बोर्ड एग्जाम शुरू हो चुके हैं और छात्र-छात्राएं इनसे निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. परीक्षाओं की तैयारियां अंतिम चरण में हैं और अब समय है एग्जाम के लिए बनाई गई रणनीतियों पर अमल करने का.
हालांकि साल के इस समय तक स्टूडेंट परीक्षाओं के लिए लगभग तैयार होते हैं, लेकिन 'एग्जाम फीवर' उन्हें चैन की सांस नहीं लेने देता है.
‘एग्जाम’ एक छोटा सा शब्द मात्र नहीं है. ये उन तमाम चिंता और परेशानी की जड़ है, जिनसे बच्चे इस दौरान गुजरते हैं. इस चिंता का मुख्य कारण पीयर प्रेशर होता है.
आजकल बच्चे सीखने में कम रुचि रखते हैं और उनका पूरा ध्यान एक-दूसरे से होड़ करने में रहता है.
यह सब होड़ में आगे निकलने के सामाजिक दबाव के कारण हो रहा है. शिक्षा पूरी तरह एक रेस में तब्दील हो गई है. सीखने की इच्छा की जगह अब टॉपर बनने की चाह ने ले ली है.
जो बच्चे इस रेस में अव्वल नहीं आ पाते, वो अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और कभी-कभी जानलेवा कदम भी उठाते हैं. यह एक चिंता का विषय है और इस पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है.
हमें ये समझना पड़ेगा कि जिंदगी नंबर और एग्जाम के अलावा भी बहुत कुछ है. जिंदगी के महत्व की किसी डिग्री से तुलना नहीं हो सकती.
परीक्षाओं से जुड़े सामाजिक दबाव और तुलनात्मक रवैये को समाज से जल्द मिटाना बहुत जरूरी है. इससे युवाओं को अपनी काबिलियत पता लगाने का मौका मिलेगा. अभिभावकों को अपने बच्चों को इतनी छूट और आजादी देनी चाहिए कि वो पढ़ाई का आनंद उठाते हुए सीखे और परीक्षाओं से घबराएं नहीं.
चलिए शपथ लेते हैं कि इस साल मार्क्स और परसेंटेज को महत्त्व न देते हुए हम सीखने, पढ़ने और बच्चों की क्षमताओं पर ज्यादा ध्यान देंगे.
(भावना झा रांची, झारखंड की छात्रा और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
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