ऑस्ट्रेलिया की सांसद लैरिसा वॉटर्स पिछले हफ्ते अपनी तीन महीने की बच्ची को स्तनपान कराते हुए संसद को संबोधित करती नजर आईं. ये दूसरा मौका था जब लैरिसा वॉटर्स अपनी बेटी को संसद में स्तनपान कराती दिखीं. हालांकि अबकी बार ऐसा करके वो उतनी सुर्खियां नहीं बटोर पाईं, जितनी पहली बार मिली थीं. इस बार बेटी को स्तनपान कराने की तस्वीर को कुछ अखबारों में अंदर के कोने में जगह मिली और कइयों ने तो तस्वीर छापना तक गवांरा नहीं समझा. इससे पहले 9 मई को लैरिसा पहली बार ऑस्ट्रेलिया की संसद में ऐसा करती नजर आईं थी और तब उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी थीं.
हालांकि भारत में तब भी ये बहुत बड़ी खबर नहीं बन पाई, लेकिन विदेशी मीडिया में ऑस्ट्रेलियाई सांसद लैरिसा छाई हुई थीं. यहां तक की ऑस्ट्रेलिया की संसद के नेता विपक्ष ने भी संसद में बेटी को स्तनपान कराने पर लैरिसा की सराहना की थी. लैरिसा वॉटर्स का संसद के अंदर ऐसा कर पाना इसलिए भी संभव हो पाया क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने फरवरी 2016 में ही फैमली फ्रेंडली कानून पारित किया है, जो महिला सांसदों को ऐसी परिस्थिति में अपने बच्चों को संसद में ले जाने की इजाजत देता है. 2016 से पहले ऑस्ट्रेलिया की संसद में महिला सांसदों को बच्चों को साथ ले जाने की इजाजत नहीं थी. साल 2009 में सारा हैन्सन यंग अपने 2 साल के बच्चे को संसद लेकर आ गई थीं तो जबरन उनके बच्चे को बाहर निकाल दिया गया था.
इस घटना को सारा ने खुद के लिए बेहद अपमानजनक करार दिया था. लेकिन सात साल बाद संसद के अंदर बेटी को स्तनपान कराती लैरिसा की तस्वीर न सिर्फ उनके लिए बल्कि सारा हैन्सन के लिए भी जीत का पर्याय बन गई.
हालांकि संसद के अंदर बच्चे को स्तनपान कराने वाली लैरिसा पहली महिला सांसद नहीं है. अक्टूबर 2016 में आईसलैंड की महिला सांसद उन्नुर ब्रै कॉनरॉसदॉत्तिर अपने छह हफ्ते के बच्चे को लेकर संसद में गईं और वहां चल रही वोटिंग प्रक्रिया में शामिल हुईं और अपना भाषण भी दिया. वहां की संसद में ये नया जरूर था, लेकिन सभी पार्टियों ने एक सुर में इसका स्वागत किया. उन्नुर जब बच्चे को संसद में दूध पिला रही थी, तभी उनके बोलने की बारी आ गई. ये देख उनकी एक महिला साथी ने बच्चे को अपनी गोद में लेने की पेशकश भी की, लेकिन उन्नुर का कहना था कि ऐसा करने पर बच्चे के रोने से संसद के काम में ज्यादा खलल पड़ता, इसलिए उन्होंने अपने बच्चे को दूध पिलाते हुए ही अपना भाषण देने का फैसला लिया.
संसद में स्तनपान के उदाहरण चुनींदा ही हैं क्योंकि आज भी दुनिया में ज्यादातर देशों की संसद में इसकी इजाजत नहीं हैं. स्पेन में महिला सांसद कैरोलाइना बेंसकैंसा अपने पांच महीने के बेटे को लेकर जब संसद में पहुंचीं, तो विपक्षी पार्टी के सासंदों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट करार दिया. कुछ ने आपत्ति जताते हुए ये सलाह दी कि कैरोलाइना अपने बच्चे को चाइल्ड केयर रूम में छोड़कर भी आ सकती थीं. वहीं कुछ नेताओं को इस पर आपत्ति थी कि कैरोलाइना का अपने बच्चे को लेकर संसद में आने से ऐसा संदेश जाएगा कि बच्चे पालना केवल मां की जिम्मेदारी होती है और इससे एक गलत परंपरा की शुरुआत होगी.
भारत की संसद में भी इससे मिलती-जुलती एक तस्वीर दिखी थी. नवंबर 2016 में आरजेडी की राज्यसभा सांसद मीसा भारती संसद परिसर में अपने तीन महीने के बेटे के साथ संसद सत्र में हिस्सा लेने पहुचीं, लेकिन बच्चे को राज्यसभा के अंदर ले जाने की इजाजत नहीं होने की वजह से मीसा को अपने अपने बच्चे को पति शैलेश के साथ पार्टी के कमरे में ही छोड़ना पड़ा. ऐसे में सवाल ये कि क्या भविष्य में भारत में भी ऑस्ट्रेलिया या आइसलैंड जैसी तस्वीर देखने को मिलेगी? क्या कामकाजी महिला और उसके नवजात बच्चे को संसद या कामकाज की दूसरी जगहों पर भी उनका कुदरती अधिकार मिल पाएगा?
लैरिसा और उन्नुर जैसी तमाम महिला सांसदों की इस पहल के साथ ही एक मांग भी उठने लगी है और वो मांग ये है कि हर कामकाजी महिला को उसके काम करने की जगह पर अपने नवजात बच्चे को स्तनपान कराने की इजाजत दी जाए. ये सभी सांसद इस बात की मिसाल हैं कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में हों, कितने भी उंचे पद पर हो, वर्क-लाइफ बैलेंस कि समस्या हर किसी को आती है, लेकिन उससे हार मान कर घर बैठने की जरूरत नहीं. इन मुश्किलों को मात देने के लिए इसी तरह के नए कदम उठाने की जरूरत है और समाज देर-सवेर ही सही उसको स्वीकार करने पर विवश हो जाएगा. आज जब भारत में देश की महिला नीति पर 15 साल बाद दोबारा विचार चल रहा है तब महिला और बाल कल्याण मंत्रालय को इस बारे में सोचना चाहिए. खास बात ये कि भारत के महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की कमान भी एक महिला और मां के ही हाथ में है ऐसे में उनसे ये उम्मीद और बढ़ जाती है कि सरकार की नई महिला नीति में हर रोजगार और कामकाज की जगह पर महिलाओं के लिए अपने नवजात बच्चे को स्तनपान की इजाजत दिलाने की पूरी कोशिश होगी.
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