दिवाली की रात देश का हर शहर रासायनिक युद्धक्षेत्र जैसा बन जाता है. वातावरण की हवा में सल्फर-कोल यौगिक, भारी धातु वाले तत्व, अन्य जहरीले रसायन या गैस का मिश्रण मिल जाता है.
कम्बशन क्लाउड (दहन बादल) में खतरनाक नैनो कणों के साथ-साथ हानिकारक धुंआ मिल जाता है, जैसे ओजोन, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रिक ऑक्साइड.
सामान्य वातावरण के मुकाबले पटाखों से निकला धुआं ज्यादा चिंता का विषय है, क्योंकि जिस स्तर पर हम सांस लेते हैं, उसी स्तर पर ये धुआं रिलीज होता है. ये धुआं सीधे हमारी सांस के जरिए आंतों में चला जाता है.
प्रदूषण रहित पटाखे बाजार में इतनी जल्दी नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने जीरो से लेकर कम स्तर पर धुआं छोड़ने वाले सुरक्षित पटाखों की अनुमति दी है. इससे एक अन्य किस्म की उद्यमशीलता का अवसर सामने आया है, जो कमाल का है. हालांकि जो पटाखे पहले से बन चुके हैं या बाजार में आ चुके हैं, उनको खत्म होने में ही संभवतः दो से तीन साल लग जाएंगे.
दरअसल हमें अपने-आप से यह पूछने की जरूरत है कि क्या दिवाली के धमाके और रंगीन रोशनियों से मिलने वाले कुछ पल के आनंद को पर्यावरण पर होने वाले खतरनाक असर के मद्देनजर उचित ठहराया जा सकता है?
जब अपेक्षाकृत सुरक्षित पटाखे बाजार में आ जाएंगे, तो एक पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में मेरी भूमिका बेहद आसान हो जाएगी. इन नियमों का सख्ती से पालन करने से वायुमंडल पर निश्चित तौर पर पॉजिटिव असर होगा.
(ये लेख जय धर गुप्ता ने भेजा है, जो निर्माण बीइंग ऑर्गनाइजेशन के फाउंडर हैं.)
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