ADVERTISEMENTREMOVE AD

उस्ताद विलायत खान: आफताब-ए-सितार, बेटे शुजात खान की यादों में 

सितार के जादूगर उस्ताद विलायत खान के बारे में उनके बेटे शुजात खान...दिल से

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भारतीय शास्त्रीय संगीत के आसमान पर अगर कभी सिर्फ चंद सितारे ही टांकने की इजाजत हो, तो एक नाम उसमें सदा जगह बनाने में कामयाब रहेगा. उस्ताद विलायत खान साहब. सितार पर जिनकी उंगलियां जब थिरकती थीं, तो समय ठहर जाता था.

28 अगस्त, 1928 को बांग्लादेश में जन्म हुआ. इमदादखानी घराने में पैदाइश ने एक तरह से आने वाले कल को तय कर दिया. पिता इनायत खां, खुद उस्ताद थे. उस जमाने का एक बड़ा नाम. उस्ताद विलायत खान साहब के बेटे शुजात खां भी सितार की दुनिया का एक जाना माना नाम हैं. उन्होंने अपने वालिद और उस्ताद से जुड़ी कई दिलचस्प यादों को क्विंट हिंदी से साझा किया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(बेहतर अनुभव के लिए पॉडकास्ट जरूर सुनें.)

एक इंटरव्यू में उस्ताद विलायत खान साहब ने कहा था कि 1932 में जब उनके पिता इनायत खान लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में परफॉर्म कर रहे थे, उन्हें नींद आ गई और वो सो गए. उम्र यही कोई 4-5 बरस रही होगी. जब जागे तो हर तरफ पीला रंग दिखाई दे रहा था. पिता ने उन्हें कहा कि ये राग बसंत का रंग है. ये उनका बचपन था. शुजात खान को भी अपने वो दिन आज खूब याद आते हैं जो उन्होंने पिता के साथ बिताए.

मेरे गुरु भी थे. मेरे पिता भी थे. खट्टी-मीठी, लड़ाई झगड़ा, प्यार-इज्जत. जैसे बाप और बेटे का रिश्ता होता है. हर तरह से मजे लिए. मुझे थोड़ा वक्त लगा ये समझने में कि उनकी महानता क्या है. मैं जब कुछ बजाने की कोशिश करता था और फिर मैं देखता था कि जिस चीज का रियाज मैं डेढ़ महीने से कर रहा था, उसे वो कितनी खूबसूरती से बजा रहे हैं. मैं शुक्र करता हूं ऊपर वाले का कि बेटे के तौर पर, मुझे उनकी बढ़ाई करने की जरूरत नहीं है. दुनिया ने उनको ऐसी जगह दी है. 
शुजात खान, पिता विलायत खान साहब को याद करते हुए

एक बहुत दिलचस्प वाकया है. शुजात जब पैदा होने वाले थे तब का. विलायत खान साहब अपनी विरासत से, सितार से किस कदर जुड़े थे और कितने गहरे तक, ये वाकया उसकी एक झलक देने के लिए काफी है.

ये बात बिल्कुल सच है. जब मैं पैदा होने वाला था, अब्बा के दिल में ये कभी आया ही नहीं कि लड़का न हो. उनको लड़कियों से कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन, वो इस विरासत और परंपरा को आगे ले जाना चाहते थे. उनके दिल में था कि लड़का हो, सितार बजाए और फिर विरासत को आगे बढा़ए. इस बारे में वो खूब बात करते थे. इतनी बात कि जब मैं पैदा हुआ तो कलकत्ता के एक अखबार के फ्रंट पेज पर छोटी सी खबर आ गई कि विलायत खान साहब को बेटा हुआ है. 
शुजात खान, पिता विलायत खान साहब को याद करते हुए
ADVERTISEMENTREMOVE AD

महज 13 साल की उम्र में विलायत खान के वालिद इनायत खां साहब नहीं रहे. उन्होंने सितार में आगे की शिक्षा अपने मामा उस्ताद वाहिद खान से ली. इस मायने में देखा जाए तो उन्होंने अपनी राह खुद चुनी. अपना आगे का रास्ता खुद बनाया. कई पीढ़ियों से सितार, उनके घराने की पहचान रहा है. फिर चाहे वो साहेबदाद खान हों, इमदाद खान, इनायत खान, विलायत खान खुद या अब शुजात खान. चार पीढ़ियां तो ऐसी हैं जिनके रिकॉर्ड तक मौजूद है.

