हरियाणा में 22 साल के बाद छात्र संघ चुनाव हुआ है. बीजेपी सरकार ने 2014 में हरियाणा की सत्ता में आने से पहले वादा किया था कि वह राज्य में छात्र संघ चुनाव कराएंगे. सत्ता में आने के चार बरस बाद सरकार ने अपना वादा पूरा किया, लेकिन छात्रों की इच्छा के विपरीत अप्रत्यक्ष चुनाव कराने की घोषणा कर दी.
10 अक्टूबर को सरकार ने हरियाणा में अप्रत्यक्ष रूप से छात्र संघ चुनाव कराने की तारीख का ऐलान किया. छात्रों के तमाम विरोध प्रदर्शन के बीच 17 अक्टूबर को हरियाणा में छात्र संघ चुनाव होंगे.
एनएसयूआई, इनसो, एसएफआई, डीएएसएफआई, एएमवीए, एआईएसएफ, जीबीएसओ, कुसा, सोपू, एवीएसएसओ, जीसीएसयू, छात्र एकता मंच समेत तमाम संगठन सरकार के इस फैसले का बहिष्कार कर रहे हैं. सिर्फ बीजेपी के छात्र संगठन ABVP ने इसका विरोध नहीं किया है.
अप्रत्यक्ष चुनाव का मतलब है कि छात्रों को अपने प्रतिनिधि को न तो चुनने, और न ही चुने जाने की आजादी है. बीजेपी अपने चुनावी घोषणापत्र में किए गये छात्र संघ के चुनाव के वायदे को चार साल तक दबाकर बैठी रही, अब आखिरी साल में आनन-फानन में अप्रत्यक्ष चुनाव का जुमला उछाला गया है.
सरकार चाहती है कि विश्वविद्यालय प्रशासन का इस्तेमाल करते हुए अपने छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) को किसी भी कीमत पर जिताया जाए.
हरियाणा में छात्र संघ चुनाव जैसा कुछ नहीं
असल में हरियाणा में हो रहे छात्र संघ के चुनावों में चुनाव जैसा कुछ है ही नहीं, क्योंकि चुनाव का मतलब होता है 'चुनने और चुने जाने की आजादी'. लेकिन यहां पर विभागाध्यक्ष और विश्वविद्यालय प्रशासन के दबाव से सीआर यानी क्लास रिप्रेजेन्टेटिव चुन लिए जायेंगे और फिर उन्हीं में से पदाधिकारियों का चुनाव कर लिया जायेगा. खरीद-फरोख्त के पूरे खतरे होंगे और जागरूक छात्र नेतृत्व इस प्रक्रिया में चुना ही नहीं जा सकता.
प्रत्यक्ष चुनाव छात्र संघर्ष समिति ने अपने जारी बयान में कहा है कि समिति अप्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव का बहिष्कार करेगी और प्रदेश में छात्रों के लोकतांत्रिक हितों को सुरक्षित करने के लिए प्रत्यक्ष चुनावों की मांग को जारी रखेगी.
ABVP को जिताने की साजिश
प्रत्यक्ष चुनाव छात्र समिति ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार अप्रत्यक्ष रूप से छात्र संघ चुनाव करवाकर सरकारी तंत्र मंत्र से एबीवीपी को जिताने का सुनियोजित षड्यंत्र रच रही है.
प्रोफेसर तनकेश्वर कुमार की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर किसी क्लास में किसी छात्र का नॉमिनेशन उपयुक्त नहीं होगा, तो उस क्लास में एचओडी / क्लास इंचार्ज किसी छात्र को नॉमिनेट करेंगे या उनके साथ-साथ इंस्टिट्यूशन का हेड 5 छात्रों को नॉमिनेट करेगा.
ऐसे में ये साफ है कि चुनाव साफ व पारदर्शी तरीके से नहीं होंगे. इन चुनावों में सरकार द्वारा बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी को पूरी तरह से समर्थन मिलेगा और काउंसिल पर राज करने का अवसर.
समिति के मुताबिक, इन अप्रत्यक्ष चुनावों में सरकार द्वारा सरकारी तोते पैदा करने का काम किया जाएगा और असल में प्रदेश को छात्र नेता नहीं मिल सकेंगे, जिस वजह से छात्र संघ चुनाव का औचित्य प्रदेश की छात्र विरोधी बीजेपी सरकार द्वारा खत्म किया जा रहा है.
बिना झिझक छात्रों पर बरसाई गईं लाठियां
11 अक्टूबर को प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव संघर्ष समिति की बैठक में तमाम छात्र संगठनों ने अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का विरोध करने का फैसला लिया था. लेकिन इस दिन जैसे ही छात्र विश्वविद्यालय में विरोध मार्च निकालते हुए गेट नंबर-1 की तरफ बढ़े, तो पुलिस ने बैरिकेड के साथ स्वागत किया. विश्वविद्यालय अपने आप में स्वायत्त संस्थान होता है, तो छात्रों ने सवाल उठाया कि पुलिस प्रशासन का यहां क्या काम है? कुछ देर बाद पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया.
पुलिसकर्मियों ने छात्राओं पर बिना किसी झिझक और शर्म के लठियां चलाईं. यही नहीं, आंसू गैस के गोले भी छोड़े गए. कुछ छात्रों को पुलिस ने हिरासत में भी ले लिया गया था. लेकिन छात्र डटे रहे और गेट के पास ही जम गए.
छात्रों की एकता के सामने आखिरी में विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस प्रशासन को झुकना पड़ा. कुलाधिपति और रजिस्ट्रार छात्रों की बात सुनने के लिए न केवल, आए बल्कि पुलिस को हिरासत में लिए छात्रों को छोड़ना पड़ा.
इसके बाद 13 अक्टूबर को सभी छात्र संगठनों ने दोबारा इकट्ठे होकर 12 अक्टूबर को हुए लाठीचार्ज के विरोध में हरियाणा सरकार की 'शवयात्रा' निकाली और उपकुलपति के कार्यालय के बाहर उनका पुतला फूंका. वहां भी भारी पुलिस बल तैनात था.
17 अक्टूबर को प्रदेश में चुनाव की तारीख है. लेकिन छात्रों ने प्रत्यक्ष चुनावों की लड़ाई जारी रखने का ऐलान किया है. प्रत्यक्ष चुनाव छात्र समिति का कहना है कि प्रदेश में अप्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव के जरिए वो एबीवीपी को प्रत्यक्ष रूप से फायदा नहीं होने देगी.
(ये स्टोरी कुलदीप कुमार ने भेजी है. इसमें लिखे विचार उनके हैं. द क्विंट का उनके विचार से सहमत होना जरूरी नहीं है)
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