आजकल फेसबुक और ट्विटर की दुनिया मे गजब की वैचारिक जंग देखने को मिलती है. आसिफा का मुद्दा हो या केरल बाढ़ हो, इन तमाम घटनाओं पर कुछ एलियन टाइप लोगों के विचारों को पढ़कर कोई भी संवेदनशील आदमी विचलित हो सकता है. पुलवामा हमले के बाद भी कुछ इसी तरह के विचार देखने को मिले थे. ऐसा नहीं है कि इसके लिए कुछ सतही लोग ही जिम्मेदार हैं. बल्कि इसमें समाज का कुछ बुद्धिजीवी वर्ग भी शामिल दिखाई देता है.
"पाकिस्तान को परमाणु बम से मिटा दो." जैसे जुमले लिखने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों की बुद्धि का स्तर क्या है पता नहीं. लेकिन इतना तो तय है कि इनके रहते भारत-पाकिस्तान रिश्तों में सुधार की गुंजाइश न के बराबर है. आखिर इसका हल क्या है? सबसे पहले पाकिस्तान की हकीकत को समझना होगा. पाकिस्तान धर्म के नाम पर अलग हुआ. यानी कि उसके वजूद के पीछे हिंदुस्तान के कट्टरपंथी लोगों की सोच थी, जिसे उन्होंने मुस्लिम लीग के रूप में स्थापित किया और इसका नेतृत्व जिन्ना को थमा दिया. इस लिबरल से दिखने वाले जिन्ना की डोर को पर्दे के पीछे छुपे कट्टरपंथी संचालित करने लगे.
हिन्दू कट्टरपंथ के आधुनिक स्वरूप ने इसमें आग में घी का काम किया. आज का पाकिस्तान उसी सोच पर कायम है. जिस पर वह हिंदुस्तान से अलग हुआ था. आज अरब देशों की बड़ी मस्जिदों के ज्यादातर इमाम पाकिस्तान से हैं. पाकिस्तान सभी मुस्लिम देशों का लीडर बनना चाहता है. इसलिए पाकिस्तान चाहता है कि उसकी पहचान ऐसी बनी रहे. यही पाकिस्तान को लिबरल होने से रोकता है. तो पाकिस्तान से रिश्ते कैसे ठीक हो? दोनों देशों के बीच सुलह की कोशिशों के बावजूद नफरत बड़ी होती जा रही है.
इसका कारण ये है कि उनमें सुलह कम और राजनीति ज्यादा रहती है. दरअसल पाकिस्तान कभी अमन चाहता ही नहीं है, क्योंकि ये उसकी मजबूरी है. भारत से लड़ते रहने के पीछे सबसे बड़ा कारण भी यही है कि उसे अपने उन कट्टरपंथियों को भी खुश रखना है, जो किसी भी सूरत में काफिरों को नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं. उसकी सोच यही कट्टरपंथी कीड़े तय करते है. इसलिए जादू की झप्पी से पाकिस्तान नहीं सुधरेगा. तो क्या युद्ध कोई हल है ?
नहीं, इसका समाधान है कूटनीति. आज पाकिस्तान में एक बड़ा वर्ग वह भी है, जो अपने मुल्क के कट्टरपंथी वजूद होने के बावजूद कट्टरपंथ से दूर है. इस वर्ग को पाकिस्तान के भविष्य से डर लगता है और यही वो वर्ग है, जो आगे चलकर दोनों देशों के बीच की दूरियों को हमेशा के लिए मिटा सकता है. हालांकि ये वर्ग अभी मुखर नहीं है, इसलिए इस वर्ग का वजूद नदारद दिखाई देता है.
भारत को कुछ भी ऐसा कदम उठाने से बचना होगा, जिससे ये वर्ग कमजोर पड़े. पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान का कट्टरपंथ कभी कमजोर नहीं हो सकता, बल्कि इससे कट्टरपंथ का कुरूप चेहरा और निखर जाता है. अमन के दुश्मनों का फायदा होता है. दोनों देशों की सरकारें कभी नहीं चाहतीं कि उनकी राजनीति कमजोर पड़े. और यही दुर्भाग्य है जिसका कोई समाधान नहीं है.
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