ADVERTISEMENTREMOVE AD

Chhath Puja Muhurat: कल छठ का आखिरी दिन, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

छठ पूजा का त्योहार सबसे ज्यादा उत्तर भारत में मनाया जाता है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

दिवाली के छह दिनों के बाद छठ मनाया जाता है. इस त्योहार में सूर्य देवता की उपासना की जाती है. यह त्योहार सबसे ज्यादा उत्तर भारत में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, छठ को सूर्य देवता की बहन माना जाता है. छठ पूजा करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है. इस साल छठ का त्योहार 2 नवंबर को पड़ा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होने वाले इस त्योहार को सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाए खाय होता है. इसमें व्रती का मन और तन दोनों ही शुद्ध और सात्विक होते हैं. इस दिन व्रती सात्विक भोजन करते हैं.

जानिए किस दिन क्या होता है

शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का विधान होता है. इस दिन व्रती पूरे दिन निराहार रहते हैं. शाम के वक्त गुड़ वाली खीर बनाकर छठ माता और सूर्य देवता की पूजा करते हैं. पष्ठी तिथि को पूरे दिन निर्जला रहकर शाम को अस्त होते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं.

सप्तमी तिथि के दिन सुबह उगते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर जल देते हैं. सूर्य भगवान ने अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना करते हैं. हम आपको बता रहे हैं कि ये चारों तिथि किस दिन पड़ रही हैं, जानिए शुभ मुहूर्त-

ADVERTISEMENTREMOVE AD

Puja Dates; छठ पूजा की जरूरी तिथियां

छठ पूजा नहाय-खाए- (31 अक्टूबर)

खरना का दिन- (1 नवंबर)

छठ पूजा संध्या अर्घ्य का दिन- (2 नवंबर)

उषा अर्घ्य का दिन- (3 नवंबर)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

Chhat Puja का शुभ मुहूर्त

पूजा का दिन- 2 नवंबर, शनिवार

पूजा के दिन सूर्योदय का शुभ मुहूर्त- 06:33

छठ पूजा के दिन सूर्यास्त का शुभ मुहूर्त- 17:35

षष्ठी तिथि आरंभ- 00:51 (2 नवंबर 2019)

षष्ठी तिथि समाप्त- 01:31 (3 नवंबर 2019)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार में सबसे ज्यादा प्रचलित

छठ पर्व बिहार का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. यह मुख्य रूप से बिहारवासियों का त्योहार है. इस पर्व के शुरुआत के पीछे की वजह अंगराज कर्ण से माना जाता है. अंगप्रदेश जो कि वर्तमान में भागलपुर (बिहार) में है. अंगराज कर्ण को लेकर एक कहानी है कि यह पांडवों की माता कुंती और सूर्य देवकी संतान हैं. कर्ण सूर्य को अपना अराध्य देव मानते थे. अपने राजा की सूर्य भक्ति से प्रभावित होकर अंगदेश के लोग सूर्यदेव की उपासना करने लगे. धीरे-धीरे यह पूरे बिहार में प्रचलित हो गया.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×