किसी को पूछिएगा तो संगीत घराने के बारे में कोई कहेगा कि हमारे यहां 7 पीढ़ी की परंपरा है, कोई 12 कहेगा तो कोई 36. लेकिन सच्चाई ये है कि सितार वादन में हिंदुस्तान में कोई ऐसा खानदान नहीं जिसके चार पीढ़ी के कमर्शियल रिकॉर्डिंग मौजूद हों. तो लोगों को कुछ भी बोलने या दावा करने से पहले सोचना चाहिए.  
शुजात खान, पिता विलायत खान साहब को याद करते हुए
ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक ऐसा आर्टिस्ट जो इतनी पीढ़ियों की विरासत को न सिर्फ संभाल कर चल रहा हो बल्कि उसमें बहुत कुछ जोड़ भी रहा हो नाराज हो ही जाता है जब, उसका देश उसकी काबिलियत को नजरअंदाज कर दे. विलायत खान साहब और अवॉर्ड्स को लेकर उनकी नाराजगी के बारे में भी काफी कुछ लिखा गया. अवॉर्ड्स अक्सर देर से पहुंचे और यही वजह रही कि उन्होंने ज्यादातर सम्मानों को स्वीकार ही नहीं किया.

उनका सवाल था कि कौन वो मंत्री, सांसद है जो उन्हें चुन रहा है? विलायत खां साहब को अवॉर्ड मिलना चाहिए या नहीं, इस बात का फैसला कौन करता है? ये सवाल उनके दिमाग में बहुत साफ था. अवॉर्ड का क्राइटेरिया क्या है? उनका मानना था कि अगर कोई अवॉर्ड मेरे शागिर्द या जूनियर को बीते साल दिया जा चुका है, वो मुझे अब क्यों दिया जा रहा है? इस तरह चुनने का ये तरीका गलत है, ऐसा उनका मानना था. वो सोचते थे कि उन्हें सम्मान देने वाली सरकार नहीं वो श्रोता हैं, हजारों की वो ऑडियंस है जो उन्हें सुनने आती है.
शुजात खान, पिता विलायत खान साहब को याद करते हुए
ADVERTISEMENTREMOVE AD

हालांकि, उस्ताद विलायत खान साहब ने बांग्लादेश के आफताब-ए-सितार सम्मान को जरूर स्वीकार किया. विवाद सिर्फ अवॉर्ड्स से जुड़ा नहीं है, कंट्रोवर्सी तो पंडित रविशंकर से उनके रिश्तों को लेकर भी खूब हुई. दोनों एक मुल्क में, एक ही इंस्ट्रूमेंट यानी सितार की दुनिया के दो उस्ताद थे. ऐसे में कई बार दोनों में तनातनी की खबरें भी आईं. हालांकि, शुजात ने क्विंट हिंदी से बात करते हुए इस पहलू पर भी खुलकर बात की और कई चीजों को साफ किया.

