एक 23 साल की लड़की जिसका हौसला हिमालय से भी उंचा था, जिसकी कुर्बानी पर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और अमेरिका के लोगों के भी आंखों में आंसू आ गए. महज 23 साल की एक लड़की, जिसके लिए अपनी जिंदगी से ज्यादा दूसरों की जिंदगी कीमती थी. वो लड़की थी नीरजा भनोट, जिसने 33 साल पहले अपनी जान देकर कई लोगों की जान बचाई थी.
5 सितंबर 1986 वो तारीख थी, जिस दिन नीरजा ने अपनी जान देकर लोगों की जान बचाई थी. नीरजा की जिंदगी पर एक फिल्म भी आई थी, जिसमें सोनम कपूर ने नीरजा का किरदार निभाया था. नीरजा के जन्मदिन पर हम एक बार फिर आपको बताते है देश की उस बहादुर लड़की की कहानी.
7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में पैदा हुई नीरजा की स्कूली पढ़ाई मुंबई में हुई थी. नीरजा को मॉडलिंग का काफी शौक था. 80 के दशक में नीरजा का एक ऐड इतना मशहूर हुआ, वो घर-घर में पहचानी जाने लगीं. 1985 में नीरजा की शादी हुई और वो अपने पति के साथ दुबई में शिफ्ट हो गईं. लेकिन शादी के बाद नीरजा की जिंदगी बेहद मुश्किल हो गई और कुछ ही महीनों में नीरजा वापस अपने देश लौट आईं और मॉडलिंग छोड़कर एयरहोस्टेस बनने का फैसला किया.
33 साल पहले की वो कहानी
33 साल पहले 5 सितंबर 1986 को रात साढ़े 12 बजे मुंबई से एक विमान वाशिंगटन के लिए रवाना हुआ. उस फ्लाइट में एयरहोस्टेस थीं नीरजा भनोट. विमान कराची के जिन्ना इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर लैंड हुआ, जहां से अमेरिका जाने वाले यात्री उसमें सवार हुए. उन यात्रियों के साथ-साथ चार आतंकी भी विमान में घुस गए. आतंकियों के हाथ में ऑटोमेटिक गन और बम थे.
उस विमान में 360 मुसाफिर, 13 क्रू मेंबर और 3 पायलट थे. आतंकियों के निशाने पर थे अमेरिका के नागरिक. आतंकियों को देखकर सभी यात्रियों के दिल की धड़कनें बढ़ गईं, ऐसे मौके पर नीरजा ने खुद को संभाला और ऐसे गंभीर हालात से निपटने के लिए खुद को तैयार किया. नीरजा ने अपनी सूझबूझ दिखाते हुए तुरंत विमान के पायलट को इसकी खबर दी. फ्लाइट के तीनों पायलट तुरंत इमरजेंसी गेट से उतर गए.
पायलट नहीं होने की वजह से प्लेन उड़ान नहीं भर सकता था, गुस्से में आतंकियों ने सुरक्षा एंजेसियों के जरिए पाकिस्तान सरकार से बात शुरू की. पाकिस्तान सरकार से कोई बात नहीं बन पा रही थी और धीरे-धीरे वक्त गुजर रहा था. गुजरते वक्त के साथ-साथ लोगों का धैर्य भी जवाब दे रहा था, ऐसे मौके पर नीरजा ने कमान संभाली और लोगों का हौसला बढ़ाती रही.
41 अमेरिकियों की नीरजा ने ऐसे बचाई जान
आतंकियों के निशाने पर थे अमेरिका के यात्री, इसलिए उन्होंने नीरजा को सभी यात्रियों के पासपोर्ट इक्ट्ठा करने को कहा. आतंकियों का इरादा सभी अमेरिकी नागरिकों को मौत के घाट उतारना था, लेकिन नीरजा ने अपनी समझदारी से आतंकियों को चकमा देते हुए 41 अमेरिकी नागरिकों का पासपोर्ट किसी तरह छिपा दिया.
आतंकियों को जब किसी अमेरिकन का पासपोर्ट नहीं मिला तो वो गुस्से से बौखला गए. आतंकियों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. विमान को हाईजैक हुए करीब 17 घंटे बीत गए थे, विमान का इंधन खत्म होने लगा था, एसी और बिजली ने काम करना बंद कर दिया. आतंकियों को लगा कि पाकिस्तान सरकार कमांडो कार्रवाई कर रही है. गुस्से में आतंकियों ने हैंड ग्रेनेड फेंकना शुरू कर दिया.
ऐसे वक्त में आतंकियों के गोली और बम की परवाह ना करते हुए नीरजा ने किसी तरह प्लेन का इमरजेंसी गेट खोल दिया. नीरजा ने पहले अपनी जान बचाने की वजाय पहले क्रू मेंबर को और उसके बाद यात्रियों को बाहर निकालना शुरू कर दिया.
यात्रियों को बाहर निकालने के बाद नीरजा की नजर तीन बच्चों पर पड़ी, जो विमान में अकेले बैठे थे. आतंकी अंधाधुन गोलियां बरसा रहे थे, उसी बीच किसी तरह नीरजा तीनों बच्चों को अपने सीने से लगाकर वहां से निकलने लगी, तो सामने एक आतंकी गोलियां बरसाता हुए नजर आया. उसके निशाने पर था एक बच्चा, नीरजा तुरंत उस बच्चे को बचाने के लिए उसके सामने आ गई और आतंकी की गोलियों ने उसके पूरे जिस्म को छलनी कर दिया. नीरजा ने दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान दे दी.
नीरजा की बहादुरी पर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और अमेरिका ने भी सम्मान दिया. भारत सरकार ने नीरजा को अशोक चक्र से सम्मानित किया. नीरजा की वीरता को पाकिस्तान की सरकार ने भी सलाम किया और तमगा-ए-पाकिस्तान के खिताब से नवाजा. वहीं अमेरिका ने जस्टिस ऑफ क्राइम अवॉर्ड से नवाजा. भारत सरकार ने 2004 में नीरजा के नाम से डाक टिकट भी जारी किया.
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