“हम पूरे दिन काम कर रहे हैं. हम आमतौर पर खा भी नहीं पाते हैं, अगर कोई हमें देता है, तो हम खा लेते हैं. ये बहुत जोखिम भरा काम है. कभी दोपहर 2 बजे, कभी 3 बजे या शाम 4 बजे - जब भी हमें वक़्त मिलता है तब ही हम खा पाते हैं.”श्मशान कर्मचारी
दिल्ली के गाजीपुर में मुझे मिले अधिकांश ज्यादा काम करने वाले और कम वेतन पाने वाले श्मशान कर्मचारियों के लिए ये अब एक दैनिक दिनचर्या है. अप्रैल से चौबीसों घंटे लगातार काम करते हुए, इन कर्मचारियो को लगता है कि सरकार उनपर ध्यान नहीं देती है.
कोविड-19 मौतों और सामूहिक दाह संस्कार में बढ़ोतरी के साथ, मैंने गाजीपुर के श्मशान घाट का दौरा करने और इन फ्रंटलाइन वर्कर्स की दुर्दशा को सामने लाने का फैसला किया.
इस श्मशान घाट में करीब 22 मजदूर काम कर रहे हैं और उनके पास कोई अतिरिक्त मदद नहीं है और न ही वे शिफ्ट में काम करते हैं. वे वहां छोड़े गए लावारिस शवों के दाह संस्कार का भी ज़िम्मा संभालते हैं. उनके पास सोचने का भी समय नहीं है, वे सेवा कर रहे हैं.
“इन शवों का कोई अता-पता नहीं है. हम अपने दम पर दाह संस्कार कर रहे हैं, यहां तक कि लावारिस शवों का भी. हमें कुछ भी भुगतान नहीं किया जा रहा है. हम इसे सिर्फ एक सेवा के रूप में कर रहे हैं.”श्मशान कर्मचारी
मैं जब तक वहां खड़ा था, कोविड शवों से भरी एम्बुलेंस आती रही और कर्मचारी दाह-संस्कार के काम में लगे रहे लेकिन बीच में एक कर्मचारी ने कुछ मिनटों का समय निकाला और नागरिकों से अनुरोध किया कि जब वे अपने घरों से बाहर निकलें तो हमेशा डबल मास्क पहनें और सैनिटाइज करते रहें.
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