कोरोना महामारी ने काम छीन लिया और सरकार ने बेघर कर दिया. ये कहानी है देश की राजधानी दिल्ली के बाटला हाउस में 200 झुग्गियों में रहने वाले करीब एक हजार लोगों कीं. 24 सितंबर को अचानक हुकूमत आई और उनके आशियानों पर कहर बनकर टूट पड़ी. सालों से यहां रह रहीं सुनीता मंडल ने क्विंट को बताया कि उन्हें अपना सामान निकालने या कोई और आसरा ढूंढने के लिए दो दिन का वक्त तक नहीं दिया गया. यहां लोगों ने बताया कि उनके पास हर तरह का पहचान पत्र मौजूद हैं. वोटर आईकार्ड, पैनकार्ड आधार सबकुछ. सालों से ये लोग वोट देते आए हैं.
DDA के अभियान में छिना आशियाना
डीडीए ने क्विंट को कन्फर्म किया है ये झुग्गियां उसी के हुक्म पर तोड़ी गई हैं. वजह बताई गई है कि इस जमीन पर डीडीए का मालिकाना हक है. लेकिन मजलूमों के पैरों तले जमीन खिसकाकर उस जमीन पर अपना हक बरकरार करने का ये कौन सा मौका है. सुनीता कहती हैं - ''हम आसपास के घरों में काम कर गुजारा करती थीं, कोरोना के कारण लोगों ने घरों में काम कराना बंद कर दिया और अब घर भी छिन गया. अब पानी खरीदने के पैसे भी नहीं हैं.''
ये आलम तब है जब हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि झुग्गियों क दिल्ली सरकार से बातचीत के बाद ही हटाया जाएगा. बता दें कि डीडीए केंद्र सरकार के तहत ही आती है.
(सभी 'माई रिपोर्ट' ब्रांडेड स्टोरिज सिटिजन रिपोर्टर द्वारा की जाती है जिसे क्विंट प्रस्तुत करता है. हालांकि, क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है. रिपोर्ट और ऊपर व्यक्त विचार सिटिजन रिपोर्टर के निजी विचार हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)