पश्चिम बंगाल में 2019 चुनाव का प्रचार झड़प में बदल गया. बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने पर 'यूनिवर्सिटी और कॉलेज में असुरक्षित माहौल के खिलाफ कोलकाता के छात्रों और शिक्षकों ने सामूहिक विरोध का फैसला किया. बीजेपी का कहना है कि मूर्ति TMC के लोगों ने तोड़ी है तो वहीं TMC, बीजेपी पर मूर्ति तोड़ने का आरोप लगा रही है.
छात्रों का कहना है कि ये विरोध प्रदर्शन गैर राजनीतिक बैनर तले हुआ है. छात्रों का संदेश साफ था कि उनकी संस्थाओं और आदर्शों के साथ तोड़-फोड़ न की जाए. कलकत्ता यूनिवर्सिटी की छात्र संपूर्णा बनर्जी का कहना है कि - हम असुरक्षित हैं और हम पर हमले हो रहे हैं, और छात्र इसे अब मंजूर नहीं करेंगे. हमारा विरोध किसी राजनीतिक बैनर तले नहीं था और यह पूरी तरह से गैर राजनीतिक था. ये सिर्फ एक संदेश देने के लिए था कि हम यह और बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम खामोश होकर सहते नहीं रहेंगे, क्योंकि क्रूरता और अत्याचार हम पर किए जा रहे थे .
टेक्नो इंडिया यूनिवर्सिटी की छात्रा प्रज्ञा पॉल कहती हैं कि छात्र इसलिए इकट्ठा हुए क्योंकि उन्हें शिक्षा के लिए सुरक्षित माहौल पाने का अधिकार है.
हम इस तरह की खुलेआम गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं करेंगे. अगर आप हमारे घर में घुसकर हमें धमकाएंगे तो हम इसका जवाब देंगेप्रज्ञा पॉल
विद्यासागर कॉलेज में लगी समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति की तोड़फोड़ और हिंसा के खिलाफ सैकड़ों की तादाद में छात्र और कलाकारों के साथ शिक्षक और पूर्व छात्र कोलकाता के कॉलेज स्क्वायर पर इकट्ठा हुए और प्रोटेस्ट मार्च निकाला. कलकत्ता यूनिवर्सिटी की छात्र अनन्या चक्रवर्ती का कहना है कि छात्रों और कई अन्य लोगों की तरफ से ये एक गैर राजनीतिक विरोध था.
हम शैक्षणिक संस्थानों में राजनीतिक दलों के बढ़ते हस्तक्षेप के खिलाफ इकट्ठा हुए थे. साथ ही 14 मई को विद्यासागर कॉलेज में हुई घटना के खिलाफ भी जहां जाने-माने समाज सुधारक की मूर्ति तोड़ी गई. समाज सुधारकों की मूर्तियों पर इस तरह की बर्बरता चिंता की वजह है. हम वहां इसका विरोध कर रहे थेअनन्या चक्रवर्ती
मौलाना आजाद कॉलेज के छात्र रोहन दत्ता ने कहा कि- सड़क पर उतरने के लिए उन्हें जिस बात ने प्रेरित किया उसे एक शब्द में सबसे अच्छी तरह परिभाषित किया जा सकता है और वह शब्द है- घृणा, सरासर घृणा. उन्होंने आगे कहा कि- '14 मई को जो कुछ हुआ उससे हमारी भावनाओं को झटका लगा. हम वहां अपनी आवाज को लोगों तक पहुंचाने के लिए खड़े थे कि किसी भी कीमत पर उन बुरी ताकतों के खिलाफ हम सब एकजुट हैं. जो हमारे समाज सुधारकों की मूर्तियों को तोड़ रहे हैं. चाहे वो पेरियार हों,अंबेडकर हों, लेनिन हों या फिर विद्यासागर हों, हम इस मानसिकता के साथ नहीं हैं और कभी इसके साथ नहीं हो सकते. इसी मुद्दे पर हमारी रैली हुई थी और इसी वजह से हम विरोध में खड़े हैं
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