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वेलेंटाइन-डे स्पेशल: आपको जाननी चाहिए अपने गुलाब की दास्तान...

हर एक गुलाब के फूल के पीछे एक कहानी छिपी है. उस कहानी को देखें इस फोटो फीचर के जरिए...

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वेलेंटाइन-डे समेत पूरे वेलेंटाइन वीक में हर दिन किसी न किसी गिफ्ट के साथ एक गुलाब का फूल देना अब एक चलन हो गया है.

चाहे वो ट्रैफिक सिग्नल पर बिक रहे गुलदस्ते हों या फिर नुक्कड़ पर खड़े किसी फूल वेंडर के फूल. लोग अमूमन अपने वेलेंटाइन के लिए रोड साइड पर बिकने वाले फूलों को खरीदते हैं. जिन्हें वेलेंटाइन-डे के दिन घर से निकलने की परमिशन नहीं मिलती, वो लोग अपनी सहूलियत को देखते हुए ऑनलाइन ऑर्डर का ऑप्शन चुनते हैं.

कुल मिलाकर विंटर सीजन में जैसे गुलाब अपने पूरे शबाब पर होता है, वैसे ही खासतौर पर वेलेंटाइन वीक में इस फूल का बाजार अपनी तरह सुर्ख हो उठता है. लेकिन हर एक गुलाब के फूल के पीछे एक कहानी छिपी है. उस कहानी को देखें इस फोटो फीचर के जरिए...

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‘बंगाली गुलाब’ है डिमांड में

सुबह के 3:30 बजे हैं. गाजीपुर फूल मंडी में ट्रकों की लंबी लाइन लगी है और उसके पास खड़े मजदूर इंतजार कर रहे हैं पश्चिम बंगाल से आने वाले फूलों के ट्रक का. इन मजदूरों की मानें, तो बंगाली गुलाब इस बार मार्केट में  बेंगलुरु से आने वाले गुलाब को कड़ी टक्कर दे रहा है.

सबसे मजबूत गुलाब बेंगलुरु का

मंडी में बतौर आढ़तिया बीते 10 साल से गुलाब की खरीद-फरोख्त कर रहे 30 साल के आनंद सिंह बताते हैं कि पूरे भारत भर की मंडियों में सबसे बेहतर और सबसे मजबूत गुलाब बेंगलुरु का माना जाता है.

इसके अलावा पुणे, नासिक और मध्य प्रदेश भी गुलाब के बड़े सप्लायर हैं. लेकिन बीते कुछ सालों में पश्चिम बंगाल ने गेंदे की पैदावार के साथ-साथ गुलाब की भी अच्छी पैदावार की है और मार्केट में अपनी जगह बनाई है.

हाईब्रिड गुलाबों से मोहब्बत का इजहार

नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर गुलाब की सप्लाई कर रहे बेंगलुरु जैसे लोकल गुलाब उत्पादकों का यहां जिक्र करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यहां के किसानों ने बड़े साइज वाले हाइब्रिड गुलाबों को डेवलप करने में काफी समय लगाया है. फिर बिना खुशबू वाली कट फ्लावर कैटेगरी के इस गुलाब की अच्छी पैकिंग के नए स्टैंडर्ड खड़े किए हैं. सबसे बड़ी बात यह कि गुलाब की इसी वैरायटी को ले-देकर बड़े-बड़े शहरों में मोहब्बत का इजहार किया जाता है.

एक व्यवस्था बन चुकी है

सुबह के साढ़े चार बज चुके हैं और हर सेंटर पर फूलों की छटनी का काम बहुत तेजी से चल रहा है. बंडलों को कैटेगरी में बांटा जा रहा है. एक आढ़तिये के लिए काम करने वाला 21 साल का राहुल बताता है कि रोज सुबह होने वाला यह काम काफी व्यवस्थित रूप ले चुका है. मसलन, गुलाब की पैकिंग की बात करें, तो 20 गुलाब प्रति बंडल एक आदर्श पैकिंग साइज है. यह देश के सभी मंडियों के लिए एक सेट स्टैंडर्ड की तरह है.

वेलेंटाइन डे पर आएगा रेट में उछाल

इन दिनों मंडी में गुलाब का एक बंडल औसतन 110 रुपए का मिल रहा है, जो दस दिन पहले तक 80 रुपए का था. लेकिन कट फ्लावर में डील करने वाले आढ़तिया महेश पांडे बताते हैं कि वेलेंटाइन डे से एक दिन पहले यह कीमत 150 रुपए प्रति बंडल तक चली जाएगी. थोक मार्केट से लेकर रीटेल मार्केट तक गुलाब की कीमतें कैसे तय होती हैं, इसके लिए इस चार्ट पर नजर डालें.

फूलों की जिंदादिली की खातिर

बहरहाल, अब वक्त हुआ है साढ़े पांच. जैसे-जैसे सूरज की दस्तक का वक्त करीब आएगा, मंडी में हलचल बढ़ेगी और साथ ही बढ़ेगा फूलों को फ्रेश रखने का चैलेंज भी. मंडी में जमे हुए ब्रोकर बताते हैं कि गुलाब को लाने से ज्यादा मुश्किल है उसे मेनटेन रखना. ट्रक से उतारे जाने के बाद हर बंडल को पानी की बकेट में रख दिया जाता है. कुछ माल कोल्ड रूम में चला जाता है. टूटे और कटे हुए फूल लूज बेचे जाने के लिए बर्फ में रख दिए जाते हैं.

चाय का बंदोबस्त भी साथ में

मंडी में एक तरह फूलों को फ्रेश रखने की कोशिश चल रही है. वहीं देर रात 2 बजे से बाजार सजा रहे ब्रोकरों, मजदूरी और कुछ ग्राहकों को फ्रेश रखने के लिए चाय का बंदोबस्त भी चल रहा है.

