भारत का प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय हमेशा से अपने छात्रों को लेकर सुर्खियों में रहा है. हालांकि विश्वविद्यालय छात्रों के साथ-साथ कैंपस के अंदर मौजूद चौबीसो घंटे खुले रहने वाले ढाबों के लिए भी प्रसिद्ध है.
कई दशकों से ढाबे की खास बात यहां के खान-पान के साथ साथ राजनीतिक, समाजिक और वैज्ञानिक मुद्दों पर चर्चा का केंद्र माना जाता रहा है.
कोविड महामारी आने से पहले मैंने अपने दो साल जेएनयू कैंपस में गुजारे हैं, उन दिनों मेरा एक भी दिन ऐसा नहीं बिता होगा, जब मैंने ढाबे पर जाकर चाय और नाश्ते के साथ तमाम मुद्दों पर चर्चा नहीं की होगी, हमारे साथ कैंपस में मौजूद ऐसे बहुत से छात्र इस रोजमर्रा के जिंदगी का हिस्सा होते थे.
लेकिन पिछले एक साल में, महामारी ने इन भोजनालयों को काफी बड़ा झटका दिया है, जिससे इन ढाबों को मजबूरी में बंद करना पड़ा है.
अब, जब से कोविड की दूसरी लहर कम होने लगी है, तब से जेएनयू प्रशासन ने रात 10 बजे तक इन ढाबों को चलाने के लिए छूट दी है, इस दौरान मैं भरत भैया से मिलने गया, जो परिसर के अंदर प्रसिद्ध 'गंगा ढाबा' चलाते हैं.
"हमारी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी. हम केवल इसलिए गुजर बसर कर पाए क्योंकि हमारे पास गांव में जमीन का एक टुकड़ा है. अगर हमारे पास वह नहीं होता, तो हम कुछ भी नहीं कर पाते. हमारे श्रमिकों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा. कई लोग अभी भी वापस नहीं आ रहे हैं, एक और लॉकडाउन के डर से. ”भारत, मालिक, गंगा ढाबा
यहां तक कि दहिया चाचा (करमवीर दहिया), जिन्हे मैं अपने IIMC (भारतीय जन संचार संस्थान) के दिनों से जानता हूं, उनको भी महामारी के कारण वास्तव में कठिन समय से गुजरना पड़ा.
"मेरे घर की स्थिति भयानक थी. मेरे पास एलआईसी (जीवन बीमा निगम) की पॉलिसी थी, इसलिए मैंने उस पर कर्ज लिया. मैंने अपनी पत्नी के सोने के गहने गिरवी रख महाराष्ट्र बैंक से कर्ज भी लिया, जिसकी ईएमआई 7,000 रुपये है, जिसका भुगतान मैं अभी भी कर रहा हूं. कोई काम नहीं था. मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा."करमवीर दहिया, मालिक, दहिया ढाबा
ऐसे समय में कुछ ढाबे खुल चुके हैं और कुछ हमेशा के लिए बंद हो गए हैं, जो ढाबे खुले हैं, उन्हें ग्राहक ढूंढने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. फिलहाल केवल PhD और फाइनल ईयर वाले छात्रों को यूनिवर्सिटी आने की अनुमति दी गयी है.
एक छात्र के रूप में, मैंने हमेशा महसूस किया है कि इन ढाबों ने छात्रों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और जब मैंने यूनिवर्सिटी के वर्त्तमान छात्रों से बात की तो उनका भी यही मानना है.
"JNU के छात्रों के जीवन में ढाबा काफी अहमियत रखता है, खासकर मेरे जैसे छात्र जो PhD कर रहें हैं. हमारा रिसर्च पेपर लिखने का कोई निश्चित समय नहीं होता और प्रति दिन बहुत पढ़ना पड़ता है, इस बीच ढाबा हमारे लिए एक रिफ्रेशमेंट और स्ट्रेस रिलीज करने की एक जगह है."दिव्यम प्रकाश, छात्र, जेएनयू
कुछ इसी तरह का रिश्ता ढाबा के मालिकों और छात्रों का भी है. करमवीर दहिया का कहना है कि, "मैं यहां हरियाणा से आया था, मैंने सोचा की यहां आने के बाद किससे कुछ पूछूंगा और कौन मेरी मदद करेगा, पर यहां के छात्रों ने मेरी बहुत सहायता की."
भले ही कुछ ढाबे फिर से खुल गए हैं, लेकिन मालिकों को डर है कि अगर तीसरी लहर आती है और लॉकडाउन लगाया जाता है, तो बचने की संभावना नहीं होगी.
"इन परिस्तिथियों में हम सभी डरे हुए हैं. अगर लॉकडाउन दुबारा लगाया जाता है तो हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा और दुबारा ढाबा खोलना हमारे लिए नामुमकिन होगा."भरत, मालिक, गंगा ढाबा
दूसरी ओर, दहिया चाचा ने उम्मीद नहीं खोई है. उनका कहना हैं कि, "अगर एक और लॉकडाउन नहीं होगा, तो हमारे पास वापसी करने की संभावना है. इसमें समय लग सकता है, एक, दो या तीन साल, लेकिन हम निश्चित रूप से वापसी करेंगे. हम और छात्र फिर से सुरक्षित होंगे."
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