आज का समय भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे मुश्किल दौर में से एक कहा जा सकता है. समाज को ध्रुवीकृत (पोलराइज्ड) किया जा रहा है. विपक्षी पार्टियों को निशाना बनाने के लिए लिंचिंग, ऑनलाइन ट्रोलिंग, उच्च शिक्षा संस्थानों पर हमला, सीबीआई और ईडी को जरिया बनाया जा रहा है.
इन मामलों में लालू प्रसाद का जिक्र काफी जरूरी है, जिन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत के दिनों से कभी भी आरएसएस और उन जैसे तमाम संगठनों के साथ समझौता नहीं किया.
उनके बेटे तेजस्वी यादव ने कई मौकों पर कहा, ''अगर मेरे पिताजी बीजेपी के साथ हाथ मिला लेते, तो वह उनके लिए राजा हरिश्चंद्र बन जाते.''
कुछ लोगों का तर्क हो सकता है कि तेजस्वी लालू के बेटे हैं, इसलिए ऐसा बोल रहे हैं, लेकिन इस मामले पर एक बार नजर डालने पर समझ में आ जाएगा कि सरकार इन दिनों किस तरह से एक-एक करके क्षेत्रीय पार्टियों को निशाना बना रही है.
कई करोड़ के चारा घोटाले के केस में सजा काट रहे लालू प्रसाद का नाम आईआरसीटीसी स्कैम में भी डाल दिया गया है. जब सीबीआई के दो टॉप ऑफिसर आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद सामने आया, तब पता चला कि अस्थाना लालू प्रसाद के पीछे कैसे पड़ गए थे. अब अस्थाना खुद रिश्वतखोरी के आरोपों में फंसे हुए हैं और उनके खिलाफ सीबीआई ने ही एफआईआर दर्ज कराई.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी एक ट्वीट में लिखा था, "पीएम के आंखों के तारे, गुजरात कैडर के ऑफिसर और गोधरा एसआईटी जांच के कारण चर्चा में आए सीबीआई के नंबर-2 अधिकारी खुद रिश्वतखोरी के आरोपों में फंसे है. मौजूदा पीएम के शासनकाल में सीबीआई राजनीतिक बदला लेने का एक हथियार बन गई है.''
सीबीआई पर पहले भी कई बार सवाल उठ चुके हैं और आपको याद होगा कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सरकार का तोता बताया था. मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी लालू की नेगेटिव छवि बनाने में अहम भूमिका निभाई है.
उदाहरण के लिए, मीडिया ने देवघर जिला ट्रेजरी मामले को ‘चारा घोटाला’ के रूप में रोजाना प्रचारित किया. केवल लालू प्रसाद ही मीडिया ट्रायल के एकमात्र शिकार नहीं हुए हैं. बल्कि उन जैसे बाकी तमाम दलित-पिछड़ों के जिन नेताओं ने सवर्णों के खिलाफ आवाज उठाई है, उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है.
लालू प्रसाद जैसे नेता निश्चित रूप से बेहतर इलाज पाने के हकदार हैं.
आज हमारे देश में डर की लहर चल रही है, क्योंकि लोग न्याय की लड़ाई में खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं. किसानों के विरोध, दलित आंदोलन, मुंबई में किसानों के मार्च और लिंचिंग के खिलाफ मुसलमानों के विरोध प्रदर्शन जैसे कई मामलों में यह साफ तौर पर देखा गया है.
हम उम्मीद करते हैं कि लालू यादव जल्द ही बीमारियों से ठीक होकर अपने धर्मयुद्ध को फिर से शुरू करेंगे. समय के साथ, लोग निश्चित रूप से इस पूरे राजनीतिक खेल को समझेंगे और लालू को फिर से वही सम्मान मिलेगा, जिसके वह सही हकदार हैं.
(लेखक हैदराबाद यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर कम्पेरेटिव लिटरेचर के पीएचडी स्कॉलर हैं. माय रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों की भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी दलों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है)
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