अपने आध्यात्मिक विचारों से दुनियाभर में भारत का सिर ऊंचा करने वाले स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व को किसी एक सांचे में फिट करना मुमकिन नहीं है. वे कर्मयोगी थे, सत्य के साधक थे और पूरी दुनिया के लिए आध्यात्मिक गुरु थे. उनके जन्मदिन के मौके पर हम उनके चुनिंदा विचारों को याद कर रहे हैं, जो कोरे उपदेश नहीं, बल्कि आज के दौर में भी कामयाबी के टिप्स सरीखे हैं.
विवेकानंद ने अपने छोटे-से जीवनकाल (12 जनवरी, 1863 - 4 जुलाई, 1902) में देश-दुनिया को वैचारिक रूप से इतना समृद्ध कर दिया कि इसके हर पहलू को कम शब्दों में समेटना मुश्किल है. उन्होंने समय-समय पर जो बातें कहीं, उन सबका सार यही है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है और हर किसी का उद्धार उसके अपने ही प्रयासों से संभव है.
विवेकानंद का मत है कि देश को शक्तिशाली बनाने के लिए हर किसी को अपने अंदर की शक्ति पर विचार करना होगा और उसे जगाना होगा. उन्होंने शक्ति को ही पुण्य बताया और हर तरह की दुर्बलता को भयंकर पाप. उन्होंने भौतिक तरक्की की तुलना में आध्यात्मिक उन्नति को ज्यादा महत्व दिया.
अब बात व्यक्तित्व के निर्माण या विकास की. विवेकानंद के मुताबिक, हर किसी के व्यक्तित्व में बाहरी पहनावे-ओढ़ावे और चाल-ढाल का योगदान महज एक-तिहाई ही होता है, बाकी दो-तिहाई का निर्माण हमारे विचारों से होता है. हम जिसका चिंतन करते हैं, हम वही बन जाते हैं. आज हम जो हैं, अपने पहले के विचारों की वजह से हैं. हम आगे वही होंगे, जैसा हम आज चिंतन कर रहे हैं. अगर हमें श्रेष्ठ बनना है, तो पहले अपने विचारों को श्रेष्ठ बनाना होगा.
आगे विवेकानंद के श्रेष्ठ विचार दिए गए हैं. सफल जीवन के लिए हमारा क्या नजरिया होना चाहिए, ये हम इन बातों से सीख सकते हैं.
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