नाना पाटेकर और तनुश्री दत्ता का विवाद मामला हाल ही में सामने आने के बाद मुझे एक पुरानी घटना याद आ रही है. कुछ समय पहले मेरे सामने हुई वो घटना मुझे आज भी काफी परेशान कर रही है.
करीब तीन महीने पहले की बात है. मैं अपनी तीन दोस्तों के साथ दिल्ली से गोवा जा रही थी. हमलोगों ने अपना काम खत्म करने के बाद गोवा के लिए देर शाम फ्लाइट ली. यह मेरा पहला एक्सपीरिएंस था, लेकिन कोशिशों के बावजूद भी मुझे विंडो सीट नहीं मिली. एक दोस्त मेरे आगे की लाइन में बैठ गई, वहीं दो अगली लाइन में बाईं तरफ बैठे थे.
फ्लाइट पूरी तरह से भरी हुई थी. तभी मैंने देखा अचानक 4-5 लोगों का एक ग्रुप फ्लाइट के अंदर आया. वे सभी लोग दिखने में काफी हट्टे-कट्टे थे. फ्लाइट में आने के बाद मेरी पीछे की लाइन में वे अपनी सीट ढूंढ रहे थे. लेकिन काफी अजीब तरीके से व्यवहार कर रहे थे. इसी बीच में हमारी फ्लाइट ने उड़ान भर दी.
मेरी बाजू वाली सीट पर गोवा के एक जेंटलमैन थे. उनसे मेरी बातचीत हो रही थी और वो मुझे बता रहे थे के गोवा में रहने के दौरान मुझे क्या करना चाहिए. इसी बीच फ्लाइट के अंदर से अचानक से तेज आवाज सुनाई आने लगी. जब मैंने इस पर ध्यान दिया, तो देखा कि यह शोर उन्हीं 4-5 लोगों की तरफ से हो रहा है, जो कुछ समय पहले फ्लाइट में आए थे. मैं उस घटना को पूरी तरह तो नहीं बता पा रही हूं, लेकिन उन लोगों की कुछ हरकतों को मैं शेयर कर रही हूं.
उन लोगों के ग्रुप में से एक पुरुष एयर होस्टेस को बुरी तरह छेड़ रहा था. उसे टच करने की कोशिश कर रहा था. और उसे छेड़ने के लिए हर मौके की तलाश कर रहा था. उनके बाकी साथी मजे ले रहे थे. मुझे यह देखकर काफी अजीब लग रहा था कि वे लोग एयरहोस्टेस को परेशान करने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे थे.
फ्लाइट में मौजूद हम सभी यात्री उन लोगों को बेहूदा हरकतों को देख रहे थे. लेकिन हममें से किसी ने उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाई. हम सभी मूकदर्शक बने हुए थे. सही कहूं, तो मैं कभी भी चुप नहीं रहती. लेकिन उस पल मैं कुछ नहीं बोल पाई.
शायद मैं डर गई थी. इसलिए कि कहीं वे लोग मुझे अपना निशाना न बना ले या फिर ये भी कह सकते हैं कि वैसी वाहियात हरकतें मेरे साथ नहीं हो रही थीं. इसलिए किसी और के मामले में मैं उलझना नहीं चाहती थी. मैं इंतजार कर रही थी कि शायद कोई और आगे बढ़कर उन लोगों के खिलाफ आवाज उठाएगा. कोई और आवाज उठाता, तो मैं भी उनका साथ देती. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
मुझे एहसास हुआ कि हम भारतीय सिर्फ फिलॉस्फर की तरह बातें कर सकते हैं, लेकिन हम किसी गलत बात के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते. सही कहें, तो भारतीय अपने समाज में किसी तरह का अच्छा बदलाव लाने का कोशिश ही नहीं करना चााहते, उन्हें लगता है कि जो हो रहा है होने दो. हमारा क्या जाता है.
उस दिन मैंने यह देखा कि समाज में मौजूद कुछ गलत लोग किस तरह से अपने व्यवहार से काफी लोगों को इतना डरा हुआ और असहज बना देते हैं कि उनके खिलाफ कोई खुलकर आवाज नहीं उठाता. मैं सही कहती हूं कि अगर उस दिन फ्लाइट में मौजूद कोई भी यात्री अगर उन लोगों की हरकतों के खिलाफ आवाज उठाता, तो हम उस एयरहोस्टेस को जलील और परेशान होने से बचा सकते थे.
उस घटना के लिए मैं आज भी दुखी हूं और मुझे हमेशा इस बात का हमेशा मलाल रहेगा कि मैं उस एयरहोस्टेस के लिए कुछ नहीं कर सकी.
(ये लेख हमें सरिता कंदारी ने भेजा है, जो दिल्ली में पली-बढ़ी हैं. सरिता भविष्य में किताब लिखना चाहती हैं.)
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