अगर दो आर्टिस्ट गाना बजाना कर रहे हैं तो कॉम्पिटीशन तो है ही, इसमें कोई परेशानी की बात नहीं. आसपास के लोग इसे नाटकीय बनाते थे. अगर विलायत खां कहते कि रविशंकरजी ने कल बजाया तो ये बात इस तरह भी कई बार फैल जाती कि विलायत खां साहब ने कहा कि कल रविशंकरजी ने क्या बेकार बजाया. वो दोनों ऐसे दोस्त नहीं थे कि रोज-रोज का उठना बैठना हो लेकिन बतौर संगीतकार दोनों एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे. नाइत्तेफाकी और अफवाहें लोगों में ज्यादा थीं, विलायत खां और रविशंकर में नहीं. वो बड़े लोग थे, उनके पास ऐसी छोटी चीजों के लिए वक्त नहीं था.
शुजात खान, पिता विलायत खान साहब को याद करते हुए
ADVERTISEMENTREMOVE AD

विलायत खान साहब की शख्सियत सितार से पूरी तरह जुड़ी हुई है. उन्होंने सितार के गायकी अंग को लाखों-करोड़ों श्रोताओं तक पहुंचाया. लेकिन, उनका एक पहलू ऐसा भी है जिसके बारे में लोग कम जानते हैं. विलायत खान साहब को कई चीजों का शौक रहा और उन्होंने इसे जिया भी.

विलायत खां शौकीन तबियत के थे. बिलियर्ड्स, स्नूकर्स का उन्हें शौक था. गाड़ियों का, शॉल का, कट ग्लास का, फानूस का जैसा कलेक्शन उनके पास था, बहुत कम लोगों के पास रहा. वेलवेट का कुर्ता, सोने की चेन. अच्छी चीजों का मुझे भी शौक है लेकिन मैं काला या क्रीम कलर का कुर्ता ही पहनता हूं.
शुजात खान, पिता विलायत खान साहब को याद करते हुए
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शुजात खान आज अपनी उसी महान विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन क्या शुजात ने अपने पिता का ही रास्ता चुना या अपनी राह खुद बनाई. इस सवाल का जवाब खासा दिलचस्प है.

सितार की बात करें तो सब उनकी देन है. उन्होंने मुझे सिखाया, बताया. मैंने अपनी राह अलग जरूर चुनी है लेकिन उनकी राह पूरी मेरे अंदर बसी है. फिर भी मैं उनकी कार्बन कॉपी बनना नहीं चाहता. मुझे सुनकर आप शायद तुरंत बता देंगे कि मैं विलायत खां का ही शागिर्द हूं फिर भी मेरा म्यूजिकल एक्सप्रेशन आपको थोड़ा अलग मिलेगा. 
शुजात खान, पिता विलायत खान साहब को याद करते हुए
ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस दौर में ये चर्चा काफी होती है कि क्या नई पीढ़ी भारतीय शास्त्रीय संगीत से दूर होती जा रही है? क्या विलायत खान जैसे उस्तादों को लोग भूल रहे हैं? विलायत खान साहब के बेटे शुजात को तस्वीर इतनी उदास भी नजर नहीं आती.

नई पीढ़ी बहुत अच्छे से आगे आ रही है. फिर चाहे वो सितार हो, बांसुरी हो, सरोद हो, सारंगी हो. नई पीढ़ी को पता है कि अच्छा आर्टिस्ट बनने के लिए क्या करना है. मैं दिल्ली में बजाता हूं, 5 हजार लोग सुनने आते हैं, उसमें से ढाई हजार लोग 25 से कम उम्र के होते हैं. उस्ताद विलायत खां साहब जहां भी होंगे, खुश होंगे ये देखकर कि उन्होंने गायकी अंग की जो राह दिखाई, 90 फीसदी सितार वादक उसी राह पर चल रहे हैं. 
शुजात खान, पिता विलायत खान साहब को याद करते हुए
ADVERTISEMENTREMOVE AD
एक सितार वादक के तौर पर उस्ताद विलायत खान ने करीब आधी सदी को अपने सुरों का तोहफा दिया. 13 मार्च 2004 को खान साहब ने आखिरी सांस ली और इसी के साथ शास्त्रीय संगीत का एक जगमगाता सितारा जमीन से उठकर आसमान का हिस्सा बन गया. लेकिन उसके नूर से भारतीय संगीत हमेशा रोशन रहेगा.

(क्‍विंट हिंदी पर ये आर्टिकल पहली बार 28 अगस्‍त, 2017 को छपा था)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×