पड़ोसियों के बीच होने वाली लड़ाइयां आम हैं. तनिक-सी बातों पर होने वाली नोंकझोंक रिश्तों को चटख बनाती हैं. अगर किसी की अपने पड़ोसी से लानत-मलानत न होती हो तो फिर सबकुछ बेढंगा-सा लगने लगता है. यही इस रिश्ते की खूबसूरती भी है. यही पड़ोसी भारत और पाकिस्तान हों तो! परमाणु बम, आतंकवाद, युद्ध और न जाने कितने भयानक शब्द सामने निकल आते हैं.
क्या यही इस रिश्ते की पहचान बन चुके हैं? क्या हमारा भविष्य यूं ही अनिश्चित बना रहेगा? भारत और पाकिस्तान सहोदर होते-होते पड़ोसियों में बदल गए हैं. दोनों पड़ोसियों के रिश्तों की खटास बेहद जहरीली होती जा रही हैं. उनकी आपस की नोंकझोंक भरोसे की नाजुक डोर के सहारे टिकी थी, जिसे काटने का प्रयास हमेशा से होता रहा है.
साझी संस्कृति, साझी पहचान और अमूल्य विरासत को खुद में संजोए ये दोनों देश साथ मिलकर इन दुश्मनों का सफाया कर सकते हैं. अतीत की यही पूंजी उनका हथियार बन सकती है. हम पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के लफ्जों में बात करें या नजर से नजर मिलाकर, सामने बैठकर? इस मुद्दे पर विचारों की विविधता हो सकती है.
युद्ध दूर से रोमांटिक लगते हैं, सामने जाने पर उसकी तपिश आपको जला सकती है. युद्ध कभी भी किसी मसले का पूर्ण हल नहीं देता. वह नए मसलों को जन्म देता है. हर एक युद्ध बातचीत की मेज पर बैठने के बाद ही अपने परिणाम तक पहुंचा है. उससे पहले तक बस खून की नदियां बही हैं, बेमतलब के लिए. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की आग 1972 में हुए शिमला समझौते के बाद ही ठंडी हो सकी.
भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को किया था रिहा
जब भारत ने अपनी जेलों में बंद 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को रिहा किया था. वह अद्वितीय क्षण रहा होगा! कारगिल युद्ध की भयावहता ने दोनों देशों के रिश्तों को नई गिरावट पर पहुंचा दिया था. कारगिल के बरसों बाद जब भारतीय टीम पाकिस्तान में क्रिकेट खेलने पहुंची थी, तब जिस तरह का प्यार और स्वागत उन्हें हासिल हुआ था, वह अभूतपूर्व था.
यह भारत और पाकिस्तान के सहोदर अतीत की खुशबू की एक बानगी भर है. युद्ध या उसकी आशंकाएं राजनीतिक चालें होती हैं, आम इंसानों को उसका मोहरा बनने से बचना चाहिए. मोहब्बत से सृजन होता है, जबकि नफरत से विध्वंस की कहानी रची जाती है. पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में मिलने वाले प्यार की बात करें या भारतीय फिल्मों को घरों में चुपके से देखने वाले पाकिस्तानी जनता की बात करें, यह एक-दूजे की सृजनशीलता से होने वाला इश्क ही तो है.
यही इस दौर की जरूरत भी है और नफरत को हराने की सटीक तकनीक भी. राजनीति गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर होती है. उसे अपनी जमीन खिसकने का डर बना रहता है. इसलिए राजनीतिक दलों के फैसले स्वार्थ को साधने के मकसद से लबरेज होते हैं. ऐसे में यह दोनों मुल्कों की जनता की जिम्मेदारी है कि वे अपनी पहचान, अपनी थाती, अपने अतीत को पहचानें और गले मिलकर, सारे गले-शिकवे भुलाकर एक नई शुरुआत करें. वह शुरुआत जिसका लक्ष्य हो सर्वश्रेष्ठ भारतीय उपमहाद्वीप.
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