिलबिलाते हैं क्‍या? ले-देकर फिर प्‍लास्‍ट‍िक मनी के विकास को कोसने को जी चाहता है. ध्‍यान आता है कि कहीं हम प्रगति के रास्‍ते से भटकने का मोल तो नहीं चुका रहे?

खैर, हम लोगों की एक बड़ी खूबी ये कि अगर किसी जेब से संतोषधन भी निकल आए, तो उम्‍मीद बंधती है कि नए साल में सब ठीक-ठाक हो जाएगा.

इस बोरिंग, उबाऊ-थकाऊ फिलॉसफी के लिए सो सॉरी. आपसे सीधे-सीधे कहना है, हैपी न्‍यू ईयर.

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