कमजोर रहा शादियों का सीजन

वैसे मंडी में ज्यादातर लोग इस बात को लेकर चिंतित दिखे कि इस बार शादियों के खराब सीजन की वजह से उनका काफी माल वेस्ट हो गया या अभी भी बचा पड़ा है. हर साल शादी के सीजन में जहां 1000-2000 बंडल एक आढ़तिया बेच देता था, वहीं इस बार महज 250 बंडल रोज की सेल हो पाई.

फूलों के शौकीन ढाई परसेंट ही हैं!

फूलों के शौक को लेकर हुए एक लोकल सर्वे में पाया गया कि मात्र 2.5 परसेंट लोग ही अपने शौक के लिए फूल खरीदते हैं. बाकी लोग औपचारिकताओं के लिए फूलों को इस्तेमाल करते हैं. गाजीपुर मंडी में बैठे करीब 250 आढ़तिये इस बात को सच करार देते हैं.

दिल्ली के गुलाब की लेट एंट्री

दिन की पहली किरण के आगाज के साथ दिल्ली, एनसीआर और यूपी के किसान भी अपने गुलाब पोटलियों में बांधकर मंडी पहुंचने लगते हैं. मुख्यतः बेंगलुरु और पश्चिम बंगाल से आए फूलों को ट्रकों से उतारने के बाद लेबर वाले पंजाब, हरियाणा और यूपी समेत नार्थ इण्डिया की तमाम छोटी-बड़ी मंडियों का माल रवाना करते हैं.

गुलाब का रिप्लेसमेंट कोई नहीं

कुछ साल पहले जब भारतीय बाज़ारों में ऑर्किड और कारनेशन जैसे विदेशी फूलों की एंट्री हुई, तो दुकानदारों को लगा था कि ये विदेशी फूल गुलाब को पटक देंगे. लेकिन आज तक कोई भी फूल गुलाब की जगह नहीं ले पाया. इसकी पुष्टि मंडी में बैठा हर ब्रोकर करता है.

देसी गुलाब की दिल्ली

इस बीच दिल्ली के इर्द-गिर्द से आए गुलाब की पोटलियां खुलती हैं और मानो मंडी की हर गली में जैसे गुलाबी रंग छिंटक जाता है. दिल्ली समेत पूरे नार्थ इण्डिया में ज्यादातर जगह देसी गुलाब बोया जाता है. इसकी मजबूती कम होती है और सुगंध ज्यादा, इसलिए यहां की गुलाब की पत्तियां सबसे ज्यादा चलन में हैं.

गुलाब का साथी मार्केट

यंगस्टर्स से गुलाब विक्रेताओं को सबसे ज्यादा उम्मीदें रहती हैं. यमुनापार इलाके में फूलों का एक ठिया चलाने वाले 46 साल के रामाधार कहते है कि नए दौर के बच्चों को हर चीज प्रेजेंटेबल चाहिए. उन्हें चाहिए कि माल से ज्यादा खूबसूरत उसकी पैकिंग हो.

अब जब वही सबसे बड़े फूल ग्राहक हैं, तो उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए सभी दुकानदारों में अच्छी पैकिंग को लेकर होड़ रहती ही है.

मंडी में एक समानांतर छोटा बाजार भी चल रहा है. बाजार उन गरीब परिवारों और बच्चों का, जो सुबह अंधेरे उठकर काम पर लग चुके हैं और कुछ घरों और मंदिरों को फूल-मालाओं की सप्लाई करने की तैयारी कर रहे हैं.

जा रहा है पहली मोहब्बत का सामान

दिन निकल चुका है और वक्त हुआ है साढ़े सात. हल्की धुंध के बीच अब नंबर है उन छोटे दुकानदारों का, जो गली-नुक्कड़ पर अपनी फूलों की फेरी लगाते हैं. ये दुकानदार हाई स्कूल में पढ़ने वालों और कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए गुलाब खरीदने का सबसे फेवरेट पॉइंट होते हैं.

बच्चों का वेस्ट मैनेजमेंट

बीते घंटों में कई लेयर में माल बेचा जा चुका है. इन सब के बाद मंडी में अब सिर्फ दोयम दर्जे के फूल बचे हैं. ज्यादातर वो बासी गुलाब हैं, जिनका कोई दावेदार नहीं. ऐसे में आढ़तिया 20 गुलाब का एक बंडल महज 10-15 रुपए में बेच देता है. यहां एक गुलाब की कीमत गिरकर एक रुपए से भी कम रह जाती है. मंडी में मजदूरी कर रहे परिवारों के बच्चे और ट्रैफिक सिग्नलों पर भीख मांगने वाले बच्चे इन बंडलों को खरीदकर ले जाते हैं.

कहानी गुलाबी मेहनत की

ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचने वाले नन्हे हाथों की कहानी भी बहुत मेहनत से भरी हुई है. ये बच्चे बासी गुलाब के बंडलों पर काफी मेहनत करते हैं. पहले इन बंडलों को चीनी घुले पानी में खड़ा कर दिया जाता है. फिर इनसे मुरझाई हुई कलियां हटाकर, इनके नन्हे बुके बना लिए जाते हैं.

गुलाब को फ्रेश रखने के लिए हर आधे घंटे में पानी का स्प्रे किया जाता है. और मजदूरी निकालने के लिए 20 गुलाब के एक बंडल में से निकले दो या तीन बुके, ट्रैफिक सिग्नल पर 25-50 रुपए के रेट पर बेच दिए जाते हैं.

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